A digital magazine on sexuality, based in the Global South: We are working towards cultivating safe, inclusive, and self-affirming spaces in which all individuals can express themselves without fear, judgement or shame
In this interview with Shikha Aleya, Maya speaks with a deep knowledge of ground realities about the increasing informalisation of labour and its implications for gender and sexuality, and about what labour rights and inclusion mean in real terms.
यौनिकता पर संलाप या डिस्कोर्स नया नहीं है। समाज में हर प्रकार के विशेषज्ञों ने इस पर चर्चा की है। विज्ञान से लेकर अध्यात्म तक यौनिकता के प्रसंग विशेषज्ञों को रिझाते रहे हैं।
इस तरह से नाचना न केवल सार्वजनिक स्थानों पर अपनी मौजूदगी दर्ज करने का तरीका हो सकता है बल्कि यह अपने निजी शरीर में आनंद पाने का उपाए भी है – एक ऐसा आनंद जिसे आजतक केवल काम करते रहने में ही आनंदित होने तक सिमित कर दिया गया था।
हमें इस तरह से ढाला गया है कि तथाकथित ‘विकल्प’ जो हमारे संबंधों को परिभाषित करते हैं, वे भी हमारे लिए हुए विकल्प नहीं बल्कि समाज द्वारा सृजित हैं। हालाँकि, जैसा कि हमने देखा है, इन सभी चुनौतियों के बावजूद, महिलाएँ, जब वे खुद को व्यक्तियों के रूप में महत्वपूर्ण मानने लगती हैं, तो वे अपने परिवेश और परिवार के सदस्यों के साथ बातचीत करने की रणनीति तैयार करती हैं।
लिहाफ़ कहानी न केवल उस समय की अनकही सच्चाई का वर्णन है बल्कि इस कहानी ने महिला यौनिकता के निषेध समझे जाने वाले विषय और विषमलैंगिक विवाह सम्बन्धों के सन्दर्भ में भी महिलाओं की यौनिक इच्छा के विषय को लोगों के सामने उजागर कर दिया।
उर्दू शायरी की एक पूरी शैली है, ‘रेख़्ती’, जो औरतों के नज़रिये से लिखी गई है और जिसमें औरतों की ज़िंदगी और भावनाओं की बात होती है। ये ‘रेख़्ता’ का उल्टा है, जो कि मर्द के नज़रिये से लिखा गया साहित्य है।
कुछ अधिकार ऐसे होते हैं, जिन्हें जब तक छीन न लिया जाए, उनके होने का एहसास ही नहीं होता। तुम्हारे लिए किसी लड़की को पसंद करना, प्यार में पड़ना, उनके बारे में अपने दोस्तों से और परिवार वालों से बात करना बिलकुल स्वाभाविक है। तुम जैसा सोचते हो, जैसा महसूस करते हो वह आसानी से कह सकते हो।