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संदिग्ध महिलाएँ 

मैं उत्तरी दिल्ली के एक कमर्शियल कॉम्प्लेक्स में एक छोटे तंग से ऑफिस में हूँ। यहाँ बाहर किसी भी कंपनी या व्यक्ति का नाम नहीं लिखा है। मैं एक लैपटाप कम्प्युटर पर आँखें गढ़ाए एक विडियो को देखने और समझने की कोशिश में लगी हूँ। विडियो में दिखाई दे रहे दृश्य धुंधले हैं और कुछ भी पूरी तरह से साफ़ दिखाई नहीं दे रहा है लेकिन विडियो देखते ही समझ में आ जाता है कि मोटरसाइकल के पास खड़े युवक और युवती इसमें महत्वपूर्ण किरदार हैं। वे दोनों हाथ पकड़े खड़े हैं और खुलकर बातचीत कर रहे हैं। ऐसा लगता है कि उन्हें उनकी विडियो बना रहे कैमरे के बारे में कुछ खबर नहीं है। फिर इसके बाद कैमरा घूम कर मोटरसाइकल की नंबर प्लेट दिखाता है और फिर यह विडियो अचानक खत्म हो जाती है। मुझे बताया गया है कि युवक-युवती के पास खड़ी एक महिला, जो देखने में साधारण दर्शक सी लगती है, वास्तव में एक प्राइवेट इनवेस्टिगेटर या जासूस है जिसने अपने हाथ में एक कीचेन वाला कैमरा पकड़ रखा है। उनके द्वारा लिया गया यह विडियो जासूसी के इस केस को सुलझाने में सहायक गवाही बनने वाला था। मुझे इससे अधिक कोई और ब्योरा नहीं दिया जाता क्योंकि मामले में संबन्धित पक्ष की गोपनियता सुरक्षित रखी जानी ज़रूरी है।     

अपनी एक शोध परियोजना के दौरान मैंने नई दिल्ली में अनेक महिला प्राइवेट जासूसों से मुलाक़ात की थी और यह पूरी बातचीत और अनुभव उसी दौरान हुआ था। इनमें से अधिकांश महिलाएँ जासूसी के इस बिज़नस को चला रही थीं और उन्हे फील्ड का भी कुछ अनुभव था। दूसरी कुछ महिलाएँ केवल फील्ड में काम करने वाली जासूस थीं। यह लगभग उस समय की बात है जब गोपनियता या निजता को भारत में मौलिक अधिकार का दर्जा दिया ही गया था। इन महिलाओं से साथ की गयी मेरी बातचीत में प्राइवेट खोजबीन या जासूसी करने के कारोबार और महिलाओं की इस काम में भूमिका पर ध्यान दिया जा रहा था। इस कारोबार के पूरी तरह से कानून के दायरे में रहते हुए नीतियों के अनुसार काम करने के बारे में पूरी तरह से जानकारी इसलिए नहीं है क्योंकि भारत में प्राइवेट खोजबीन का कारोबार ज़्यादातर असंगठित क्षेत्र में ही बढ़ और फलफूल रहा है। 

