कुछ दिन पहले, अपनी माँ के साथ टेलीफ़ोन पर हुई बातचीत से मुझे मेरे जेंडर की कमियों का एहसास हुआ – अपने कठोर लहजे में उन्होंने मुझे ‘बिना शरीर की महिला’ कहा और यह भी कि मैं एक महिला होने लायक़नहीं हूँ। “तुम एक औरत हो सकती हो, पर एक माँ कभी नहीं बन सकती।” उनकी इस तीखी ज़बान ने मेरे दिल को इतनी बेतरतीबी से घायल कर दिया था, जैसे कि मेरे शरीर में हज़ारों सुइयाँ चुभी हों।
मेरे पास बहुत कम ढालें हैं, और हालांकि वे इस दुनिया की सबसे कठोर नकारात्मकता जो ट्रांसजेंडर लोगों के साथ होती है, उसका सामना कर सकती हैं, लेकिन मेरी मां के ख़िलाफ़ वे ठंडी सुबह में सूरजमुखी की तरह सिकुड़ जाती हैं। मेरी माँ बर्फ़ की तरह ठंडी हो सकती हैं और अपने नेगेटिव, अपमानजनक व्यवहार से वह बार-बार मेरे मन को चोट पहुँचाती हैं। मैं अपनी माँ का एक क्रूर चित्र बनाने का इरादा नहीं रखती। वह एक बेहद आज़ाद महिला हैं, जिनका मन भी मेरी तरह ही अशांत है, लेकिन जेंडर और यौनिकता के प्रति हमारी चुनौतियां बिल्कुल अलग और असमान हैं।
मेरे जेंडर के बारे में उनकी प्रतिकारिता हमारी बातचीत में हर जगह होती है, लेकिन वह मुझे यह भरोसा देने में भी देर नहीं लगातीं कि मेरी ग़ैर-विषमलैंगिकतावादी यौनिकता ने उन्हें कभी परेशान नहीं किया। चूंकि मेरी यौनिकता उनकी नज़रों में मेरे ट्रांस होने की तुलना में कम परेशान करने वाली है, इसलिए यह मेरे लिए कोई चौंकाने वाली बात नहीं थी। फिर भी, जितना ज़्यादा मैं उनके इस विरोधाभास के बारे में सोचती हूँ, उतना ही अधिक मुझे यह उलझन भरा लगता है, क्योंकि उनका मेरे मातृत्व को अस्वीकार करना ही यौनिकता के मूल में है। एक महिला के लिए असली यौनिकता का विचार (जैसा कि हमारा समाज समझता है) विषमलैंगिक होने और प्रजनन करने की क्षमता रखने के समान है। इस प्रकार, मातृत्व पर उनकी राय यौनिकता के साथ-साथ जेंडर का भी सवाल है। उनके लिए, माँ बनना एक ऐसा एहसास है जिसे केवल महिलाएं ही अनुभव कर सकती हैं – मेरे जैसी ट्रांस महिला के लिए इसका कोई महत्व नहीं है। उनका TERF-ish[1] ग़ुस्सा मुझे भारतीय संसद में पारित 2021 के सरोगेसी अधिनियम की याद दिलाता है जो मुझे अभिभावक बनने से बाहर रखता है, लेकिन इस मुद्दे पर बात करना किसी और समय के लिए है।
अगर मुझे अपने मन को एक ज्यामितीय आकार के रूप में दिखाना हो, तो वह एक बंद गोले की तरह होगा, जिसमें किसी अलग ख़ाके में शाखा खोलने के लिए कोई निकास नहीं होगा। यह बंद घेरा ब्रह्मांड की तरह फैल रहा है। अपने अंधेरे, असीम ख़ालीपन को अवशोषित कर रहा है। मैं अपनी माँ के साथ अपने रिश्ते, और उनकी खुद की सोच, में मुश्किल से ही कोई सकारात्मक बदलाव ला पाती हूँ – जितना ज़्यादा मैं विरोध करती हूँ या बचती हूँ, उतना ही मैं निरंतर जुर्म के दलदल में धँसती जाती हूँ। यहाँ मौजूद कई ट्रांस महिलाओं के लिए यह एक ऐसा ही दलदल है जिसमें हम अक्सर जानबूझकर और असहाय रूप से गहरे गोते लगाते हैं।
