
शहरी पुणे के एक नगरपालिका स्कूल की आठवीं कक्षा – एक सह-शिक्षा कक्षा – में आपका स्वागत है, जिसमें 18 लड़के और 12 लड़कियाँ हैं, जिनमें से प्रत्येक अपने आप में अद्वितीय है। सबसे महत्वपूर्ण कारक जो उन्हें एक साथ लाता है, वह है, उनकी आयु-सीमा – 12-14 वर्ष। ये सभी छात्र किशोरावस्था के मुहाने पर हैं, एक तूफानी लेकिन अनूठे संसार में जो गहन भावना, जोखिम और नवीनता से भरा है। जैसे ही वे अपनी लगाव संबंधी ज़रूरतों के लिए माता-पिता से दूर होकर अपने साथियों के पास जाते हैं, तो उनके लिए सबसे पहले उपलब्ध साथी समूह, उनकी कक्षा में ही होता है। डॉ. डैनियल सीगल के शब्दों में, ये किशोर अपने हमजोली समूह से जुड़े रहने की ज़रूरत को इतना ज़्यादा जीने-मरने का मामला मानते हैं, कि वे सदस्यता के लिए नैतिकता की भी बलि दे सकते हैं। अतीशा, बाला और फना (बदले हुए नाम) को क्या करना चाहिए, जब इतने ऊंचे दांव वाली स्थिति में, दूसरों के साथ तालमेल बिठाने की उनकी प्रबल इच्छा उनकी निजी यौन प्राथमिकताओं से टकराती है?
अतीशा अपनी कक्षा में विराट से रिश्ते का प्रस्ताव स्वीकार करने का फैसला करती है। अचानक, ऐसा प्रतीत होता है कि विद्रोही किशोर छात्र बिल्कुल भी विद्रोह नहीं करते हैं, बल्कि सदियों पुराने पितृसत्तात्मक नियमों का पालन करते हैं, केवल अब, वे देश के कानून को बनाए रखने के लिए खुद को ज़िम्मेदार मानते हैं। अतीशा को तुरंत और स्पष्ट रूप से उसके सहपाठियों – लड़के और लड़कियाँ दोनों द्वारा वेश्या करार दिया जाता है। समूह की सोच सुनिश्चित करती है कि अतीशा अलग-थलग पड़ जाए। लड़कियाँ उसका समर्थन करके खुद को “आसान” या “भ्रष्ट आचरण वाली” के रूप में नहीं देखना चाहती हैं। लड़के उसके साथ दोस्ताना व्यवहार करके कम नैतिक मानकों वाले भावी पति के रूप में नहीं दिखना चाहते हैं। प्रताप उसके पास जाता है और कहता है, “जब उसके साथ तुम्हारा काम निपट जाए तो मेरे पास आ जाना।”
यह एक ऐसा समुदाय है जो अतीशा की निजी पसंद का इस्तेमाल उसकी मानवीय गरिमा पर अपने दैनिक हमले को उचित ठहराने के लिए करेगा और यह अज्ञानी टीचरों के सामने ही उसे “वेश्या” जैसे अति अपमानजनक समानार्थी शब्दों का प्रयोग करके करेगा।
अतीशा को क्या करना चाहिए?
उसी कक्षा की बाला से शैलेश ने संपर्क किया, “क्या तुम मेरी गर्लफ्रेंड बनोगी?” उसकी “नहीं” को तब तक सम्मान दिया जाता है और स्वीकार किया जाता है जब तक कि शैलेश का सबसे अच्छा दोस्त अमित उसे दो दिन बाद डेट पर चलने के लिए नहीं कहता। उसकी दूसरी “नहीं” पर अविश्वास की प्रतिक्रिया होती है, लेकिन फिर भी उसे स्वीकार कर लिया जाता है। लेकिन जब बाला राकेश को अस्वीकार करती है, जो शैलेश और अमित दोनों का सबसे अच्छा दोस्त है, तो लड़के हैरान हो जाते हैं। बाला ने न केवल किसी के व्यक्तिगत पुरुषत्व को अस्वीकार किया। उसने समूह के संयुक्त पुरुषत्व को अस्वीकार कर दिया। उनके अहंकार पर यह प्रहार उनके लिए इतना दर्दनाक था कि उन्होंने अपनी अस्वीकृति को बाला द्वारा सभी पुरुषों की अस्वीकृति के रूप में पुनः परिभाषित किया। वे हर किसी से कहते थे कि बाला लेस्बियन है और हर सुबह जब वह कक्षा में प्रवेश करती तो वे चिल्लाते थे “लेस्बो” जबकि देखने वाले बाकी सभी लोग खिलखिलाकर हंसते थे।
बाला शैलेश, अमित या राकेश को डेट नहीं करना चाहती थी। बाला को क्या करना चाहिए?