महिलाओं को प्राइवेट जासूसी करने के इस काम के लिए खासतौर पर उपयुक्त समझा जाता है। इस काम को करने के लिए किसी विशेष योग्यता की भी ज़रूरत नहीं होती। आपको केवल तेज़ दिमाग और बहुत सब्र की ज़रूरत होती है। इसके अलावा महिला प्राइवेट जासूस अक्सर जेंडर आधार पर निर्धारित भूमिकाओं का बखूबी इस्तेमाल करती हैं। पूछे जाने पर एक महिला जासूस ने बताया, “आज के समय में, पुरुष और महिलाएँ, दोनों ही किसी महिला से अपनी बातें बेहिचक साझा कर लेते हैं क्योंकि उन्हें आदमियों की बजाय महिलाओं पर जल्दी भरोसा हो जाता है। ऐसे में, हम इसका लाभ उठाते हैं”। महिला ने फिर आगे कहा, “हम जब भी किसी खोजबीन के लिए जाते हैं, तो हम ऐसा माहौल तैयार करने की कोशिश करते हैं कि वह व्यक्ति, जिससे हम कुछ जानकारी लेना चाहती हैं, हमारे द्वारा बताई गयी हमारी समस्या को हल करने में हमारी मदद करने को आतुर हो जाता है। मैं कहीं भी इसलिए जा सकती हूँ क्योंकि मैं जानती हूँ कि कोई भी पुरुष मेरे साथ असभ्यता से पेश नहीं आएगा और न ही मुझ पर सीधे-सीधे शक करेगा”। एक अन्य महिला ने बताया, “घर पर रहने वाली महिलाएँ स्वभाव से ही शक्की होती हैं। शक करने की यह प्रवृति हमारे इस काम में बहुत सहायक होती है क्योंकि शक हुए बिना, खोजबीन कर पाना संभव ही नहीं है”।   

ये प्राइवेट जासूस अपने काम में अलग-अलग नामों, भेष, काम-धंधे, नकली बालों के विग, कपड़े, फर्जी विजिटिंग कार्ड आदि का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन जासूसी करना किसी भी तरह से कोई बहुत तड़क-भड़क वाला काम नहीं है। इस काम में हो सकता है आपको कई-कई दिनों तक गली के किसी मोड़ पर खड़े रहकर किसी का इंतज़ार करना पड़े, घर पर काम करने वाले नौकरों और चौकीदारों से बातचीत करनी पड़े, भीड़भाड़ वाली जगहों पर पैदल या बाइक पर किसी का पीछा करना पड़े, मुसीबत पड़ने पर बचने के लिए झूठ बोलकर जान बचानी पड़े, हमेशा नए पैंतरे बदलने पड़ें और मौका पड़ते ही किसी जगह को छोड़ तुरंत वहाँ से निकल जाना पड़े। प्राइवेट जासूसों को हमेशा पकड़े जाने का डर रहता है, फिर यह चाहे उस व्यक्ति द्वारा पकड़े जाना हो जिसकी जासूसी की जा रही है अथवा पुलिस या अधिकारियों द्वारा। “हम जब कहीं से निकलते हैं तो बहुत धीमे से और ध्यान से निकलते हैं ताकि हम यह पक्का कर सकें कि कोई हमारा पीछा तो नहीं कर रहा है। और डर तो लगता ही है – ऐसा नहीं है कि डर नहीं लगता – क्योंकि पकड़े जाने पर सवालों के उत्तर दे पाना बहुत कठिन हो जाता है। हम अपने पास अपनी असली पहचान के कागजात कभी नहीं रखते। मान लीजिये मैंने किसी का विडियो शूट किया और उस आदमी ने मुझे पकड़ लिया और अपना फोन चेक कराने के लिया कहा तो ऐसे में क्या होगा? हम तो फंस गए। अब समय के साथ हम पकड़े जाने के इस डर से मुक्ति पा चुके हैं क्योंकि यह तो हमारे काम का ही हिस्सा है”। अनेक परिस्थितियों में कई बार इस काम में महिलाओं की सुरक्षा भी एक चुनौती बन जाता है। ऐसे जोखिम भरे कामों में वे अपने साथ किसी पुरुष साथी को लेकर जाती हैं और उन्हें कुछ दूरी बना कर खड़े रहने के लिए कहती हैं।     

