साल 2015 था जब मैंने पहली बार कोई डेटिंग ऐप डाउनलोड किया था। यह गूगल प्ले स्टोर पर ‘गे ऐप’ सर्च करने का ही नतीजा रहा होगा। उस दौरान मुझे अपने आसपास की घटनाएं और खासतौर पर मेरे अंदर चल रही हलचल साझा करने के लिए लोगों की तलाश थी, और ऐसे लोगों को पाने के लिए मैंने इंटरनेट का सहारा लिया। आखिर इंटरनेट ने ही अपनी यौनिकता को एक नाम देने में मेरी मदद की थी। इसी तरह मुझे ‘ग्राइंडर’ की दुनिया मिली।
मैं एक छोटे-से गांव में पला-बढ़ा हूं जहां प्यार और साझेदारी ढूंढ पाना बहुत मुश्किल है, और बड़े शहर में बसने के बाद भी यह तलाश मुश्किल साबित हुई। फिर भी मैंने हार नहीं मानी। जिस दिन मैंने अपने गांव में बैठे यह ऐप डाउनलोड किया था, मेरा सिर उत्तेजना से चकरा गया था। उत्तेजना के साथ साथ एक और अनुभूति भी थी: डर। मेरे दिमाग में बार-बार यह सवाल आ रहा था कि “कहीं कुछ हो गया तो?” कहीं ऐप पर मेरी मुलाकात किसी परिचित से हो गई, और उसने मेरे इस राज़ का खुलासा कर दिया तो? कहीं मेरे मां-बाप को पता चल गया तो? डर के मारे मैंने फ़ोन से ऐप अनइंस्टॉल कर दिया और अपनी सर्च हिस्ट्री भी डिलीट कर डाली। मगर कुछ ही दिनों बाद मैं फिर उस ऐप पर वापस आ गया।
इस बार मैंने अपनी एक प्रोफाइल बना डाली और ऐप को अच्छी तरह से स्क्रोल करते हुए देखा। मैंने अपने बारे में ज़्यादातर जानकारी छिपाए रखी और कई जगह झूठ भी कहा। सबसे ज़रूरी बात, मैंने प्रोफाइल पर अपनी कोई तस्वीर नहीं लगाई। मैंने ऐप पर देखा कि कई और लोगों ने भी अपनी तस्वीर नहीं लगाई थी। कुछ लोगों की प्रोफाइल तस्वीरों पर उनका आधा चेहरा या हल्की परछाई दिखाई दे रहे थे, पर उससे ज़्यादा कुछ नहीं। मैंने कई लोगों की प्रोफ़ाइलें देखीं पर समझ में नहीं आ रहा था कि जिनके बारे में कुछ पता ही नहीं, उनसे बात कैसे शुरु की जाए।
फिर वह हुआ जिसकी उम्मीद ही नहीं की थी। नोटिफ़िकेशन की घंटी बजी! मेरे लिए वह आवाज़ बंदूक की गोली चलने की आवाज़ जैसी थी। मुझे मेसेज करने वाला यह पूछ रहा था कि मैं कैसा हूं। इसका जवाब देना कोई बड़ी बात नहीं थी, तो मैंने जवाब दे दिया। हमारी बातें आम मुद्दों पर होने लगीं, जैसे मौसम, खाना-पीना, खेलकूद वगैरह। मुझे इस अजनबी से बात करते हुए अच्छा लगा और उम्मीद होने लगी कि इस ऐप पर उसी की तरह और लोग भी होंगे। यही ध्यान में रखते हुए मैंने लोगों को मेसेज करना शुरु किया। मैं सिर्फ़ ‘हैलो’ कहता और आगेवाले के जवाब का इंतज़ार करता। आनेवाले हफ़्तों में मैं बहुत से लोगों से अलग-अलग चीज़ों पर बात करने लगा था। हम अपने शौक, अपने काम की बातें, और सिनेमा जैसी दिलचस्पियां एक दूसरे से साझा करते।
कभी कभी एक-दूसरे की खाली प्रोफ़ाइलें देखने के हफ़्तों बाद हम एक-दूसरे से तस्वीरें भेजने की गुज़ारिश करते। अक्सर इससे बात बिगड़ जाती थी। गे डेटिंग की दुनिया बड़ी कठोर है और आप किसी के ‘टाइप’ के न हों तो वे बात करना बंद कर देते हैं या सीधा ब्लॉक ही कर देते हैं। मुझे नहीं लगता यह कभी भी बदलेगा। ऊपर से जब लोग बेझिझक नंगी तस्वीरें भेज देते या मांग बैठते हैं, मुझे और भी चिढ़ होती है।