कुछ महीने पहले मैंने कुछ प्रगति की थी, लेकिन बदक़िस्मती से यह जल्द-ही ख़त्म हो गयी थी। पिछले साल अक्टूबर की शुरुआत में, जब पतझड़ की हवाएँ थमने लगी थीं, मेरी माँ मुझसे मिलने नई दिल्ली में मेरे पुराने घर पर आईं। जब मैं उन्हें लेने के लिए हवाई अड्डे पर गई, तो हरे रंग की पोल्का डॉट वाली ड्रेस में मेरा दिल ऐसे धड़कने लगा जैसे मैं बिना पानी के कई मील दौड़ी हूँ। यह वह दिन था जब वह मुझे सार्वजनिक रूप से एक महिला के रूप में देख पाएंगी। मैंने अपने मन में कई परिदृश्यों की कल्पना की। मैंने उन्हें इस प्रक्रिया में शामिल किया था, बीच-बीच में इशारे भी किये थे लेकिन, जैसा कि अनुमान था, मुझे एक भाप से गर्म चेहरे का सामना करना पड़ा। उनकी काफ़्का जैसी आँखें मुझे सिर से पैर तक बिलकुल चिड़चिड़े राहगीरों जैसे घूर रही थीं।
जैसे-जैसे दिन बीतते गए, ऐसा लगने लगा कि वह मेरे साथ ज़्यादा सहज महसूस करने लगी हैं। तमाम बहसों और अपशब्दों के बीच, हम घर पर साथ मिलकर खाना बनाते, ख़रीदारी करने जाते, रेस्टोरेंट में खाना-पीना साथ-साथ करते। वे पल, चाहे कितने भी कम और क्षणिक क्यों न हों, हमारे नाज़ुक बंधन को और मज़बूत कर गए और जिस दिन वह घर वापस जाने के लिए विमान में सवार हुईं, हमने एक-दूसरे को उदासी और नम आंखों के साथ अलविदा कहा।
हालाँकि, यह उदासी थोड़े ही समय के लिए थी, और हमारे रिश्ते उस समय से ही ख़राब होते चले गए। कई महीने बीत गए और माँ के साथ हुई बातचीत क्रिसमस के भूत की तरह मेरे सामने लौट आई। एक समय ऐसा आया जब मैंने अपने ट्रांस होने का दावा मेडिकल सर्टिफ़िकेट के साथ किया, जिसमें मेरे डिस्फ़ोरिया की पुष्टि की गई थी, क्योंकि मेरी गवाही मेरे होने के एहसास को समझाने में नाकामयाब रही। अदालत की तरह, मेरे परिवार में भी मुझे अपनी पहचान की पुष्टि करने वाले सबूतों के अनंत चक्र से गुज़रते रहना पड़ता है। मैं अपनी माँ को मेरे डिस्फ़ोरिया को न समझ पाने के लिए दोषी नहीं ठहराती। जिस उम्र में वे हैं उसके लिए अपने आस-पास की दुनिया के लिए अपरिचित जेंडर के क़ायदों को समझना बहुत मुश्किल है। शायद वे अपने बच्चे के शुद्ध, आदर्श शरीर की कल्पना में इतनी डूबी हुई हैं कि उनमें किसी भी तरह का क्वीयर होने का ख़्याल घुस ही नहीं सकता।
हालाँकि, मैं जो आग और गंधक सेहती हूँ उसके कारन मैं उनकी मानसिक स्थिति को उनसे कहीं ज़्यादा गहराई से समझती हूँ जितना वे मेरी समझती हैं। मैं समझ सकती हूं कि एक सामान्य समाज में ज़िन्दगी के पांचवे दशक में होकर काम करने वाली, तलाक़शुदा होकर किसी और जीवनसाथी के साथ रहने वाली, एक गंभीर बीमारी के साथ जीने वाली महिला होने पर उन्हें कैसा महसूस होता होगा। मेरे सामाजिक दायरे में मानसिक स्वास्थ्य पर होने वाली चर्चा ने मुझे उनकी स्थिति को समझने में सक्षम बनाया है। लेकिन मेरी माँ के लिए यह सुलभ नहीं है। वे यह समझने में नाकामयाब रहती हैं कि उनके शब्द तीखे ट्रिगर हो सकते हैं जो मेरी ख़ुशहाली की भावना को ख़तरे में डाल सकते हैं। ‘परिवर्तन’ और ‘सुधार’ जैसे शब्दों के साथ, वे मुझे बार-बार बताती हैं कि अगर उनका बस चले तो वे मेरे दिमाग़ को मेरी जैविक जिस्म के अनुरूप ‘पुनर्निर्देशित’ कर सकती हैं।
