A digital magazine on sexuality, based in the Global South: We are working towards cultivating safe, inclusive, and self-affirming spaces in which all individuals can express themselves without fear, judgement or shame
इन प्लेनस्पिक के इस काम व यौनिकता के मुद्दे को सुनने के बाद पहला विचार मन में आया कि मैं कार्यस्थल पर होने वाली यौन हिंसा के बारे में लिखूंगी। फिर ऑफिस में रोमांटिक रिश्तों व लव स्टोरी के बारे में याद आया जो हम सब अपने काम के आसपास देखते या सुनते आये हैं और यह बॉलीवुड फिल्मों का भी पसंदीदा मुद्दा रहा है। मुझे ये बड़ा ही रोमांचक लगा, और जब मैंने लिखना शुरू किया तो एक सवाल मेरे दिमाग में आया – क्या कार्यस्थल पर इस मुद्दे से सम्बंधित कोई नीति है?
किसी शास्त्रीय नृत्य को देखने वाले एक आम दर्शक के रूप में मुझे लगा कि यह सब किस तरह से मुझसे और मेरे जीवन से सम्बद्ध है। इन नृत्य प्रदर्शनों में दिखाए जाने वाले कथानक अक्सर वे कहानियाँ होती है जिन्हें मैंने बचपन से सुना है फिर भी मुझे इसमें कोई विशेष रूचि नहीं लगती। लेकिन सुश्री रत्नम के दृष्टिकोण के आधार पर, पुराने कथानकों को आधुनिक रूप देने के उनके प्रयासों और किसी पुरानी परंपरा के लुप्त हो जाने पर दुःख प्रकट करने के स्थान पर नृत्य को एक नया रूप देने का के प्रयास को देखते हुए भरतनाट्यम और अन्य शास्त्रीय नृत्य अब और अधिक प्रसांगिक हो जाते हैं जिनसे आप आसानी से जुड जाते हैं।
आज के समय में जब विश्व में एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने की घटनाएँ बढ़ी हैं और सामाजिक मान्यताओं में भी बदलाव आया है, ऐसे में केवल विवाह ही, महिलाओं के एक जगह से दूसरी जगह प्रवास करने का एकमात्र कारण नहीं रह गया है।
मैं उन विभिन्न जिमों के बाथरूम में बिताए अपने अनुभवों को याद कर सकता हूँ। पुरुषों का बाथरूम एक अद्भुत जगह होता है यह देखने के लिए कि कैसे यौनिकता अपने अलग-अलग पहलुओं में ज़ाहिर होती है।
अधिकांश पूर्णकालिक (और यहाँ तक कि अंशकालिक लोगों के मामले में भी) घरेलू काम के लिए रखी महिलाएँ जो पैसे कमाती हैं वह उनके काम की तुलना में न के बराबर है, और जो फायदे उन्हें दिए जाते हैं (छुट्टियाँ, स्वास्थ्य देखभाल, पेंशन) वो काम पर रखने वाले की उदारता और अधिकतर उनकी मर्ज़ी पर निर्भर है।
केवल एक तरह से जीवन जीने, या अपनी यौनिकता को अनुभव करने से अधिक और भी बहुत कुछ होता है। इसके लिए ज़रूरी है कि पहले तो हम अपने मन में इसे स्वीकार करें और इसके लिए तैयार हों।
केवल एक तरह से जीवन जीने, या अपनी यौनिकता को अनुभव करने से अधिक और भी बहुत कुछ होता है। इसके लिए ज़रूरी है कि पहले तो हम अपने मन में इसे स्वीकार करें और इसके लिए तैयार हों।
ज जब मैं अपनी माँ और चेची के अनुभवों के बारे में एक इंटरसेक्शनल यानी अंतर्विभागीय नारीवादी नज़रिए से लिख रही हूँ, तो मैं यह सोचती रह जाती हूँ कि उनके शारीरिक और भावनात्मक श्रम का भुगतान कौन करेगा।
प्यार की अभिव्यक्ति कई रूपों में की जा सकती है और इसी तरह यौनिकता और इसे व्यक्त करने के भी कई तरीके होते हैं। हम सच्चाई को अधिक करीब से देख सकते हैं अगर हम इन सभी तरीकों को समझे और समग्र रूप से जाने।
एक औरत के परिवारवाले अक्सर उसके दोस्तों को उसकी ज़िंदगी का एक ज़रूरी हिस्सा नहीं समझते। लड़कियों को ऐसी मतशिक्षा दी जाती है कि उनके जीवन में दोस्त सिर्फ़ तब तक हैं जब तक उनकी शादी नहीं हो जाती। इसलिए यह अनकही उम्मीद भी रहती है कि शादी के बाद एक औरत अपने दोस्तों को छोड़कर अपने पति के घरवालों और दोस्तों को अपना लेगी।