अक्सर, मुझे जीवन और विकल्पों के बारे में प्रेरणादायक उद्धरण देखने को मिलते हैं। ऐसा ही एक उद्धरण कहता है, “आज मैं जो हूँ वो उन विकल्पों की वजह से हूँ जो मैंने कल चुने थे।” लेकिन क्या यह वास्तव में उतना आसान है? क्या हमारे जीवन में विकल्प/चयन हमारे परिवेश, जेंडर, संस्कृति और सामाजिक-आर्थिक वास्तविकताओं से प्रभावित नहीं होते?
मैं पिछले कुछ समय से उन लड़कियों के साथ काम कर रही हूँ जिन्होंने अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ दी। मेरे इस काम ने मुझे दिल्ली के शहरी गरीब समुदायों में रहने वाली लड़कियों को करीब से समझने और बातचीत करने का अवसर दिया है। लड़कियों के लिए सीखने के वैकल्पिक अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से, परवाज़ अडोलसेंट सेंटर फॉर एडुकेशन (Parwaaz Adolescent Centre for Education – PACE) नामक एक प्रोजेक्ट के हिस्से के रूप में, मैं निरंतर संस्था के साथ जुड़ी हुई हूँ। निरंतर संस्था दिल्ली और बरेली (उत्तर प्रदेश) में समुदाय आधारित संगठनों के साथ साझेदारी के तहत शहरी पुनर्वास बस्तियों और असंगठित बस्तियों की स्कूल ना जाने वाली (आउट-ऑफ-स्कूल) लड़कियों के साथ काम कर रही है।
ये केंद्र, लड़कियों के लिए उनके जीवन, भावनाओं और अनुभवों के बारे में बात करने और दोस्ती बनाने के लिए महत्वपूर्ण सुरक्षित स्थान के रूप में उभरे हैं। PACE में लड़कियों के साथ हमारे नियमित सत्रों के दौरान, हमने प्यार, रिश्ते, पसंद और यौनिकता के बारे में बातचीत शुरू करने के लिए थिएटर सत्र आयोजित किए। अधिकांश लड़कियाँ सत्र के बारे में बहुत उत्साहित लग रही थीं और उन्होंने प्यार और रिश्तों के बारे में बात करने में रुचि दिखाई, लेकिन अक्सर जब मैंने उनसे उनके जीवन के पहले प्यार या क्रश के बारे में पूछा तो उन्होंने बातचीत का रुख बदल दिया। इसके बजाय, उन्होंने मुझसे मेरे जीवन के पहले क्रश के बारे में बात करने का अनुरोध किया और जब मैं उनके साथ अपने पहले क्रश के बारे में बात करती, तो उनमें से अधिकांश हँसती और उत्साह के साथ अपने अनुभवों के बारे में बात करना शुरू कर देतीं।
एक ऐसे ही सत्र में, जहाँ कुछ इसी तरह की बातचीत चल रही थी, कुछ लड़कियाँ बातचीत में ज़्यादा दिलचस्पी नहीं दिखा रही थीं। जब मैंने उनसे अपने अनुभव साझा करने के लिए कहा तो उनमें से एक ने कहा, “दीदी, मेरे पास साझा करने के लिए कुछ नहीं है। मेरी जाति में लड़कियों की शादी कम उम्र में हो जाती है। मैं बहुत छोटी थी जब इसके बारे में कुछ भी समझे बिना मेरी शादी हो गयी। शादी के बाद, मैंने अपने पति के साथ प्यार हुए बिना ही यौन संबंध बनाना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे मुझे शादीशुदा जिंदगी की आदत हो गई और मुझे बहुत शिकायतें नहीं हैं। मुझे लगता है कि अगर इसे ही प्यार कहा जाता है, तो मेरे जीवन का पहला प्यार मेरे पति हैं।”
रुखसार (बदला हुआ नाम), एक और युवा लड़की, जो कुछ समय से चुप थी, बाद में अपने अनुभवों को साझा करने के लिए चर्चा में कूद पड़ी। जब रुखसार ने बोलना शुरू किया, तो दूसरी लड़कियाँ उन्हें करीब से देख रही थीं, क्योंकि उनकी शादी कम उम्र में हो गई थी और उन्होंने कुछ साल पहले ही अपने पति से तलाक के लिए अर्जी दी थी। उन्होंने समूह में पहले कभी भी अपने भावनात्मक अनुभवों के बारे में बात नहीं की थी और हमेशा शैक्षिक चर्चा पर अधिक ध्यान केंद्रित करती थीं।