फना ने तय किया है कि वह स्कूल पूरा होने तक रोमांटिक रिश्तों में नहीं पड़ना चाहती। जिन लड़कों और लड़कियों ने रिश्तों को तलाशने का फैसला किया है, वे इसे पहले से ही अपनी पसंद पर हमला मानते हैं, हालाँकि, जहाँ तक उनके क्लास टीचर के तौर पर मुझे पता है, फना ने कभी भी उनकी पसंद का मज़ाक उड़ाने के लिए कुछ नहीं कहा या किया। वे उसके द्वारा उनके जीवन जीने के तरीके को अस्वीकार करने से आहत हैं और बदला लेने के लिए अब वे उसे “छक्का” (जो की एक अपमानजनक शब्द है) कहते हैं। हर सुबह जब वह कक्षा में प्रवेश करती है, तो उनमें से कुछ लोग उसे घेर लेते हैं और ट्रैफ़िक सिग्नल पर हिजड़ों की तरह ताली बजाते हैं। दूसरे भी हँसते हैं।
फ़ना को क्या करना चाहिए?
दुनिया के इस सूक्ष्म जगत में जहाँ निजता (प्राइवसी) का तब तक आदर और सम्मान किया जाता है जब तक वो पसंद ताकतवारों (धमकाने वालों) द्वारा खींची गई रेखा के अनुरूप होती है, ऐसे में यदि अतीशा, बाला और फ़ना नियमों की अवहेलना करना चाहें तो उनके पास क्या विकल्प हैं? सभी टीचरों और अभिभावकों ने लगातार उन्हें लड़कों और लड़कियों के इन समूहों से अलग होने के लिए कहा है जो मेरे वयस्क दिमाग को एक उचित विकल्प लगता है। क्या यह विकल्प अभी भी एक किशोर मस्तिष्क को उचित लगेगा? अलग होने का मतलब है अलगाव का जोखिम उठाना – कोई दोस्त नहीं, कोई समुदाय नहीं, कोई स्थान नहीं जहां वे रह सकें, कोई स्थान नहीं जो उनका अपना हो।
यह दुनिया वयस्कों की दुनिया से बहुत अलग नहीं है, एक ऐसी दुनिया जो मानती है कि निजी वास्तविकताएं और विकल्प, जैसे कि महिला के स्तनों का आकार, कौन किसके साथ डेट कर रहे हैं, कोई कितने समय से सिंगल है, कोई बच्चे पैदा करना चाहते हैं या नहीं, कोई कब बच्चे पैदा करना चाहते हैं, ये सभी सार्वजनिक चर्चा के वैध मामले हैं। किसी से जुड़ने की ज़रूरत ऐसी ज़रूरत नहीं है जो किशोरावस्था में ही खत्म हो जाती है; यह एक बुनियादी मानवीय ज़रूरत है, जो मास्लो (Maslow) के पदानुक्रम में शारीरिक और सुरक्षा ज़रूरतों के बाद दूसरे स्थान पर है, और जब तक हम जीवित रहते हैं तब तक यह मौजूद रहती है।
जब हमारी निजी अंतरंगताओं (इन्टमसीस) की जांच करने वाली बाहरी ताकतें, वही समुदाय हों, जिनसे हम जुड़ना चाहते हैं, तो हम क्या करें?