एक प्राइवेट जासूस का काम केवल अपने क्लाईंट को सबूत उपलब्ध कराने तक ही सीमित होता है। सबूत मिल जाने के बाद यह क्लाईंट का काम है कि वह उस सबूत को पुलिस को दे या फिर जैसे चाहे इस्तेमाल करे। हालांकि इकट्ठा किए गए सबूतों का गलत इस्तेमाल भी किया जा सकता है लेकिन ये प्राइवेट जासूस हमेशा यही सोच कर काम करते हैं कि वे केवल सच्चाई का पक्ष ले रहे हैं। इन्हें लगता है कि ये पुलिस का काम कर रहे हैं, एक ऐसा काम जिसके लिए इन्हे कोई इज्ज़त नहीं मिलती और न ही ऐसा करने का कोई अधिकार ही होता है। “लोग आँखें मूँद कर किसी को भी एमबीबीएस में दाखिला लेने के लिए 15-20 लाख रुपये दे देते हैं। वे इस पैसे का भुगतान नकद करते हैं, और फिर बाद में हमारे पास आकर बताते हैं कि उस व्यक्ति ने पैसा लेकर एड्मिशन नहीं दिलाया और अब वो खोजने पर  भी नहीं मिल रहा। ऐसी सूरत में वे पुलिस के पास भी नहीं जा सकते क्योंकि पुलिस कहती है कि वे ऐसे छोटे मामलों की छानबीन नहीं करती। हमारा काम केवल इतना होता है कि हम उस आदमी को ढूंढ कर उसका पता ठिकाना अपने क्लाईंट को बता देते हैं। इसके बाद उस आदमी से पैसा निकलवाना हमारा काम नहीं होता – वह तो पुलिस का काम है। यह सब कुछ असल में पुलिस का ही काम होता है पर जब पुलिस इसे नहीं कर पाती तो हम मदद करते हैं। इसपर सरकार और लोग कहते हैं कि हम गैरकानूनी काम कर रहे हैं”। एक दूसरी जासूस ने बताया, “अगर हमारे पास यह सब करने की अथॉरिटी या पावर हो तो संभव है कि अपराध की दर भी कम हो जाए। आपसी मामलों को समझौते से सुलझा लेने से जुर्म होना कम हो सकता है। अभी अगर हम किसी अपराधी को खोज भी लेते हैं तो हमें पुलिस के पास जाने में हिचक होती है लेकिन कहीं अगर हमें इस काम का अधिकार होता और हम खुल कर अपना काम कर सकते तो हम बेहिचक पुलिस के पास जा सकते थे। ऐसा होने से बहुत मदद मिलती क्योंकि दूसरे देशों में प्राइवेट जासूसों के पास काम करने के लाईसेंस होता है लेकिन हमारे यहाँ ऐसा कुछ नहीं होता”।    

प्राइवेट जासूसों के वकीलों के साथ अच्छे संबंध होते है जो बहुत बार सबूत इककट्ठा करने के लिए इनकी मदद लेते हैं। जासूसों द्वारा ये सबूत कानूनी रूप से सही तरीके से ही इककट्ठे किए जाने होते हैं नहीं तो इककट्ठा किया गया सबूत अदालत में स्वीकार्य नहीं होता। यहाँ ‘सही तरीके’ शब्द का प्रयोग सापेक्ष रूप में किया गया है। जासूसी का बिज़नस चलाने वाले बहुत से लोगों से बात करने पर मुझे पता चला कि चूंकि इस काम की कानूनी मान्यता नहीं है इसलिए कुछ ही काम ऐसे हैं जिन्हें ये नहीं कर सकते – जैसे किसी व्यक्ति के टेलीफ़ोन काल्स का ब्योरा एकत्रित करना, जो गैर-कानूनी है। “अगर मैं चाहती तो मामले से जुड़े कॉल के रेकॉर्ड्स गैर-कानूनी तरीके से निकलवा सकती थी – मैं चाहती तो सभी पते भी मिल सकते थे, उससे मेरा काम आसान हो जाता – लेकिन हम ऐसा नहीं करते क्योंकि हम कानून के दायरे में रहकर काम करते हैं। खास कर के यदि हम तलाक के किसी मामले पर काम करते हैं, तो हमारे द्वारा इकट्ठे किए गए सभी सबूत कानूनी रूप से मान्य होते हैं क्योंकि इन्हें अदालत के सामने प्रस्तुत किया जाना होता है”। 

