A digital magazine on sexuality, based in the Global South: We are working towards cultivating safe, inclusive, and self-affirming spaces in which all individuals can express themselves without fear, judgement or shame
He sighs and says – aapko apni dil ki baat bataane ka mann kar raha hai (I want to tell you a secret, a matter of my heart). I nod and encourage him to do so. Aap bura toh nahi maanengi? (You won’t feel offended, will you?) Confused and immensely curious, I assure him that I will not take offense. Asal mein, mera mechanic ka kaam tha aur who theek hi tha lekin mere dost ne auto drivering karke ye seekha ki auto drivering karne se sex karna bahut easy ho jaata hai (In reality, I was working as a mechanic and everything was going fine but one of my friends who became an auto driver soon learned that it was very easy to have sex this way).
Nathicharami takes sexuality and sexual desire away from upper-class, Gucci-clad women and makes its viewers acknowledge its existence in the lives of women (middle-class wives and widows, in the case of this film) who are invisibilised, both in the society they live in and as subjects of popular content.
यहाँ लड़कियों के लिए सेक्स करना सामजिक रूप से बहिष्कृत हो जाने जैसा अनैतिक काम है या कहिये कि यह गैर-कानूनी ही है, हालांकि कानूनन इसे गैर-कानूनी घोषित नहीं किया गया है।
सेक्स या भावनात्मक जुड़ाव के लिए दोनों तरफ़ से जुड़ाव होना ज़रूरी है। विकलांगता के साथ जी रहे व्यक्ति को स्वाभाविक रूप से थोड़ा ज़्यादा देना होगा जिससे कि रिश्ता चल सके।
ऐसी जगहों की बहुत कमी है जहां विकलांगता के साथ जी रहे लोग अपने यौनिक अनुभवों या यौनिक जिज्ञासा के बारे में खुलकर बात कर सकें। खास तौर पर विकलांगता के साथ जी रहे युवाओं पर हर वक़्त निगरानी रहती है जिसका मतलब है कि वे यौन अनुभवों से वंचित रह जाते हैं और अपनी यौनिकता को समझ नहीं पाते।
अब मेरे लिए दोस्ती, बीडीएसएम और सेक्स के परिदृश्य को समझना, संभालना, पहले की बनिस्बत आसान तो है मगर फिर भी कहीं धुंधली लकीरें हैं।कभी-कभी पुरुष मित्रों की आँखों में थोड़ी सी ज़बरदस्ती दिखती है, उनकी साथियों की आँखों में थोड़ा सा शक, या महिला-मित्रों की आँखों में मेरी यौनिक पहचान के बारे में वही अनचाही अटकलें भी।
क्या हमें पोक्सो कानून के इन प्रावधानों को चुनौती नहीं देनी चाहिए क्योंकि इस कानून के अंतर्गत बच्चों की स्वायत्तता और उनके मौलिक अधिकारों को नज़रंदाज़ करते हुए प्रभावी रूप से उनके बीच आपसी सहमति से हर तरह के यौन संपर्क और व्यवहार को अपराध मान लिया गया है?
किसी व्यस्क व्यक्ति द्वारा अपनी इच्छा से पैसों के भुगतान के बदले दी जाने वाली यौन सेवाओं को सेक्स वर्क (यौन कर्म या आम बोलचाल की भाषा में धंधा करना) कहते हैं। सेक्स वर्क की इस परिभाषा का कौन सा भाग ‘काम’ के बारे में हमारी सोच का उल्लंघन करता है? क्या पैसे के बदले दी जाने वाली सेवाएं? या फिर किसी व्यस्क व्यक्ति द्वारा पैसे के बदले दी जाने वाली सेवा? या, वयस्कों द्वारा आपसी सहमति से पैसे के बदले दी जाने वाली सेवा?
सच्चाई इस सब से परे थी; सच्चाई ये थी कि मैं एक किशोर लड़की थी जिसके मन में अनेको आकांक्षाएँ थी, वासना थी, लालसा थी और इन सब को पूरा करने के तरीके ढूँढने की ललक भी थी।
While the idea of older adults and sex is a taboo in itself, the idea of older adults exploring their sexuality, by engaging in same-sex relationships, or by experimenting with the way the look, or by becoming more sexually active, causes even greater discomfort.
But here is the thing. In heterosexual relationships, how are women and men going to learn to see women’s desires if the world does not see them? If the world is shaped to conform to a certain type of man’s desires only? Where is consent without a diversity of desires and a galaxy of desirability?
I realise that a lot of men want (and need) to dominate women not because it is mutually pleasurable but because it reinforces patriarchal hierarchies. The taboo around kink, as a larger space of exploration, and BDSM, as a part of it, only furthers the violence, intensifying the apparent mystery of these subjects.