निजता का मतलब है खुद को अलग-थलग करना और साथ ही अपने बारे में निजी जानकारी रखना। हालाँकि, मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों से जूझ रहे लोग इस विरोधाभासी दुनिया में फँसे रहते हैं कि क्या निजी है और क्या नहीं, क्योंकि किसी की विकलांगता या रोग की पैरवी करने और इसके बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए व्यक्तिगत और निजी जानकारी का खुलासा करने की ज़रूरत होती है। यह लोगों को एक कमज़ोर स्थिति में डालता है, और अक्सर उन्हें उन लोगों के समूह से अलग-थलग पड़ जाने का जोखिम होता है जो उनकी मदद करना चाहते हैं। एक महिला जो अपने मानसिक स्वास्थ्य की जागरूकता के लिए अपने रोमांटिक रिश्ते और कहानियों को सार्वजनिक क्षेत्र (डोमेन) में साझा करती है। लेकिन इससे उसे अपनी पसंद और भावनात्मक निर्णय लेने की क्षमता के बारे में सकारात्मक मानसिक आलोचनाएं मिलने की कोई गारंटी नहीं है क्योंकि लोग उसके प्यार और कामुकता की भावनाओं को उसकी बीमारी के लक्षणों के रूप में देख सकते हैं। उसे आसानी से यौन व्यवहार संबंधी समस्याओं से ‘ग्रस्त’ देखा जाता है, अलग होने के कारण उसे साथियों और दूसरों से “पागल है” सुनना पड़ता है, और इसके कारण अक्सर उसे बहिष्कृत कर दिया जाता है या उसके साथ बुरा व्यवहार किया जाता है।
मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए, एक महिला किस्से सुनाती है और सार्वजनिक रूप से अपने रोमांटिक रिश्ते का खुलासा करती है। हालाँकि, वह यह सुनिश्चित नहीं कर सकती कि दूसरे उसके निर्णयों और भावनाओं को अनुकूल रूप से देखेंगे क्योंकि उसके प्यार और वासना की भावनाओं को उसकी बीमारी के संकेतक के रूप में लिया जा सकता है।
लोगों की निजता की ज़रूरत, अकेले रहने की इच्छा, और समान रूप से जीवन का आनंद लेने की इच्छा, यूएनसीआरपीडी अनुच्छेद 19 – स्वतंत्र रूप से रहने और समुदाय में शामिल होने को दर्शाती करती है। जब द रेड डोर (TRD) संस्था ने 2011 में अपना ऑनलाइन सहकर्मी-सहायता समूह बनाया, तो वे दुनिया भर से स्कित्ज़ोफ्रेनिया, साइकोसिस और अन्य मानसिक स्थितियों के अनुभवों वाले कई लोगों की आवाज़ों को एक साथ लाए। जिन लोगों ने दशकों से अपने परिवार और समुदाय से अलग-थलग महसूस किया है, उन्होंने बताया कि अलगाव की यह स्थिति कितनी नुकसानदेह है और कैसे इसने मानसिक स्वास्थ्य के टूटने में योगदान दिया है। जिन वयस्कों को माना जाता था कि उन्हें सुरक्षा देने की ज़रूरत है, उन्हें बताया जाता था कि क्या करना है, उन्हें “मानसिक रूप से अस्वस्थ” समझा जाता था, उनके बारे में यह सोचा जाता था कि वे खुद अपने फैसले लेने के लायक नहीं हैं और उनके पास अपनी जिंदगी के फैसले लेने की क्षमता या अंदरूनी ताकत (एजेंसी) नहीं है, यह दिखाता है कि उन्हें कितना अलग-थलग महसूस कराया जाता था – उनके साथ उनके अपने जीवन में एक परायों जैसा व्यवहार किया जाता था।
स्कित्ज़ोफ्रेनिया और अन्य उच्च स्पेक्ट्रम स्थितियों से जूझ रहे लोग दुनिया को रोज़ाना दूसरों से बहुत अलग तरीके से अनुभव करते हैं। जैसा कि हमने अपनी बंद समूह चर्चाओं में देखा है, सिर्फ़ सामाजिक समर्थन ही पर्याप्त नहीं है। पिछले आठ वर्षों में, हमने पाया है कि यह सिर्फ़ मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों या शारीरिक बीमारियों से गुज़र रहे लोगों की ज़रूरत नहीं थी, बल्कि हर किसी की ज़रूरत थी। यह देखा गया कि अपनेपन और उम्मीद का आपस में गहरा संबंध है क्योंकि दोनों ही लोगों को भविष्य की सकारात्मक उम्मीद के साथ आगे देखने की क्षमता देते हैं। और यह तभी पूरा हो सकता है, जब संबंधित व्यक्ति सीधे तौर पर अपने स्वास्थ्य और जीवन देखभाल योजना में शामिल हो।
