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जिम की जेंडर आधारित मांसपेशियां

A photograph of a person in a gym holding a barbell, his arm and leg visible in the frame.

हमारे कई सारे पहलु हैं; हम एक साथ कई चीज़ें हैं। हमारा जेंडर, संस्कृति, रिश्ते और करियर हमारी पहचान में ख़ुद को बुनते हैं। फिर भी, हमारा बर्ताव हमारे आस-पास के माहौल के आधार पर बदलता रहता है। इसका ज़्यादातर हिस्सा हमारी कंडीशनिंग और बाहरी कारणों जैसे घर और काम पर स्वीकृत बर्ताव पर निर्धारित होता है। फिर भी, जब हम अपने घरों या वाशरूम के एकांत में कपड़े उतारते हैं, तो हमारी पहचान की परतें प्याज़ के छिलके की तरह उतर जाती हैं। हम जो हैं, वह स्वभाव से ही नहीं, बल्कि अपने काम और ख़ुद की ज़िन्दगी में होने वाली घटनाओं के प्रति अपनी प्रतिक्रियाओं के माध्यम से भी बनते हैं।

हर जगह का अपना एक तरीक़ा होता है जिससे हम अपने आस-पास के लोगों और चीज़ों की तरफ़ आकर्षित होते हैं। यही बात फिटनेस क्लब और जिम, ख़ास तौर पर उनके चेंजिंग रूम के बारे में भी सच है। जब हम जिम, वाशरूम और सौना/स्टीम रूम में घूमते हैं, तो हम साफ़ तरह से मुँह-ज़बानी और बेज़बान सा संचार देखते हैं जो जेंडर पहचान के अलग-अलग उसूलों को व्यक्त करता है।

मैं उन विभिन्न जिमों के बाथरूम में बिताए अपने अनुभवों को याद कर सकता हूँ।  पुरुषों का बाथरूम एक अद्भुत जगह होता है यह देखने के लिए कि कैसे यौनिकता अपने अलग-अलग पहलुओं में ज़ाहिर होती है। इन जगहों में अनोखी ऊर्जा वाले विभिन्न प्रकार के पुरुषों को देखना कोई ग़ैर-मामूली बात नहीं है। हाइपरसेक्शुअलिटी से लेकर टॉक्सिक मैस्क्युलिनिटी तक, यौनिकता हर ओर अलग-अलग तरीक़ो से प्रकट होती है।  

कुछ मर्द दुबले-पतले थे और बाक़ी हट्टे-कट्टे व मज़बूत डील-डौल के थे। जो ज़्यादा एथलेटिक थे, वे अपनी ज़ोरदार कसरत के बाद शारीरिक रूप से बलवान और आक्रामक लगते थे। वहीं दूसरी ओर बाक़ी लोग, अपनी शारीरिक बनावट को निखारने या अपनी कमज़ोर आत्म-छवि को मज़बूत करने के लिए कोशिश पे कोशिश करने के बाद, थके हुए लौटते थे। कुछ लोगों को अपनी निजी ज़िन्दगी में अनुभव किए गए अलगाव से भी राहत मिली। कुछ लोगों में मैं एक भावनात्मक बोझ महसूस कर सकता था जो मर्दाना जेंडर की भूमिकाओं के अनुरूप होने के सामाजिक दबाव के कारण था। कई लोगों के लिए, जिम एक डर का माहौल बन जाता था।

एक दिलचस्प उपसमूह बॉडी-बिल्डरों का गुट था। अपनी मर्दाना पहचान के स्वाभाविक विस्तार के रूप में वे एक भारी आवाज़ का इस्तेमाल करते थे, अपनी बड़ी छाती या बाहों को दिखाते थे, और स्किन-टाइट टी-शर्ट पहनते थे। ऐसा लगता था कि बाहरी तौर पर सख़्त दिखने से उन्हें अपने अंदर के गुमान और डर को कभी उजागर नहीं करना पड़ेगा। जिम में मर्दानगी काफ़ी हद तक एक जिस्मानी रूप में समाविष्ट होती थी।

मैंने यह भी पाया कि जब पुरुषों को दूसरे पुरुषों के सामने कपड़े बदलने की ज़रूरत होती है तो वे असहज महसूस करते हैं। कुछ लोग अच्छी तरह से अपनी निर्मित मांसपेशियों और पेट को लचीला बनाने में गर्व महसूस करते हैं, जबकि बाक़ी उन्हें उत्सुकता से देखते हैं, अक्सर प्रशंसा में, या फिर यूँ कहूं तो कभी-कभी शायद उससे भी ज़्यादा। जब मैं उन पलों को देख रहा था, तो मुझे एहसास हुआ कि एक सुगठित शरीर की लगातार प्रशंसा करना स्वीकृति की एक मौलिक ज़रूरत को पूरा कर सकता है। मैंने पाया कि कुछ लोग अंदर ही अंदर एक कशमकश में फंसे हुए हैं। एक तरफ़, वे तौलिये में दूसरे मर्दों को देखकर असहज महसूस करते थे, लेकिन साथ ही, वे दूसरे मर्दों की शक्ल-सूरत से जलते भी थे। 

जिम के सौना और स्टीम रूम के बारे में भी कुछ रोचक कहानियाँ बताई जा सकती हैं। नियम के अनुसार, कमरे में केवल तौलिया लेकर अंदर जाया जा सकता था, जैसा कि मैंने देखा कि इससे कई मर्द असहज हो जाते थे। इससे मुझे यह भी एहसास हुआ कि हम अपने शरीर के साथ कितनी गहराई से जुड़े हुए हैं। हमारा शरीर हमारी यौनिकता और उसके बारे में हमारी भावनाओं को प्रभावित करता है। यह बदले में मानसिक कंडीशनिंग को प्रभावित करता है, जो फिर हमारे मानसिक परिदृश्य में भी पहचान को मज़बूत करता है। यह मानसिक परिदृश्य उस बर्ताव को क़ाबू में रखता है जो बाथरूम के मामले में बहुत ज़ाहिर था। तो देखा जाए, मैं यहाँ क्या कहना चाहता हूँ?

