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यौनिकता व सामाजिक वर्गभेद – ऑनलाइन माध्यमों की बदलाव लाने की क्षमता

अपने कंप्यूटर और फोन के माध्यम से ऑनलाइन स्थानों का अनुभव करने वाले एक व्यक्ति की छवि जिसमे उसके बाएं हाथ में एक स्मार्ट फ़ोन है, सामने मेज पर एक लैपटॉप और एक स्मरण पुस्तक रखी है

अपने इस लेख में मैं यह जानने की कोशिश करूंगी कि किस तरह से अब सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के कारण भारत में किशोरों और युवाओं के वर्ग और यौनिकता से जुड़े अनुभवों में बदलाव आ रहा है। इस जानकारी से इस सवाल का उत्तर खोजने की कोशिश है कि क्या ऑनलाइन माध्यमों और इसके साथ युवाओं का जुड़ाव वर्ग-आधारित पूर्वाग्रह को बदल सकता है की कैसे यौनिकता पर जानकारी का उपभोग और उत्पादन किया जाता है । दूसरे शब्दों में इसका मतलब यह है कि प्रत्येक वर्ग के लोग यौनिकता को इस समय अलग रूप में देखते और समझते हैं क्योंकि यौनिकता पर तैयार की जा रही विश्वसनीय सामग्री तक सभी की पहुँच नहीं हो पाती लेकिन क्या अब इंटरनेट के माध्यम से उपलब्ध हो पा रही ऑनलाइन सामग्री के कारण यह वर्गभेद समाप्त हो पाएगा, क्योंकि अब शहरी और ग्रामीण, सभी क्षेत्रों में इंटरनेट का प्रयोग बढ़ा है। प्रश्न यह है कि इंटरनेट के माध्यम से यौनिकता पर जानकारी उपलब्ध हो पाने से उन लोगों की जानकारी किस तरह से बढ़ेगी जिनके पास आमतौर पर सुविधाओं की कमी होती है और किस तरह से वे यौनिकता के बारे में उपयुक्त समझ विकसित कर पाएंगे। क्या ऑनलाइन जानकारी उपलब्ध हो पाने से युवा लोग उन कड़ी सामाजिक और सांस्कृतिक मान्यताओं की कमियों को जान और समझ पाएंगे जो अब तक उनकी यौनिकता को नियंत्रित करती चली आ रही हैं?

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इन सवालों के उत्तर खोज पाने के लिए ज़रूरी है कि सबसे पहले हम युवाओं के लिए इन डिजिटल तकनीकों की उपलब्धता और उनके द्वारा इनके प्रयोग किए जाने के बारे में जाने। पॉप्युलेशन काउंसिल द्वारा किशोरों और युवाओं के जीवन और जीवन शैली को समझने के लिए उत्तर प्रदेश और बिहार में एक शोध अध्यनन किया गया था जिसे उदया (UDAYA) अर्थात् ‘अण्डरस्टैंडिंग दी लाइव्स ऑफ अड़ोल्सेंट्स एंड यंग अड़ल्ट्स’ का शीर्षक दिया गया था। इस अध्यनन के परिणाम 2017 में प्रकाशित हुए थे और इनसे युवाओं द्वारा मोबाइल फोन्स, इंटरनेट और सोश्ल मीडिया के उपयोग के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है। बिहार से मिली जानकारी[1] से पता चला है कि वहाँ युवाओं के बीच इंटरनेट और सोश्ल मीडिया का प्रयोग हालांकि अभी भी सीमित है लेकिन इसमें लगातार बढ़ोतरी हो रही है। युवाओं द्वारा इंटरनेट के प्रयोग पर अभी भी माता-पिता और अविभावकों का नियंत्रण रहता है और शहरी और ग्रामीण इलाकों के युवाओं द्वारा इसका प्रयोग कर पाने और सूचना एवं संचार तकनीकों तक पहुँचने में खासा अंतर देखा गया है। इस अध्यनन से जो जानकारी मुख्य रूप से निकल कर आई वह यह है कि जो युवा मोबाइल फोन और इंटरनेट द्वारा ऑनलाइन सामग्री देख पाते हैं, उनके लिए सेक्स के विषय पर बात करना कुछ नया नहीं था। इस अध्यनन में युवाओं के बीच सेक्स के विषय पर जानकारी और पोर्नोग्राफिक सामग्री के प्रयोग को मापने के लिए एक प्रश्नावली तैयार कर उनसे सवाल पूछे गए थे। अध्यनन से मिली जानकारी से युवाओं की डिजिटल मीडिया तक पहुँच और उनके द्वारा इसके प्रयोग के बारे में काफी कुछ पता चलता है। अध्यनन से पता चला है कि ग्रामीण और शहरी क्षेत्र के युवा लड़के और लड़कियों के बीच, फिर वे चाहे किसी भी आर्थिक वर्ग के हो अथवा उनकी शिक्षा का स्तर जो भी हो, तकनीक के प्रयोग का स्तर, विशेष रूप से मोबाइल फोन्स के उपयोग का स्तर, लगातार बढ़ रहा है।