स्कूल में टीचरों के रूप में, हम एक तरह से परिवार के बाहर के इन पहले संबंधों के प्रभारी होते हैं। ये ऊंचे-दांव वाले स्थान भी हैं क्योंकि यहाँ चोट लगना सबसे आसान है, और अधिकांश स्कूलों में इस उम्र के किशोरों को एक-दूसरे के प्रति अच्छा व्यवहार करने के लिए सहानुभूति और यौनिकता की बुनियादी शिक्षा नहीं दी जाती है। यह बात उन लोगों में भी दिखाई देती है जो विशेषाधिकार प्राप्त समूहों से हैं और विस्तारित पाठ्यक्रम और सीखने की नवीन प्रणालियों वाले स्कूलों में पढ़ते हैं। हम सही मायने में कह सकते हैं कि मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं वाले वयस्कों और स्कूलों में हमारे छात्रों के अनुभव, जहाँ तक समर्थन की बात है, बहुत अलग नहीं हैं, और दोनों समूहों के लिए इसका क्या मतलब हो सकता है, भले ही उनके नियमित अनुभव अलग-अलग हों।
एक टीचर और एक स्कूल को प्राधिकारी माना जाता है, फिर भी हम अपने विद्यार्थियों की धारणा को न तो तय कर सकते हैं और न ही बदल सकते हैं। हमने इस लेख की शुरुआत में बताए गए तीनों तरीकों को स्वीकार किया, यानी बड़े होने के हिस्से के रूप में एक्सप्लोर करना, कक्षा या स्कूल के बाहर अन्य लड़कों के साथ डेटिंग करना और स्कूल खत्म होने का इंतज़ार करना। टीचरों के रूप में हमने सही और गलत के बारे में कोई नैतिक रुख नहीं अपनाया और केवल तभी हस्तक्षेप किया जब किसी को चोट पहुँच रही थी। छात्रों को अपने तरीके तलाशने और परखने का मौक़ा दिया गया। जब वे ‘असफल’ होने के बाद वापस लौटे, तो “अगर तुमने मेरी बात सुनी होती, तो ऐसा नहीं होता” या “मैंने तुमसे कहा था” जैसे बयानों से परहेज़ किया गया।
जिस स्कूल में हम काम कर रहे हैं, उसमें पहले से ही सहानुभूति रखने वाले वयस्कों का एक समूह है जो वास्तव में दूसरों को तंग करने (बुली करने) वालों को सुधारने की कोशिश कर रहा है। हालाँकि, हम यह मानना चाहते थे कि सुधार में समय लगता है, हम तंग करने वालों को सुधारने और तंग होने वालों की रक्षा करने में विफल रहे। सुधार में विश्वास करने का मतलब है कि स्कूल ने निम्न करने कोशिश की –
- तंग करने वाले और तंग होने वाले, दोनों के साथ सम्मान और गरिमा के साथ व्यवहार करना।
- अभिभावकों को केवल अंतिम विकल्प के रूप में शामिल करना क्योंकि स्कूल का मानना था (और सही भी है) कि छात्रों का जीवन घर पर कठिन है। अभिभावकों को बुलाने का मतलब हो सकता है कि छात्र को घर पर पीटा जाएगा। इसका मतलब यह हो सकता है कि हम वही व्यवहार कर रहे हैं जो हम छात्रों में नहीं देखना चाहते।
- किसी छात्र को कभी भी निष्कासित न करना या कठोर परिणाम न देना, चाहे ‘अपराध’ कितना भी बड़ा क्यों न हो।
द रेड डोर संस्था के सहयोग से स्कूल ने कई सामान्य दृष्टिकोण और सिद्धांत साझा किए। दोनों ने माना कि इन छात्रों के साथ कुछ भी असंभव नहीं था और इसका मतलब था कि संभावनाएं भी अनंत हैं। पहले वर्ष के कार्यक्रम स्टैंड टॉल अगेंस्ट बुलिंग (STAB) ने अलग-अलग रणनीतियाँ अपनाईं – मार्शल आर्ट, ड्रामा और रोल-प्ले के माध्यम से कहानी सुनाना ताकि पहले टीचरों और छात्रों के बीच और छात्रों के बीच एक-दूसरे के साथ विश्वास बनाया जा सके। प्रक्रिया जटिल थी और इसलिए कोई एक तरीका लागू नहीं किया जा सका क्योंकि हर दिन एक अलग चुनौती थी जिसका हमें सामना करना था।