शायद यौनिकता को सिर्फ़ शरीर या मन या हमारे ज़रिये चुने गए विकल्पों तक सीमित नहीं माना जा सकता। यह इससे कहीं ज़्यादा है। यह मानव रूप में हमारी अभिव्यक्ति है जो इस दुनिया के बारे में हमारी आदतों, इच्छाओं, धारणा और ज्ञान के सभी पहलुओं को सूचित करती है। 

जिम अनौपचारिक अहंकार और लिंगभेद का भी एक स्रोत होते हैं। भारी शरीर वाले मर्दों को ऐसा लगता है कि वे सत्ता की स्थिति में हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि मांसपेशियां मर्दाना ताक़त का पर्याय हैं और सांस्कृतिक रूप से इसे ऊंचा दर्जा दिया जाता है। इसके अलावा, ये जगहें “लॉकर रूम टॉक” के लिए भी अनुकूल थीं – जहां उन्होंने महिलाओं, ट्रांस और नॉन-बाइनरी लोगों और उन पुरुषों को नीचा दिखाया जो उनके पुरुषत्व के आदर्शों से मेल नहीं खाते – जो मुझे व्यक्तिगत रूप से अच्छा नहीं लगता था। ये बातचीत न केवल व्यक्तिगत अहंकार का आयना थी, बल्कि जेंडर आधारित अहंकार का भी आयना थी। इसमें यह भी दिखा कि कैसे पुरुष वर्चस्व का समाज और विचारधारा पर क्या प्रभाव पड़ता है।

आज, जब हम जेंडर और यौनिक रुझान के बारे में बेहतर समझ रखते हैं, तो मुझे अचम्भा होता है कि दूसरे जेंडर के लोग ऐसी जगहों को कैसे देखते हैं। हम ऐसी जगहों पर ज़्यादा समावेशिता कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं? हम रूढ़िवादी जेंडर-आधारित भूमिकाओं को बढ़ावा देने और जेंडर के आधार से प्रदर्शन पर निगरानी रखने को कैसे रोक सकते हैं? जैसे, भारोत्तोलन कक्ष उन लोगों के लिए डरावना हो सकता है जो ‘पर्याप्त रूप से मर्दाना’ नहीं हैं या किसी और जेंडर के हैं क्योंकि भार उठाना अक्सर मर्दानगी से जुड़ा होता है। योग, क्रॉसफिट और बाक़ी फिटनेस कक्षाएं इन पारंपरिक भारोत्तोलन कक्षों के लिए एक समावेशी विकल्प प्रदान करती हैं।

अपने ख़्यालों को खुलकर ज़ाहिर करना बहुत ज़रूरी है। उन्हें मज़ाक का शिकार होने के डर से अपनी राय ज़ाहिर करने से हिचकिचाने की ज़रूरत नहीं है। फिर भी, इसके लिए हिम्मत की आवश्यकता होती है। मेरा मानना ​​है कि किसी धौंसिये की तरफ़ सहानुभूति का रवैया अपनाने से उसके साथ बहस करने की तुलना में बातचीत शुरू करने और एक अच्छा प्रभाव पैदा करने की ज़्यादा संभावना होती है। इसके अलावा, अगर दूसरे जेंडर के लोग भी इन जगहों पर रहेंगे और अपनी पहचान बनाने में साहसी होंगे, तो बाक़ी लोग भी अपने बर्ताव में सुधार लाने के लिए मजबूर होंगे। मेरा मानना ​​है कि जिम जैसी जगहों का इस्तेमाल जेंडर आधारित अंतरों को मज़बूत करने के लिए नहीं, बल्कि उन्हें कम करने के लिए किया जाना चाहिए। 

बड़े स्तर पर, हमारी शिक्षा प्रणाली को वर्तमान और भावी पीढ़ियों के लिए जेंडर आधारित संवेदनशीलता पर ध्यान लगाने की ज़रुरत है। यह बहुत ज़रूरी है कि सत्ता में बैठे लोग अपनी अति-पुरुषवादी मानसिकता को त्याग दें और दुनिया को हर जेंडर के लोगों के लिए सुरक्षित स्थान बनाएं।

लेकिन क्या यह कभी हक़ीक़त बनेगी? इसके लिए हमें इंतज़ार करके देखना होगा।


प्रांजलि द्वारा अनुवादित। प्रांजलि एक अंतःविषय नारीवादी शोधकर्ता हैं, जिन्हें सामुदायिक वकालत, आउटरीच, जेंडर दृष्टिकोण, शिक्षा और विकास में अनुभव है। उनके शोध और अमल के क्षेत्रों में बच्चों और किशोरों के जेंडर और यौन व प्रजनन स्वास्थ्य अधिकार शामिल हैं और वह एक सामुदायिक पुस्तकालय स्थापित करना चाहती हैं जो समान विषयों पर बच्चों की किताबें उपलब्ध कराएगा।

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Cover Image: Photo by Victor Freitas on Unsplash