रुखसार ने मुस्कुराते हुए धीरे से कहा, “किशोरावस्था के दौरान, मुझे अपने गाँव का एक युवा लड़का बहुत पसंद था क्योंकि वह अपनी उम्र के अन्य लड़कों की तुलना में बहुत आकर्षक था। शुरुआत में, मैं उसे अपने मुहल्ले में देखने के मौकों की तलाश करती थी और उसके साथ बात करने के लिए बहाने बनाती थी। यह जानने के बावजूद कि वह भी मेरी तरह मुसलमान था, मैंने अपनी भावनाओं के बारे में उसे कभी नहीं बताया। गुजरते महीनों के दौरान उसका साथ पाने के मेरे सपने और इच्छाएँ परवान चढ़ते रहे लेकिन वे कभी पूरे नहीं हुए। धीरे-धीरे, मुझे उसके बारे में और पता चला और समझ आया कि उसे शराब की लत थी, और उसे अपने गुस्से पर कोई नियंत्रण नहीं था। उसे उन युवा लड़कों के बीच नेता माना जाता था जो आपराधिक गतिविधियों में शामिल थे। इन बातों को जानने पर मैं आश्चर्यचकित रह गई और मेरी भावनाएँ और इच्छाएँ धीरे-धीरे बदल गईं। फिर, मेरा जीवन मेरे गाँव की किसी भी अन्य मुस्लिम लड़की की तरह आगे बढ़ा और इससे पहले कि मैं समझ पाती कि जीवन में प्यार का क्या मतलब है मुझे कम उम्र में शादी करने के लिए मजबूर होना पड़ा। शादी के बाद, मैंने एक बहू की भूमिका निभानी सीख ली जो बिना कुछ कहे आदेश का पालन करती है। मैंने परिवार के लिए बंधुआ मजदूर की तरह काम किया; मुझे घर का सारा काम करना पड़ता था, खेत में परिवार का साथ देना पड़ता था, जानवरों की देखभाल करनी पड़ती थी और रात में अपने पति के साथ जबरन यौन संबंध बनाने के साथ मेरा दिन ख़त्म होता था। मेरे पति के साथ मेरे यौन संबंध हिंसा से शुरू हुए और इसने मुझे बहुत दर्दनाक और भयानक अनुभव दिया, एक ऐसा सम्बन्ध जिसमें मेरी कोई भूमिका नहीं थी, सिवाय इसके कि मेरे पति अपने यौन सुख के लिए जो करने को कहें मैं वो करती रहूँ। हमारे जैसी कई महिलाओं के जीवन में सीमित विकल्प हैं जहाँ प्यार, इच्छा और आनंद का महिलाओं के जीवन में पूरी तरह से कोई अर्थ नहीं है।” उसके अनुभवों को सुनकर समूह में हर कोई चुप हो गया।
रुखसार ने आगे बताया, “अपने पति के साथ अपने रिश्ते के दौरान, मैंने अपने जीवन में कभी प्यार का अनुभव नहीं किया, और मैंने यौन संबंधों को हिंसा से जोड़कर ही देखा जहाँ साथी के लिए आनंद, अन्वेषण और देखभाल के लिए कोई जगह नहीं थी। मेरे पति सेक्स करते समय हमेशा हिंसक रहते थे, मुझे छोटी-छोटी बातों पर मारते थे, और परिवार के लोग एक शब्द कहे बिना, दर्शकों की तरह सब कुछ देखते रहते थे। कई अन्य प्रेम कहानियों को सुनने के बाद, मैं अपने जीवन में फिर से प्यार की भावना का अनुभव करना चाहती हूँ लेकिन मैं किसी से शादी नहीं करना चाहती। अन्य युवा लड़कियों की तरह, मैं एक ऐसे प्रेमी की चाहत रखती हूँ जो मेरी देखभाल करे और प्यार और स्नेह से रिश्ता बनाए, भले ही यह रिश्ता कम समय के लिए ही क्यों न हो।”
