A digital magazine on sexuality, based in the Global South: We are working towards cultivating safe, inclusive, and self-affirming spaces in which all individuals can express themselves without fear, judgement or shame
“Historically, feminism and fashion have been pitted against one another,” writes Manjima Bhattacharjya in her book, Mannequin. It’s a dilemma the fashion industry has struggled with for decades – being perceived as flippant, or existing in a vacuum”
He sighs and says – aapko apni dil ki baat bataane ka mann kar raha hai (I want to tell you a secret, a matter of my heart). I nod and encourage him to do so. Aap bura toh nahi maanengi? (You won’t feel offended, will you?) Confused and immensely curious, I assure him that I will not take offense. Asal mein, mera mechanic ka kaam tha aur who theek hi tha lekin mere dost ne auto drivering karke ye seekha ki auto drivering karne se sex karna bahut easy ho jaata hai (In reality, I was working as a mechanic and everything was going fine but one of my friends who became an auto driver soon learned that it was very easy to have sex this way).
Nathicharami takes sexuality and sexual desire away from upper-class, Gucci-clad women and makes its viewers acknowledge its existence in the lives of women (middle-class wives and widows, in the case of this film) who are invisibilised, both in the society they live in and as subjects of popular content.
काम करने वाली जगहों पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न एक कड़वी सच्चाई है। यह महिलाओं के अस्तित्व, उनकी सेहत और श्रम को चोट पहुंचाता है; साथ ही उन्हें रोज़गार छोड़ने तक पर मजबूर कर देता है। महिला श्रमिकों को यह मौका ही नहीं मिलता कि वो पुरुषों की तरह बराबरी से अपना योगदान दे सकें। इस गैर-बराबरी की वजह से संस्थाओं, फैक्ट्री, और कम्पनिओं और इन जैसी तमाम काम करने की जगहों को, समाज और देश की अर्थव्यवस्था को काफ़ी नुकसान हो रहा है।
यहाँ लड़कियों के लिए सेक्स करना सामजिक रूप से बहिष्कृत हो जाने जैसा अनैतिक काम है या कहिये कि यह गैर-कानूनी ही है, हालांकि कानूनन इसे गैर-कानूनी घोषित नहीं किया गया है।
आज मुझे लड़कियों के अपने हॉस्टल से निकले हुए तीन वर्ष हो चुके हैं, और मुझे लगता है कि हॉस्टल जीवन में मिली सभी सीखें आज भी मेरे यौनिक जीवन को सही दिशा देने में कारगर साबित हो रही हैं।
The concluding chapter reiterates the aims of the book, i.e., “to start critical conversations within the disciplines of psychology, social work, childhood studies, and family studies in India and to think about exclusions inherent in these disciplines.
ऑनलाइन डेटिंग पहली मुलाक़ात में किसी को अपने घर बुला लेने जैसा लग सकता है, लेकिन फ़र्क़ ये है कि हम फ़ैसला कर सकते हैं कि हम उन्हें अपने घर और अपनी निजी ज़िंदगी के कौन-से हिस्सों में जगह देने के लिए तैयार हैं।
सेक्स या भावनात्मक जुड़ाव के लिए दोनों तरफ़ से जुड़ाव होना ज़रूरी है। विकलांगता के साथ जी रहे व्यक्ति को स्वाभाविक रूप से थोड़ा ज़्यादा देना होगा जिससे कि रिश्ता चल सके।
Tales delicately yet powerfully draws out the conflict between sex workers and feminism in India,at a time when a lot of feminists thought of prostitution through a SWERF lens[1].
ऐसी जगहों की बहुत कमी है जहां विकलांगता के साथ जी रहे लोग अपने यौनिक अनुभवों या यौनिक जिज्ञासा के बारे में खुलकर बात कर सकें। खास तौर पर विकलांगता के साथ जी रहे युवाओं पर हर वक़्त निगरानी रहती है जिसका मतलब है कि वे यौन अनुभवों से वंचित रह जाते हैं और अपनी यौनिकता को समझ नहीं पाते।