इन प्लेनस्पीक के लिए ये लेख लिखना मेरे लिए एक तीर से तीन निशाने जैसा रहा, पहला, संस्करण के लिए समीक्षा लिखना (जिसे मैं समीक्षा न कह कर, एक सारांश कहना चाहुँगी), दूसरा, मेरे स्वयं के लिए इस किताब से सीख लेना और तीसरा, जो इस किताब को पढ़ने के दौरान हुआ – ‘स्वयं की देखभाल’।
स्वयं की देखभाल के विषय से मेरा परिचय तारशी के साथ जुड़ने के बाद ही हुआ है। तारशी में हम हमेशा से यौनिकता एवं जेंडर जैसे संवेदनशील और निजी विषय पर काम करते रहे हैं और हमने 13 सालों तक यौनिकता पर काउंसलिंग के लिए हेल्पलाइन का संचालन भी किया है। तो स्वयं की देखभाल को समझने, उसके महत्त्व को उजागर करने और उसपर चर्चा के नए आयाम खोजना, एक तरह से, हमारे काम का हिस्सा रहा है। एक बात और है, तारशी में यदि हम स्वयं की देखभाल को एक राजनैतिक मुद्दा मानते हैं तो तारशी टीम के लोगों की अपनी खुद की देखभाल पर भी ज़ोर देते हैं। और इसी ‘ज़ोर-ज़बरदस्ती’ ने मुझे इस लेख को लिखने पर मजबूर कर दिया (जी हाँ, यह लेख लिखवाने के साथ-साथ छुपी मंशा यह भी थी कि मैं यह किताब ‘द आर्ट ऑफ़ एक्सट्रीम सेल्फ-केयर’ पढूँ और इसमें बताई गई स्वयं की देखभाल से जुड़ी कुछ बातें अपने जीवन में लागू कर सकूँ!)।
यदि आप स्वयं की देखभाल के विषय में चर्चा करें तो इसके महत्व को स्वीकार करने में किसी को भी ज़्यादा वक़्त नहीं लगता है, पर जब स्वयं की देखभाल के तरीकों को अपनाने या उनके लिए समय निकालने की बात होती है तो हम सभी थोड़े कंजूस हो जाते हैं। अक्सर हमें लगता है कि ये तकनीक या तो बहुत समय लेने वाली या बहुत खर्च वाली होंगी। प्रस्तुत है, शेरिल रिचर्डसन की लिखी किताब ‘द आर्ट ऑफ़ एक्सट्रीम सेल्फ-केयर’ (The Art of Extreme Self-Care) का एक सारांश जिसमें उन्होंने स्वयं की देखभाल से जुड़ी कुछ सरल तकनीकों के बारे में बताया है। इस लेख में मैंने शेरिल की बताई बातों को अपने परिवेश में ढालकर देखने की कोशिश की है, इसलिए आपको इस लेख में, किताब को पढ़ने के दौरान, मेरी मनःस्थिति की झलक भी मिलेगी। शेरिल ने अपनी इस किताब को १२ अध्यायों में बाँटा है और हर एक अध्याय स्वयं की देखभाल की एक तकनीक की बात करता है। अपनी इस किताब के ज़रिए शेरिल एक्स्ट्रीम सेल्फ-केयर मतलब स्वयं की परम देखभाल के विचार को प्रस्तुत करती हैं। इस किताब को १२ अध्याय में बाँटने के पीछे उनका मकसद हर एक तकनीक को एक महीने तक पालन करने से है, साल के १२ महीने, १२ तकनीकें और १२ अध्याय! अगर आप एक सरसरी निगाह डालें तो शेरिल की बताई किसी भी तकनीक में कोई कठिनाई नहीं आनी चाहिए, इस किताब में ऐसा कुछ भी नहीं है जो ‘दुनिया से अलग’ हो, या ऐसा कोई उपाय नहीं है जिसको करने में बहुत खर्च होगा। दिलचस्प बात ये है कि ‘तकनीक’ शब्द सुनते ही लगता है कि शायद शेरिल कुछ ऐसा बतायेंगी जो मैं न कर सकूँ, और यहीं से मेरे स्वयं की देखभाल का सफ़र भी शुरू हुआ, उनकी बताई हर तकनीक जीवन में बस एक छोटा सा बदलाव है, जो बड़ा असर कर सकता है। बर्नआउट को समझने और स्वयं की देखभाल करने से जुड़े अपने काम में भी मैंने यही देखा है कि जब हम प्रतिभागियों को स्वयं की देखभाल से जुड़े उपायों के बारे में बताते हैं तो ऐसी कोई प्रतिक्रिया नहीं होती कि ये तो कुछ अनजानी, अनोखी बात कह दी गई है। तो बड़ा सवाल यहाँ ये है कि जब ये सब कुछ इतना सरल है तो स्वयं की देखभाल इतनी मुश्किल क्यों है? इस सवाल का जवाब ढूँढने के लिए हमें अपने जेंडर, यौनिकता और नारीवाद के चश्मे को लगाना होगा। तब शायद आपको जेंडर और यौनिकता की स्वयं की देखभाल के साथ कड़ी जुड़ती दिख जाएगी… आइए देखें कैसे।