इस अध्यनन से तो यह पता चल ही गया था कि युवाओं के बीच मोबाइल फोन्स के उपयोग के रुझान तेज़ी से बदल रहे थे लेकिन अध्यनन के बाद के समय में और भी अनेक बदलाव आए हैं। 2017 में इंटरनेट के प्रयोग के बारे में प्रकाशित वार्षिक रुझानों पर मैरी मीकर रिपोर्ट[2] से पता चलता है कि इंटरनेट के इस बढ़ रहे उपयोग के पीछे दो मुख्य कारण रहे हैं। पहला कारण तो यह है कि स्मार्टफोन्स की कीमतों में लगातार गिरावट आई है और दूसरा यह कि इंटरनेट पर डेटा प्रोयोग की कीमतें भी घटी हैं। इंटरनेट की कीमत में आई इस गिरावट को प्रमुख रूप से रिलायंस जियो – जो की भारत के सबसे बड़े औद्योगिक घराने की दूरसंचार कंपनी है – द्वारा 2016 में अपना कारोबार शुरू करने के बाद से देखा गया है। रिलायंस जियो नें अपने ग्राहकों को मुफ्त डेटा उपलब्ध करवाया और इसका परिणाम यह हुआ कि बड़ी संख्या में मोबाइल फोन इस्तेमाल करने वाले लोग, विशेषकर युवा लोगों के लिए अब इंटरनेट सस्ता और उनकी पहुँच में हो गया और इसके चलते इंटरनेट सेवा देने वाली दूसरी कंपनियों को भी विवश होकर अपनी कीमतों को घटाना पड़ा।

सूचना और संचार तकनीकों की कीमतों में गिरावट होने से आर्थिक और सामाजिक रूप से हाशिये पर रहने वाले लोगों के लिए भी इन सेवाओं का प्रयोग कर पाना सुलभ हो गया है। अब वे भी जानकारी और मनोरंजन के लिए इस तकनीक का प्रयोग कर पाते हैं और इसका परिणाम यह हुआ है कि इस वर्ग की सामाजिक गतिशीलता में अलग तरह की वृद्धि हो सकी है जिसका उनके पास उपलब्ध संसाधनों या उनकी सामाजिक परिस्थितियों से – जिन्हें आमतौर पर शिक्षा के स्तर या रोजगार अथवा आमदनी से जोड़ कर देखा जाता है – कोई सरोकार नहीं है। इस लेख के संदर्भ में दूसरी अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि डिजिटल माध्यमों तक पहुँच आसान हो जाने से उपेक्षित वर्ग भी अब यौनिकता से जुड़ी सामग्री को देखने, पढ़ने और तैयार कर पाने में सक्षम हुए हैं और इस तरह की जानकारी तक पहुँच पाने में उनके सामने पहले आने वाली कठिनाईयाँ अब दूर होती नज़र आ रही है।