प्रत्येक छात्र के प्रति सहानुभूति रखना आवश्यक था, क्योंकि हम जानते थे कि वयस्क होने के नाते हम भी अपने जीवन में कभी न कभी किशोर रहे हैं, लेकिन इसका उल्टा सच नहीं है यानि किशोर वयस्क नहीं रहे हैं। आमने-सामने के सत्र, अनौपचारिक अतिथि वार्ता, जेंडर-सेक्स शिक्षा हमारी शिक्षण प्रक्रिया का एक बड़ा हिस्सा थी जिसने छात्रों को हस्तमैथुन और मासिक धर्म के मामलों में एक-दूसरे के दर्द और संघर्ष को समझने में मदद की। झूठे आरोपों के कई उदाहरण थे, लड़कियों ने अपने अधिकारों का फायदा उठाया, लड़कों ने छात्रों और यहाँ तक कि टीचरों को चोट पहुँचाने का अधिकार महसूस किया। TRD क्लब का समय सप्ताह में एक बार किसी के भी (छात्र या टीचर) के लिए अपनी चिंताओं को व्यक्त करने और उन्हें व्यक्त करने के लिए एक सुरक्षित स्थान के रूप में शुरू किया गया था, भले ही इसमें अभद्र भाषा का उपयोग करना शामिल हो। फैसिलिटेटरों ने सुरक्षित, सहनीय और सम्मानजनक वातावरण बनाने की कोशिश की जहाँ छात्रों के बीच कठिन बातचीत हुई। क्या सही है और क्या गलत है, इस पर कोई नैतिक रुख नहीं था, इसके बजाय जो प्रदान किया गया वह था खुद को अभिव्यक्त करने की आज़ादी और इसके दौरान या बाद में इसके लिए आलोचना न किए जाने की आज़ादी। फिर लड़कों में से एक ने सुझाव दिया कि लड़कियों का अपना सहायता समूह होना चाहिए क्योंकि कुछ मुद्दे थे जिनमे उन्हें कोई दिलचस्पी नहीं थी। इसके कारण हमारी लड़कियाँ लंच ब्रेक के दौरान अपने स्वयं के सहायता समूह का नेतृत्व करने लगीं और टीचर केवल तभी निरीक्षण करने या भाग लेने के लिए बैठते थे जब हमें कोई समस्या होती थी। लड़कियों से प्रेरणा मिलने के एक साल बाद लड़कों का सहायता समूह शुरू किया गया।
दूसरे वर्ष तक, छात्रों को उनकी भावनाओं, क्रोध के मुद्दों और स्वयं की या टीचरों सहित दूसरों की प्रतिक्रियाओं के बारे में बेहतर जानकारी और जागरूकता प्राप्त कर लेते हैं। उन्हें मार्शल आर्ट की विभिन्न अवधारणाओं और उनके जीवन में इसकी प्रयोज्यता के माध्यम से पीसफुल वॉरियर (शांतिपूर्ण योद्धा) का मार्ग सिखाया जाता है। छात्र शांतिपूर्ण योद्धा के रूप में दीक्षा लेने के लिए मूल्यांकन के तीन चरणों से गुज़रते है। एक दीक्षित योद्धा को एक बैज मिलता है जो उसके योद्धा कोड का प्रतीक होता है। यह छात्र एक योद्धा के रूप में अपनी ज़िम्मेदारी को आगे बढ़ाते हुए दूसरे छात्र को दीक्षित योद्धा की भूमिका निभाने की दिशा में काम करने में मदद करते है। एक योद्धा यह पहचानता है कि शक्ति दूसरों को मजबूर करने या यह सोचने में निहित नहीं है कि वे किसी दूसरे से बेहतर जानते हैं। हमारे छात्र यह पहचानना सीखते हैं कि एक सच्चे योद्धा में बदलाव को प्रेरित करने, नेतृत्व का निर्माण करने और दूसरों को अपने स्वयं के समाधान खोजने के लिए प्रोत्साहित करने की शक्ति होती है, जबकि ऐसा करने में वे खुद को या दूसरों को नुकसान पहुँचाने से बचते हैं।
मानसिक स्वास्थ्य अभ्यासकर्ताओं (प्रैक्टिश्नरों), परिवारों, सहायता समूहों और समुदायों के पास ‘अधिकार’ है और हम इसे ज़रूरी मानते हैं कि वे मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों से जूझ रहे लोगों का नीचा न दिखाएं या उन्हें अपने से कम न समझें। यदि इतनी कम उम्र में छात्र यौनिकता और निजता के जटिल मुद्दों को समझ सकते हैं, तो वे सहमति, पसंद और विफलता जैसी अवधारणाओं को भी जीवन के अभिन्न अंग के रूप में अपना सकते हैं। इसलिए हमें ऐसा कोई कारण नहीं दिखता कि एजेंसी की यह भावना किसी के अपनेपन की भावना का विस्तार न करे और आसानी से बदलाव न ला सके।
सुनीता भदौरिया द्वारा अनुवादित
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