हैरानी की बात है कि वे अक्सर मुझसे कहती हैं कि मैं अपने मन में ही ट्रांस होने का प्रदर्शन करूं और शरीर को अदृश्य बना दूं, “तुम एक औरत हो, लेकिन तुम्हें औरतों के कपड़े पहनने और मेकअप करने की क्या ज़रुरत है? सिर्फ़ अपने मन में एक औरत होने के बारे में सोचो। इसे हर किसी को क्यों दिखाना?”। हमारे मन और हमारे शरीर के बीच जो सहजीवन है, उसे समझ पाना उनके लिए कठिन है, और यह सहजीवन मेरे लिए आदर्शलोक और पीड़ा दोनों ही हैं।
जैसे-जैसे मैं परिवर्तन का एक साल पूरा कर रही हूं, मुझे उनकी दशा के प्रति अपनी सहानुभूति को प्राथमिकता देना और भी कठिन लगता है। मैं अपनी सुख-सुविधाओं को ऐसी जगहों पर रखती हूँ जहाँ लोग मेरी सुख-सुविधाओं को समझते हैं और प्राथमिकता देते हैं, फिर चाहे वह मेरे दोस्त हों, मेरा साथी हो या मेरा कार्यस्थल। मैंने एक ऐसा इकोसिस्टम बनाया है जो मन और शरीर के बीच सहजीवन को अहमियत देता है, एक ऐसा वातावरण जो इसकी स्थिरता और भेद्यता को नियंत्रित करने वाले उतार-चढ़ाव को समझता है।
मैं केवल यह उम्मीद कर सकती हूं कि मेरे जीवन के इस मोड़ पर मेरी मां जैसे अभिभावक के लिए ज़्यादा से ज़्यादा संसाधन उपलब्ध हों, और उन्हें ट्रांसजेंडर लोगों के मानसिक स्वास्थ्य के बारे में भी सीखने के लिए साधन मिलें। अब मैं उस दिन का इंतजार नहीं करती जब मेरी माँ मुझे अपनी बेटी कहेंगी। इसके बजाय, मैं आने वाले समय के उन पहलुओं को देखती हूँ जब हम दोनों अब से बड़े हो जाएँगे, और वे मेरे मानसिक स्वास्थ्य का भार महसूस करेंगी। मैं उस स्तर की सहानुभूति की उम्मीद नहीं करूंगी जो मैं आदर्श रूप से चाहती हूं लेकिन शायद उनकी तरफ़ से एक स्वीकृति हमारे संबंधों को सुधारने और दो वयस्कों के बीच एक स्वस्थ संबंध स्थापित करने में बहुत कामगार होगी।
प्रांजलि द्वारा अनुवादित। प्रांजलि एक अंतःविषय नारीवादी शोधकर्ता हैं, जिन्हें सामुदायिक वकालत, आउटरीच, जेंडर दृष्टिकोण, शिक्षा और विकास में अनुभव है। उनके शोध और अमल के क्षेत्रों में बच्चों और किशोरों के जेंडर और यौन व प्रजनन स्वास्थ्य अधिकार शामिल हैं और वह एक सामुदायिक पुस्तकालय स्थापित करना चाहती हैं जो समान विषयों पर बच्चों की किताबें उपलब्ध कराएगा।
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[1] TERF का तात्पर्य ट्रांस एक्सक्लूज़नरी रैडिकल फ़ेमिनिस्ट्स से है, जो सोचते हैं कि ट्रांस महिलाएं ‘असली’ महिलाएं नहीं हैं।
Cover Image: Photo by Олександр К on Unsplash