भारत में हालात अब आज से 20 साल पहले वाले नहीं रहे। आज हम रोज़ ही देखते हैं कि इन नयी तकनीकों के आसानी से उपलब्ध हो जाने से ज़िंदगी के रंग-ढंग कितने बदल गए हैं, झूठ बोलना कितना आसान हो गया है…पर साथ ही साथ, अब पकड़े जाने का खतरा भी उतना ही अधिक बढ़ गया है!” जब मैंने की-चेन वाले कैमरे के बारे में जानना चाहा, जो देखने में बिलकुल चाबी के छल्ले जैसा ही दिखता था, तो मुझे कहा गया कि मैं जासूसी के उपकरण बेचने वाले एक स्टोर में जाकर देखूँ। इस स्टोर के बाहर बड़े-बड़े साइनबोर्ड लगे हैं और बड़ी-बड़ी डिस्प्ले विंडोज में कई तरह के कैमरे लोगों के देखने के लिए रखे हैं। काउंटर पर पहुँचने पर मैं बिलकुल भौचक्की और दुविधा में आ गई। मुझे दीवार पर बनी शेल्फ पर अनेक तरह के हाथ धोने के साबुन के डिस्पेंसर, लेंस साफ़ करने के द्रव्य की बोतलें, मोबाइल फोन चार्जर, दवा की शीशियाँ, कुछ खिलौने और दूसरी तरह की ऐसी ही कुछ चीज़ें देखने को मिलती हैं। काउंटर पर बैठे व्यक्ति से बात करने पर ही मुझे सब कुछ समझ में आने लगता है। “हमारी दुकान एक डॉक्टर के क्लीनिक की तरह है, आप हमें अपनी समस्या बताइए और हम आपको उसका समाधान दे देंगे, जो खासकर आपकी ज़रूरत को ध्यान में रखकर तैयार किया गया हो। हम घर पर इस्तेमाल में आने वाली किसी भी चीज़ को आपके लिए एक कैमरे में तब्दील कर सकते हैं।“   

दुकान पर उपलब्ध विभिन्न तरीके के प्रोडक्ट को देख कर, और ज़रूरत के मुताबिक किसी भी वस्तु को आसानी से जासूसी करने के कैमरे में तब्दील कर दिए जाने की सुविधा को देख कर कोई भी व्यक्ति आसानी से भ्रमित हो सकता है। पूरी दुनिया में, खासकर भारत में, अधिकतर महिलाओं के खिलाफ जासूसी के उपकरणों का गलत इस्तेमाल किए जाने अनेक उदाहरण देखने को मिलते हैं। ऐसा कहा जाता है कि शक्ति और सत्ता मिलने के साथ ज़िम्मेदारी भी आ जाती है, लेकिन इस मामले में पाया गया है कि ज़िम्मेदारी का बोध कहीं न कहीं उपकरण बेचने वाले और इनका इस्तेमाल करने वालों के बीच कहीं अधर में टंगा सा दिखता है। हालांकि उस दुकान के मालिक ने मुझे बताया कि वे ग्राहक के बारे में पूरी खोजबीन किए बिना कोई वस्तु नहीं बेचते, लेकिन वही दुकानदार ऑनलाइन तरीके से बिक्री के लिए भी एक स्टोर चलाते हैं जहाँ शायद सामान खरीदने वाले ग्राहकों के इरादों को पूरी तरह समझना मुश्किल होता है। “आप एक चाकू खरीदने के लिए उसी दुकान पर जाते हैं जिसके पास यह चाकू बेचने का लाईसेन्स होता है। बिलकुल ऐसे ही मैं कैमरे बेचता हूँ क्योंकि मेरे पास इन्हे बेचने का पर्मिट है। अब आप इस चाकू से क्या करते हैं – सब्जियाँ काटते हैं या कुछ और – यह तो मेरे हाथ में नहीं है”।     