यह हमें इस किताब के पहले अध्याय में ही देखने को मिल जाता है, इसमें शेरिल हमें स्वयं को वंचित रखने की आदत को ख़त्म करने पर ज़ोर देती हैं। और जब यहाँ वंचित रखने की बात की जा रही है तो फेहरिस्त में बंगला, गाड़ी जैसी कोई बड़ी-बड़ी चीज़ें नहीं हैं, इसमें पूरी नींद ना लेना, भावनात्मक समर्थन के लिए गुहार ना करना, स्वयं के लिए समय ना निकालना जैसे काम शामिल हैं, जो एक आम दिन में हम कल पर टाल देते हैं या स्वयं के लिए इसे महत्वपूर्ण नहीं समझते। इस अध्याय में शेरिल पाठक से अपने स्वयं के लिए ऐसी ही एक फेहरिस्त को बनाने की सिफ़ारिश करती हैं और जिन भी चीज़ों से हमने स्वयं को वंचित रखा है उसे पूरा करने को कहती हैं। यूँ तो सुनने में ये अजीब लग सकता है कि कौन खुद को जानबूझ कर इन सब से वंचित रखना चाहेगा, पर एक पल रुक कर सोचें तो हमारे समाज की जेंडर व्यवस्था महिलाओं की इन ज़रूरतों को ज़रूरत मानता ही नहीं है। और फिर अगर आप एक महिला मानवाधिकार रक्षक के रूप में काम करती हैं तो इन सब के लिए समय निकाल पाना अपने आप में एक विलासिता है।
दूसरे अध्याय में शेरिल स्वयं से प्यार करने की बात करती हैं। शेरिल इसके लिए आईने का सहारा लेने की राय देती हैं। करना बस इतना है कि आईने के सामने खड़े होकर अपने अक्स की आँखों में आँखें डालकर कहना है ‘आई लव यू’…पर शर्त ये है कि बात दिल से निकलनी चाहिए और महसूस होनी चाहिए। और यहीं मुश्किल शुरू हो जाती है। क्योंकि जब हम आईने के सामने खड़े होते हैं तो हमें वो इंसान दिखाई देता है जिसने ‘गलतियाँ’ की हैं, जो शायद एक ‘अच्छे’ व्यक्ति, एक ‘अच्छे’ नागरिक या ‘अच्छे’ माँ/पिता/बहन/भाई/दोस्त/यौनिक साथी नहीं साबित हुए हैं, और फिर हम स्वयं को प्यार के काबिल नहीं पाते हैं। और एक ऐसे समाज में रहते हुए जहाँ शारीरिक छवि (बॉडी इमेज), एक ख़ास तरह की शारीरिक बनावट, और जेंडर एवं यौनिकता की शारीरिक अभिव्यक्ति पर ज़ोर दिया जाता है, उन लोगों के लिए ये एक बहुत ही सरल उपाय और भी नामुमकिन सा बन जाता है जो समाज के इस ‘आदर्श शरीर’ के खाँचे से बाहर होते हैं। पर सच्चाई यही है, कि देखभाल आप उसी की करना चाहेंगे जिससे आप प्यार करते हैं, तो स्वयं की देखभाल की शुरुआत स्वयं से प्यार करके ही होगी।
इस किताब का तीसरा अध्याय एक अजीब ही शीर्षक के साथ शुरू होता है ‘चलिए आपको निराश करते हैं’ (Let Me Disappoint You)। इस अध्याय में शेरिल इस बात की ओर ध्यान आकर्षित करती हैं कि कैसे हम सिर्फ़ इसलिए दूसरों को ना नहीं कह पाते क्योंकि हम खुद ना नहीं सुनना चाहते। शेरिल ना कहने के तरीकों की बात करती हैं और बताती हैं कि केवल इसलिए क्योंकि किसी को बुरा लगेगा, हम लगातार अपनी अनदेखी नहीं कर सकते, हमें ना कहने के तरीकों को सीखना होगा, उस व्यक्ति के लिए जिन्हें हम ना कह रहे हैं और स्वयं के लिए भी। शीर्षक पढ़कर, अपने मन में मैं इस निष्कर्ष पर पहुँच चुकी थी कि ये खंड मेरे लिए नहीं होगा, ये उन लोगों के लिए है जो मेरे हिसाब से ‘मतलबी’ और ‘सिर्फ़ अपना भला सोचने वाले’ हैं। और यही तो हमें सिखाया भी गया है, एक महिला के रूप में या यदि आप ‘मदद करने वाले पेशे’ में हैं तो कि आपकी ज़रूरत से ऊपर दूसरों की ज़रूरत है; आपको हमेशा दूसरों की मदद के लिए, उनके समर्थन के लिए तैयार रहना चाहिए… पर किस कीमत पर, ये कोई नहीं बताता।