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युवाओं के मन में आमतौर पर किस तरह की बातें अधिक चलती हैं या फिर वे अक्सर क्या सोचते हैं? इसके बारे में भी लोगों से मिली सूचनाओं के आधार पर जानकारी उपलब्ध हुई है। लेकिन अब जानकारी पाने के लिए डिजिटल तकनीक पर आधारित ऑनलाइन तरीकों के उपलब्ध होने के बाद हमारे पास इस जानकारी को समझ पाने के लिए ढेर सारे ‘आंकड़े’ उपलब्ध हैं। इस लेख में मैं कही अनकही बातें नाम से मोबाइल फोन पर उपलब्ध करवायी जा रही एक आईवीआरएस सेवा का उदाहरण प्रयोग कर रही हूँ। इस टेलीफ़ोन हेल्पलाइन सेवा के माध्यम से युवा लोगों को उनके यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकारों के बारे में जानकारी दी जाती है। इस हेल्पलाइन सेवा का प्रबंधन क्रिआ (CREA), तारशी (TARSHI), ग्राम वाणी (Gram Vaani) और मारा (Maara) संस्थाओं द्वारा मिल कर किया जाता है। इस सेवा में सवाल-जवाब नाम से एक चैनल उपलब्ध है जहां फोन कर लोग अपने सवाल छोड़ सकते हैं और इन सवालों के जवाब इस इन्फोलाइन पर उन्हें उपलब्ध करवाए जाते हैं। अब अगर यह देखा जाये कि इस हेल्पलाइन पर कॉल करने वाले लोग अधिकतर किस तरह के सवाल पूछते हैं तो हम पाएंगे कि ज़्यादातर लोग सेक्स के बारे में प्रचलित भ्रांतियों के बारे में, यौन इच्छाओं, सम्बन्धों और सहमति, सेक्स और गर्भधारण, यौन समस्याओं, हस्तमैथुन, संबंध और गर्भनिरोधन, सुरक्षित सेक्स, प्युबर्टी या रजो:सन्धि, कौमार्य और समलैंगिकता आदि के बारे में सवाल पूछते हैं। इस हेल्पलाइन पर कॉल करने वालो की पृष्ठभूमि जानने के लिए स्वैच्छिक आधार पर एक सर्वेक्षण किया गया और कॉल करने वालों से उनके बारे में जानकारी ली गयी। इस सर्वेक्षण से कॉल करने वाले लोगों के बारे में काफी महत्वपूर्ण और रोचक जानकारी मिली। आज तक भारत के लगभग हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश से लोगों नें इस हेल्पलाइन पर कॉल किए हैं। कॉल करने वालों में 70 प्रतिशत पुरुष, 27 प्रतिशत महिलाएं और 3 प्रतिशत ट्रांसजेंडर लोग थे। कुल कॉल करने वालों में से 69 प्रतिशत अविवाहित लोग थे, कॉल करने वाली लड़कियों में से आधे से अधिक (55 प्रतिशत) की उम्र 18 वर्ष से कम थी। कॉल करने वाले लड़कों में से 18 वर्ष से कम उम्र के लड़कों की संख्या भी लगभग 50 प्रतिशत थी।

चित्र: क्विकसैंड संस्था द्वारा ‘कही अनकही बातें’ टेलीफ़ोन इन्फोलाइन पर सवाल पूछने के लिए कॉल करने वालों द्वारा आमतौर पर प्रयोग में लाये जाने वाले शब्दों का विश्लेषण

इस इन्फोलाइन के माध्यम से यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकारों के बारे में सवाल पूछने वाले युवाओं के सामाजिक वर्ग को देखें तो हम पाएंगे कि संसाधनों और सुविधाओं से वंचित वर्ग के लोगों को यौनिकता के बारे में उचित जानकारी मिलने पर वास्तव में वे अधिक सक्षम हो पाते हैं। ऐसा भी कहा जा सकता है कि ऑनलाइन माध्यमों के द्वारा जानकारी और सामग्री मिलने से युवाओं को उन कड़ी सामाजिक मान्यताओं, कमियों को समझने और उन पर सवाल खड़े करने का अवसर मिलता है जो अक्सर इन युवाओं की यौनिकता पर हावी बनी रहती हैं।

आज के डिजिटल युग में सामाजिक गतिशीलता को अलग तरीके से समझे जाने की ज़रूरत है। सामाजिक गतिशीलता को उन सामाजिक परिस्थितियों से अलग करके देखना होगा जिनके अंतर्गत संसाधनों के होने के आधार पर लोगों का सामाजिक वर्ग निर्धारित होता है और उनके लिए मान्यताएँ बनती हैं। डिजिटल और ऑनलाइन दुनिया में यौनिकता और वर्ग के ये सभी भेद दूर हो सकते हैं।