प्राइवेट जासूसी करने के बिज़नस के बारे में आम धारणा यह है कि इसमें लोगों के बारे में जानकारी इककट्ठा करने, खासकर शादी-ब्याह के संबंध जोड़ने से पहले दोनों पक्षों की जानकारी इककट्ठा करने का काम किया जाता है। लेकिन देखा जाए तो इस तरह के काम करने वाले की ज़्यादातर आमदनी कंपनियों से अपने प्रतिद्वंदीयों के बारे में जानकारी लेने, लोगों को काम पर रखने से पहले उनकी जांच करवाने, अंतर्राष्ट्रीए ग्राहकों की जानकारी पाने आदि के काम से होती है। तलाक के मामलों में जानकारी इककट्ठी करवाने या शादी के बाद अपने पति/पत्नी पर नज़र रखने के काम (विवाह के बाद की जासूसी) से भी इन लोगों को खासा बिज़नस मिलता है। आजकल माँ-बाप अपने जवान हो रहे बच्चों पर भी नज़र रखना चाहते हैं। “आज ज़्यादातर माँ-बाप नौकरीपेशा हैं, उन्हें अपने जीवन में दूसरे कामों से ही समय नहीं मिलता कि वे बच्चों पर नज़र रख सकें। जब उन्हें बच्चों को लेकर किसी तरह का शक होता है तो वे हमारे पास आते हैं। आजकल नशाखोरी और किसी से अफेयर होना, समलैंगिकता से जुड़े केस आजकल आम बात हो गए हैं। इसीलिए ज़्यादातर शादी का रिश्ता पक्का करने से पहले लोग यह जान लेना चाहते हैं कि व्यक्ति कहीं समलैंगिक या गे तो नहीं है। हम किसी व्यक्ति को देखकर, उसकी संगत के दोस्तों को देखकर इस बारे में बता सकते हैं। हम यह तो साबित नहीं कर सकते कि कोई व्यक्ति अकेले में क्या करता है, लेकिन व्यक्ति को, उसके दोस्तों को देखकर इस थोड़ा-बहुत अंदाज़ा हमें लग ही जाता है”।     

आज के समय में, अपनी सहूलियत/ सुरक्षा या जानकारी रखने के उद्देश्य से दूसरों पर नज़र रखने और उनके बारे में पता करते रहने की ज़रूरत के चलते कुछ भी कर पाना असंभव या अनैतिक नहीं रह गया है। आज हमारे बारे में कोई भी जान सकता है, अगर वह इसके लिए उचित कीमत देने और खर्च करने को तैयार हो। प्राइवेट जासूस का काम करने वाली ये महिलाएँ इसलिए काम कर पाती हैं और सफ़ल होती हैं क्योंकि इन्हें अपने काम पर भरोसा है। इन महिलाओं को पता है कि लोग उनके पास तभी आते हैं जब स्थिति उनके हाथ से निकाल जाती है और ऐसे में उनके लिए उम्मीद की आखिरी किरण ये प्राइवेट जासूस ही होते हैं। छोटी उम्र के एक फील्ड इनवेस्टिगेटर बताती हैं, “मेरी उम्र की लड़कियां अक्सर पुरुषों के हाथों गुमराह हो जाती हैं। उनका पति उन्हें छोड़ देता है या फिर शादी के बाद पता चलता है कि पति तो पहले से ही शादी-शुदा है। इस तरह के मामले बहुत ज़्यादा देखने को मिलते हैं। मैंने इस काम को करते हुए जो कुछ सीखा है, अब मुझे कोई मूर्ख नहीं बना सकता”। कुछ देर चुप रहने के बाद एक बनावटी मुस्कुराहट के साथ वह फिर कहती है, “अगर कोई ऐसा करता है, तो उसे ऐसा कर पाने में सफल होने के लिए बहुत मेहनत करनी होगी”।   

सोमेन्द्र कुमार द्वारा अनुवादित 

To read this article in English, please click here.

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