चौथा महीना या अध्याय नियम को समर्पित है। शेरिल कहती हैं कि जीवन में लहरों जैसी लय और दस्तूर का होना बड़े लाभ दे सकता है। यहाँ फिर दिनचर्या में किसी भारी-भरकम काम को जोड़ने की बात नहीं की जा रही है, शुरुआत उन छोटे कदमों से भी की जा सकती है जो हमें ख़ुशी देते हैं जैसे कि नित्य टहलने जाना, ध्यान में बैठना, बागबानी करना आदि। शेरिल का कहना है कि ये नियम हमारे जीवन को एक लय देते हैं और हमें रोजमर्रा की हड़बड़ी से भी बचाते हैं।
अध्याय ५ मेरे लिए आइना देखने जैसा था, एक अप्रिय सच्चाई को सुनने जैसा था। इस अध्याय में शेरिल ‘मेरे काम का तरीका ही एकमात्र सही तरीका है’ विचार पर चिंतन करने को कहती हैं। इस अध्याय में शेरिल ‘जाने देने’ या ‘Letting Go’ के विचार का समर्थन करती हैं जो स्वयं की देखभाल के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। मुझे लगता है हम में से कई लोग इस समस्या से जूझ रहे होते हैं, हर चीज़ का नियंत्रण अपनी मुठ्ठी में रखने की समस्या। कम से कम मैं तो आधे से ज़्यादा काम सिर्फ़ इसीलिए खुद करती हूँ क्योंकि कोई और उस काम को उस तरीके से नहीं कर पायेगा जैसे मैं करती हूँ… और अगर करेगा भी तो मुझे उसको दोबारा अपने तरीके से किए बिना चैन नहीं आएगा। इस अध्याय ने मुझे ये सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या मैं सच में ऐसी हूँ या महिला होने के नाते मुझे ये सिखाया गया है क्योंकि ये वो भूमिकाएँ हैं जो मुझे कभी अपने जेंडर की वजह से, तो कभी अपने काम की वजह से निभानी होती हैं। और इस बात को निश्चित करने के लिए कि मैं अपनी जेंडर भूमिकाओं का सही से पालन करूँ, हर सही पालन पर मुझे पुरस्कार मिलता है और गलत पर दंड। खुद को साबित करने की इस पशोपेश में हम कभी भी दूसरों से मदद नहीं मांगते और फिर ये शिकायत भी रहती है कि सारे काम का भार तो हमारे ऊपर ही है, हम अपनी देखभाल कब करें।
अध्याय 6 को समझना मेरे लिए आसान था, करना आसान था या नहीं ये दूसरी बात है। इस अध्याय में शेरिल ऐसी बातों की एक लिस्ट बनाने की बात करती हैं जो आप किसी भी कीमत पर नहीं करेंगे, जैसे यदि आप बीमार हैं तो किसी कीमत पर अपने ईमेल नहीं देखेंगे, या यदि कोई अपमानजनक बात कहता है, तो आप चुपचाप नहीं सुन लेंगे। ये लिस्ट बनाना आसान था, ये मैं इसलिए कह रही हूँ क्योंकि यौनिकता से जुड़े हमारे काम में अनेकों बातें हैं जो हम किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करते, जैसे किसी की जेंडर पहचान के आधार पर उनकी आलोचना करना, या फिर किसी की शारीरिक बनावट (जो किसी विकलांगता की वजह से भी हो सकती है) पर टिपण्णी करना, या फिर किसी की एचआईवी स्थिति के बारे में बताना, आदि। इसी तर्ज़ पर और शेरिल के दिए उदाहरणों के आधार पर लिस्ट बन ही गई… बात उस पर अमल करने की थी।