कभी कभी बातचीत बहुत अच्छी भी होती थी। तस्वीरों की लेन-देन के बाद हम मिलने का प्लैन बनाते। पहली बार जब किसी ने मिलने की बात कही, मुझे घबराहट-सी हो गई थी। मुझे समझ में नहीं आता था कि ऐसी स्थितियों में लोगों के सामने कैसे पेश आना चाहिए, पर इस दौरान मै हाईस्कूल का छात्र था और मेरे सभी सहपाठी डेट पे जाने लगे थे। मुझे उनसे जलन होती थी और मैं भी चाहता था कि मुझे एक साथी मिल जाए। इसलिए मैं इस शख्स से समुद्र के किनारे मिलने के लिए तैयार हो गया। मैं लगभग एक घंटे पहले अपनी मोटरसाइकिल पर वहां पहुंच गया और वहां इंतज़ार करने लगा। जब आखिर वह मुझे नज़र आ गया तब घबराहट के मारे मुझे अपनी बाइक लेकर वहां से भागने का ख्याल आया, पर मैं खड़ा रहा। उस दिन उससे क्या बातें हुईं वह मुझे याद तो नहीं, पर इतना याद है कि किसी से बात कर पाना बहुत अच्छा लगा था। यह कोई ‘डेट’ नहीं था। हम दोनों ने पहले से ही इसे डेट मानने से इनकार किया हुआ था। हमने एक-दूसरे के साथ अच्छा वक़्त गुज़ारा और फिर वापस अपने-अपने घर चले आए। आज मुझे बस, ट्रेन या एयरपोर्ट में लोगों से बातचीत करने में कोई तकलीफ़ नहीं होती और मुझे लगता है इसमें ग्राइंडर का बहुत बड़ा हाथ है।
ऐसा नहीं है कि डेटिंग ऐप पर सारे अनुभव अच्छे ही हैं। लोग बार-बार ‘हुक-अप’ (पहली मुलाकात पर सेक्स) की मांग करते रहते हैं। आप जिनसे बात कर रहे हैं वे असल ज़िंदगी में कौन हैं यह न जान पाना भी परेशानी का कारण बनता है। इसी वजह से मैं तंग आकर महीने में कई बार ऐप अनइंस्टॉल कर देता। डेटिंग ऐप्स को लेकर एक नकारात्मक दृष्टिकोण बन गया है जिसकी वजह से कई लोग इन्हें दुत्कारते रहते हैं। (मेरी जान-पहचान के लोग इन्हें ‘हुक-अप ऐप’ कहते हैं और मुझे लगता है यह कुछ हद तक सच ही है।) ग्राइंडर का मज़ाक उड़ाया जाता है क्योंकि यहां लोगों का पहला सवाल अक्सर ‘उम्र, लिंग, जेंडर और निवास के स्थान’ जैसी व्यक्तिगत जानकारी के बारे में होता है, या किसी को ढंग से लिखना ही नहीं आता । आप यहां साथी ढूंढने में कितना भी मन लगाएं, आखिर में निराश ही होना पड़ता है।
कभी कभी लगता है कि डेटिंग ऐप्स की यह दुनिया तनाव, परेशानी और द्वेष भाव से ओतप्रोत है, पर शायद यह पूरी तरह सच नहीं है। ज़िंदगी में दूसरी चीज़ों की तरह यह भी आपके धीरज की एक परीक्षा है। बस स्वाइप करते रहना होता है और तलाश जारी रखनी होती है। कभी कभी आप दिन के आठ घंटे ऐप पर स्क्रोल करने में ज़ाया कर देते हैं, पर कई बार बातें करने के लिए कोई ऐसा मिल जाता है जिसके सामने ये सारी परेशनियां छोटी लगने लगतीं हैं।
लेखक: वेस्ली डी’सूज़ा
वेस्ली डी’सूज़ा फ़िलहाल बेंगलुरु के सेंट जोसेफ़ कॉलेज से अंग्रेज़ी साहित्य में मास्टर्स कर रहे हैं। वे ज़्यादातर लिखते और किताबों में डूबे हुए नज़र आते हैं। इसके अलावा वे अक्सर लालबाग में टहलते या अपने यूकुलेली पर कोई नया-सा धुन बजाते भी पाए जाते हैं।
ईशा द्वारा अनुवादित
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