उनके अनुभव सुनकर मैं अपने विचारों में पूरी तरह खो गई। एक ओर जहाँ मैं यौन हिंसा के स्तर के बारे में जानकर दंग रह गई, जो महिलाओं को शादी में अनुभव करना पड़ता है, जहाँ लोग जोड़ों के बीच हिंसक रिश्तों पर शायद ही सवाल उठाते हैं, वहीं दूसरी ओर मुझे यह जानकर खुशी हुई कि रुखसार ने एक बार फिर से प्यार में पड़ने और अपने जीवन को अपने तरीके से खोजने में रुचि दिखाई। पूरी चर्चा ने मेरे दिमाग में एक और आंतरिक बातचीत शुरू कर दी। मुझे रुखसार समूह की सबसे शर्मीली लड़कियों में से एक के रूप में याद आई, जिसने हमेशा पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित किया और दूसरों के साथ अपनी व्यक्तिगत भावनाओं पर कभी चर्चा नहीं की। विवाह के बाद संबंध, आकर्षण और प्रेम ऐसे शब्द थे, जिनका उनके जीवन में ज़्यादा मायने नहीं थे क्योंकि उन्होंने यह आत्मसात कर लिया था कि केवल ‘खराब/बुरी’ औरतें ही शादी के बाद, चाहे वह कितनी भी हिंसात्मक क्यों न हो, किसी से प्यार करती हैं। एक बार, उन्होंने कहा था, “मैं सिर्फ़ अपनी बेटी के लिए जी रही हूँ और भविष्य में उसे अच्छी तरह से पढ़ाऊँगी। मेरी बेटी के अलावा मेरे जीवन में और कुछ नहीं है। मैं अपने माता-पिता के विश्वास को कभी नहीं तोड़ूँगी जो मेरे कठिन समय में मेरा ध्यान रख रहे हैं।”
उस सत्र के बाद, मैंने रुखसार के साथ अधिक बातचीत करना शुरू कर दिया और उन्होंने थिएटर के अधिकांश सत्रों का आनंद लिया। वह पास की कॉलोनी में एक घरेलू कामगार के रूप में काम करती थीं, और कभी-कभी समय निकालना और थियेटर सत्रों के लिए कुछ घंटों के लिए आना उनके लिए मुश्किल हो जाता था, लेकिन फिर भी वह नियमित रूप से आने में कामयाब रहीं। मुझे उस रुखसार में, जो पहले PACE केंद्र में शामिल हुई थीं और जिन्होंने अब थिएटर गतिविधियों में भाग लेना शुरू किया था, अंतर दिखाई देता था।
ऐसे ही एक सत्र के दौरान, वह लगातार हँस रही थी और दूसरी लड़कियों के साथ बॉलीवुड के हिंदी गाने गा रही थी। जब मैंने उनकी हँसी के पीछे का राज़ पूछा, तो वह मुस्कुराई और बोलीं, “दीदी, मैं इन दिनों बहुत खुश हूँ। मैं अपने जीवन का आनंद लेना चाहती हूँ और कुछ मज़ा करना चाहती हूँ। लोग अपने क्षेत्रों से अन्य महिलाओं और लड़कियों पर इतनी निगाह क्यों रखते हैं? तलाक के बाद भी महिलाएँ प्रेम संबंध क्यों नहीं बना सकती? ” पाठ्यक्रम की अवधि के दौरान, उन थिएटर सत्रों ने स्वयं के प्रति उनके दृष्टिकोण को बदल दिया था और वे खुद से ईमानदार हो सकीं, एक ‘अच्छी’ तलाकशुदा युवती की तरह प्रदर्शन करने के लिए मज़बूर महसूस किए बिना जिसे इस बारे में सोचना पड़ता कि लोग उसके द्वारा उठाए गए किसी भी कदम के बारे में क्या कहेंगे। धीरे-धीरे, उन्होंने अच्छे कपड़े पहनना और PACE सेंटर में आने के दौरान थोड़ा सजना संवरना शुरू कर दिया। दिल्ली के विभिन्न हिस्सों में एक्सपोज़र विज़िट के दौरान, वह अच्छी तरह से कपड़े पहनती थीं, मेकअप लगाती थीं और सड़क पर घूमने वाले किसी भी युवा लड़के की ओर इशारा करके अन्य लड़कियों के साथ हंसी-मज़ाक करती थीं। उन्होंने अन्य लड़कियों से उनके जानने वाले कुछ लड़कों के फोन नंबर साझा करने का अनुरोध किया, ताकि वह उनसे दोस्ती कर सकें।