अलगे अध्याय में शेरिल उस बात को कहती हैं जो तारशी में अपने स्वयं की देखभाल से जुड़े काम में हम अक्सर कहते है, आपकी पहुँच में ऐसा कोई स्थान ज़रूर होना चाहिए जो आपकी आत्मा को शांति देने वाली जगह हो। यह ‘स्थान’ कोई भौतिक स्थान हो ऐसा कोई ज़रूरी नहीं है, ये वो जगह भी हो सकती है जहाँ आप अपने दिन का ज़्यादातर समय व्यतीत करते हैं, जैसे ऑफिस में आपकी टेबल, घर का कोई कमरा या किचन या फिर कोई पार्क या नदी का किनारा। हम अपने वातावरण में बदलाव लाकर भी उसे अपने लिए पुष्टिकारक या पोषित करने वाला बना सकते हैं। सुनने में भले ही ये एक अजीब बात लगे पर इससे फ़र्क पड़ता है, ये आज़माई हुई बात है।
अगले अध्याय में शेरिल व्यक्ति की संवेदनशीलता के बारे में और उसे संजोने के बारे में बात करती हैं। अक्सर हम दुनिया को यही दिखाने में व्यस्त होते हैं कि हम कितने दृढ़ एवं सशक्त हैं और हमें कोई भी परेशानी हिला नहीं सकती। अजीब विडम्बना है, एक मानवाधिकार रक्षक और एक महिला के रूप में हमें चाहिए तो आपकी संवेदनशीलता, पर आपको संवेदनशील होने की इजाज़त नहीं है। शेरिल इस संवेदनशीलता को संजोने की, बचाकर रखने की बात करती हैं, उसी पल में रहकर, अपने लिए शांत माहौल बनाकर, नकारात्मक लोगों को अपनी ज़िन्दगी से दूर करके, आदि।
अध्याय ९ में शेरिल मन और शरीर के बीच सम्बन्ध की बात करती हैं, अपने शरीर की बात सुनने की और उसकी देखभाल करने की बात करती हैं। इस अध्याय में वे कुछ सुझाव देती हैं कि किस तरह हम समय-समय पर अपने शरीर एवं मन की ज़रूरतों की ओर ध्यान देकर उनकी देखभाल कर सकते हैं। अध्याय १० भी मन के ख्याल रखने से ही जुड़ा है, गुस्से की भावना को संभालना…यहाँ मतलब ये नहीं है कि गुस्सा मत करो, बल्कि कहा ये जा रहा है कि यदि आपको कोई बात दुःख पहुँचाती है तो प्रतिक्रिया करें, बस उस प्रतिक्रिया का तरीका आपके नियंत्रण में होना चाहिए। जहाँ अध्याय १० आपकी एक भावना को समझने की बात करता है, अध्याय ११ एक दूसरी भावना को खोजने की बात करता है, वो जिसे करने में आपको जोश महसूस हो, आपका पैशनया ज़ुनून, आपकी हॉबी या शौक; इसके लिए भी जीवन में थोड़ा समय निकालें। और कोई ज़रूरी नहीं है कि ये कोई खर्चीला काम हो, सिलाई, कढ़ाई, अलग-अलग तरह का खाना बनाना, पौधे लगाना, किसी पत्रिका से तसवीरें काट कर एल्बम बनाना – ये कुछ भी हो सकता है।
इस किताब का आखिरी अध्याय बिलकुल हमारे प्रशिक्षणों के आखिरी सत्र जैसा है, आगे की राह या आगे की तैयारी। शेरिल स्वयं की देखभाल के लिए एक फर्स्ट ऐड किट बनाने की बात करती हैं, वो किट जो आपको तब सहारा दे सके जब कुछ ठीक ना हो…क्योंकि ऐसा हो सकता है कि जब जीवन में कोई परेशानी आये तो हम अपनी देखभाल के लिए जो काम कर रहे हों वो रुक जाएँ, तब हमारे पास कोई ऐसी योजना होनी चाहिए जो हमें सहारा दे सके या मदद मुहैया करवा सके। उदहारण के लिए, कभी-कभी हमारा मन बहुत उदास हो जाता है और हमें समझ नहीं आता हम क्या करें, तब यदि किसी तरह हम स्वयं को उन कामों/चीज़ों के बारे में याद दिला सकें जिनको करने से हमें ख़ुशी मिलती है।
ये किताब स्वयं की देखभाल की शुरुआत के लिए एक बेहतरीन किताब है, मेरे लिए ये इस विचार पर मनन करने की शुरुआत ज़्यादा रही कि क्या मुझे एक महिला के रूप में, एक मानवाधिकार रक्षक के रूप में, एक विकलांग व्यक्ति के रूप में, एक “पिछड़ी जाति” के पुरुष के रूप में, एक युवा के रूप में, स्वयं की देखभाल का अधिकार है? इन सरल सी लगने वाली तकनीकों तक पहुँच है?