ऑनलाइन माध्यमों के द्वारा अलग-अलग वर्गों, विविध पृष्ठभूमि के लोगों को, जो सामान्य परिस्थितियों में सेक्स और यौनिकता के बारे में नहीं जान पाते, ‘समानता’ के आधार पर हर तरह की जानकारी मिलने लगे तो लोगों के बीच के ये सामाजिक अंतर और संसाधनों की उपलब्धता के अंतर खत्म हो सकते हैं। विविध क्षेत्र के लोगों की ऑनलाइन माध्यमों तक पहुँच सरल हो जाने से जो बदलाव प्रमुखता से दिखाई पड़ता है वह लोगों द्वारा प्रयोग में लायी जा रही भाषा, शब्दों और व्याख्याओं में दिखने वाला परिवर्तन है। इस बदलाव के प्रमाण न केवल ‘कही अनकही बातें’ जैसे मंच पर दिखते हैं बल्कि एजेंट्स ऑफ़ इश्क़ (Agents of Ishq), फेमिनिज़्म इन इंडिया (Feminism in India) और लव मैटर्स (Love Matters) जैसे अनेक दूसरे मंचों से भी इन बदलावों का पता चलता है। इन सभी मंचों ने अपनी कार्यशैली और भाषा प्रयोग में बदलाव ला कर अपने कार्यक्षेत्र को बढ़ाया है और अब ये यौनिकता से जुड़े मुद्दों पर हिन्दी में भी कार्यक्रम तैयार कर रहे हैं। इस बदलाव का परिणाम यह हुआ है कि अब विविध पृष्ठभूमि के लोगों के साथ यौनिकता के विषय पर बातचीत और विचारों का आदान-प्रदान शुरू हो सका है।

अंत में इतना तो कहा ही जा सकता है कि तकनीक के प्रयोग से लोगों द्वारा यौनिकता से जुड़ी जानकारी और सूचनाएँ पाने में वर्ग भेद तो कम हुआ है। इससे कुछ समय के लिए ही सही, ऐसा लगता है कि सामाजिक वर्गिकरण के आधार पर बने लोगों के बीच के अंतर समाप्त हो रहे हैं। लेकिन यहाँ यह बताना भी बहुत ज़रूरी है कि आम तौर पर जो हाश्य पर रह रहे लोग आज तक यौनिकता के बारे में जानकारी पाने और इस विषय पर अपनी बातें और विचार रख पाने में वंचित और असफल रहे हैं, दरअसल उस वर्ग द्वारा इस विषय पर होने वाले विचार-विमर्श और चर्चा को बहुत अधिक प्रभावित कर पाने की क्षमता है। लेकिन इस लेख में ऐसा कोई भी दावा नहीं किया जा रहा है कि यह परिवर्तन संसाधनों की उपलब्धता और व्यवस्था से जुड़ी खामियों, जो वर्ग आधारित समाज में लोगों के यौनिकता से जुड़े अनुभवों को प्रभावित करती हैं, में किसी तरह का पूर्ण मौलिक बदलाव निश्चित करेगा।

 

[1]Santhya, K.G., R. Acharya, N. Pandey et al. 2017. Understanding the lives of adolescents and young adults (UDAYA) in Bihar, India. New Delhi: Population Council

[2]Mehta, Ivan, 2017. Reliance Jio Is Driving Indian Internet Growth, Says The Mary Meeker Report
https://www.huffingtonpost.in/2017/06/01/reliance-jio-is-driving-indian-internet-growth-says-the-mary-me_a_22120777/

लेखिका : रुप्सा मल्लिक

रुप्सा मल्लिक क्रिआ (CREA) में कार्यक्रम व नवाचार निदेशक हैं। पिछले लगभग पंद्रह वर्षों से वे यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य व अधिकारों, जेंडर समानता और न्याय की पक्षधर रही हैं और इसके लिए काम करती रहीं हैं। रुप्सा नें नीदरलैंड्स में द हेग (The Hague) के द इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल स्टडीज़ (The Institute of Social Studies) से वीमेन एंड डेवलपमेंट (Women and Development) विषय में परास्नातक उपाधि (मास्टर्स डिग्री) प्राप्त की है।

सोमेंद्र कुमार द्वारा अनुवादित

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कवर इमेज: Pixabay