शुरुआत में, अन्य लड़कियों को उनके व्यवहार में बदलाव से वास्तव में आश्चर्य हुआ और उन्होंने हमारे समाज में विवाहित महिलाओं के लिए परिभाषित सामाजिक मानदंडों के अनुसार रुखसार को आँकने की कोशिश की। पितृसत्तात्मक समाज के हिस्से के रूप में, जब अविवाहित लड़कियाँ अच्छे कपड़े पहनना और कुछ मेकअप लगाना पसंद करती हैं, तो उन्हें ‘अच्छा‘ नहीं माना जाता है, लेकिन शादी के तुरंत बाद, अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं के बावजूद, युवा लड़कियों को नव-विवाहित महिलाओं के रूप में तैयार होने के लिए मज़बूर किया जाता है। दूसरी ओर, युवा विधवाओं को उनकी यौनिकता को नियंत्रित करने के लिए चमकीले कपड़े पहनने या सजने सँवरने की अनुमति नहीं होती है। इसी तरह, रुखसार जैसी, विशेष रूप से एक वंचित वर्ग और जाति से संबंधित तलाकशुदा महिला, पर पितृसत्तात्मक मानदंडों को बनाए रखने के लिए अधिक प्रतिबंध होते हैं। जीवन के निर्णय, विकल्प और इच्छाएँ सभी इन मानदंडों द्वारा निर्धारित और निर्देशित होते हैं।
‘उच्च‘ वर्ग की एक तलाकशुदा महिला को ‘निम्न‘ वर्ग की महिलाओं की तुलना में प्रचलित मानदंडों को चुनौती देने के लिए अपनी पसंद और इच्छाओं का दावा करने का विशेषाधिकार है। लेकिन ‘निम्न‘ जाति की पृष्ठभूमि वाली महिलाओं के पास ‘उच्च‘ जाति की महिलाओं, जो केवल पवित्रता का प्रतीक बन जाती हैं, की तुलना में विकल्प और यौनिकता को खोजने-परखने के लिए अधिक गुंजाइश होती है। जब हम विकल्पों और यौनिकता का विश्लेषण करते हैं, तो यह पता लगाना महत्वपूर्ण है कि ये अलग-अलग जातियों और वर्गों में कैसे अलग-अलग तरीके से संचालित होते हैं।
जब हमने प्यार, इच्छाओं और रिश्तों के बारे में बातचीत शुरू की, तो लड़कियों ने अपने अलग-अलग अनुभवों को साझा किया और इससे समूह के सदस्यों को एक-दूसरे को स्वीकार करने के लिए अधिक खुले रहने में मदद मिली। क्या हम युवा लड़कियों के ऐसे स्थान बनाने में सक्षम हैं जहाँ वे अपने जीवन में इच्छा, और रोमांटिक रिश्तों से जुड़ी इन जटिलताओं के बारे में इसे ‘सही’ या ’गलत’ के रूप में चिह्नित बॉक्स में डाले बिना बातचीत कर सकें?
रुखसार के व्यवहार और नज़रिए में धीरे-धीरे हुए बदलाव ने भी मुझे उनके संदर्भ और आसपड़ोस के बारे में सोचने के लिए उकसाया। जीवन, रिश्ते और इच्छाओं के बारे में विकल्प ये सभी सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि, जाति, वर्ग, जेंडर और यौनिकता के आधार पर निर्धारित किए गए हैं। जब इन युवा लड़कियों को एक सहज और सुरक्षित स्थान मिला, तो उन्होंने अपनी इच्छाओं और अनुभवों के बारे में और कैसे उन्होंने अपनी इच्छाओं को आगे बढ़ाने के लिए अपने मौजूदा परिवेश से समझौता किया, इन सब के बारे में खुलकर बातचीत की। जैसा कि उनकी कहानियों में वर्णित है, महिलाओं के पास बहुत ही सीमित विकल्प हैं कि वे अपने जीवन में जो करना चाहती हैं उसे जारी रखें और यह उन युवा महिलाओं के मामले में बदतर हो जाता है जो तलाकशुदा हैं, जिनके बच्चे हैं और जो अपने माता-पिता के साथ शहरी गरीब समुदायों में रहती हैं।
हमें इस तरह से ढाला गया है कि तथाकथित ‘विकल्प‘ जो हमारे संबंधों को परिभाषित करते हैं, वे भी हमारे लिए हुए विकल्प नहीं बल्कि समाज द्वारा सृजित हैं। हालाँकि, जैसा कि हमने देखा है, इन सभी चुनौतियों के बावजूद, महिलाएँ, जब वे खुद को व्यक्तियों के रूप में महत्वपूर्ण मानने लगती हैं, तो वे अपने परिवेश और परिवार के सदस्यों के साथ बातचीत करने की रणनीति तैयार करती हैं। इसलिए यह कहना पर्याप्त नहीं है कि कल के निर्णय हमारे आज को आकार देते हैं; हमें यह भी सवाल करना चाहिए कि उन विकल्पों को किस कारक ने निर्धारित किया गया।
सुनीता भदौरिया द्वारा अनुवादित
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