
बैंगलोर की रहने वाली ब्लॉगर और सेरेब्रल पाल्सी के साथ जी रही फरहीना की माँ फरीदा रिज़वान को सलाह दी गई थी कि जब फरहीना को माहवारी शुरू हो जाए तो उसके गर्भाशय को निकालना सही रहेगा । मुंबई की रहने वाली मीनाक्षी शर्मा विकलांगता के साथ जी रही लड़कियों पर यौन उत्पीड़न के प्रयासों के बारे में सुनकर हर बार डर जाती थीं। और जब उनकी बेटी कशिश, जो बौद्धिक रूप से विकलांगता के साथ जी रही है, को माहवारी शुरू हुई, तो मिनाक्षी दोबारा घबरा गयीं। भारत के ग्रामीण महाराष्ट्र के संसाधन विहीन क्षेत्र की एक हाशिय पर रहने वाली किसान, राहिबाई को सलाह दी गई कि उनकी बेटी मलाना, जिसे बौद्धिक विकलांगता है, उसे गर्भाशय-उच्छेदन (हिस्टरेक्टॉमी) करवाना चाहिए। इनमें से किसी भी माँ ने ‘शुभचिंतकों’ द्वारा दी गई पक्षपातपूर्ण सलाह पर ध्यान नहीं दिया, जिनमें से कुछ डॉक्टर भी थे। आज, फरहीना, कशिश और मलाना अपनी माहवारी के दौरान अपनी खुद की देखभाल करती हैं और न्यूनतम सहायता के साथ अपनी माहवारी के दौरान की साफ़-सफाई का ख्याल रखती हैं, जिसका एक मुख्य कारण यह है कि उन्हें ऐसा करने के लिए जानकारी प्रदान की गई थी।
ये तीन युवतियां, अपनी माँओं की बदौलत, कम से कम अपने कुछ अधिकारों का हनन होने से बचाने में सफल रहीं। लेकिन यह तर्क सही साबित होता है कि विकलांगता के साथ जी रहीं महिलाओं (Women with Disabilities-WWD) को यौन और प्रजनन संबंधी स्वास्थ्य देखभाल और अधिकारों से वंचित रखा जाना चाहिए, जो कि डरावना है। WWD के बारे में नुकसानदेह रूढ़िवादिता में यह विश्वास शामिल है कि वे अति यौनिक, असमर्थ, तर्कहीन और नियंत्रण से रहित होती हैं। [1] इन रिवायतों का इस्तेमाल अक्सर बाकी धारणाओं को बनाने के लिए किया जाता है जैसे कि WWD स्वाभाविक रूप से कमज़ोर हैं और उन्हें ‘यौन हमले से संरक्षित’[2] किया जाना चाहिए। विकलांगता के साथ जी रहीं महिलाओं को अक्सर ‘बच्चों जैसा’ माना जाता है, जो उन्हें यौन शिक्षा और यौन स्वास्थ्य के बारे में जानकारी से वंचित करता है। इसके अलावा, अगर यह महिला बच्चे को जन्म देती है, तो उसके देखभाल करने वालों को लगता है कि बच्चे की देखभाल की ज़िम्मेदारी भी उन पर आ जाएगी। विकलांगता के साथ जी रहीं महिलाओं की यौनिकता को स्वीकार न करना और न पहचानना उनके द्वारा सामना किए जाने वाले कलंक और भेदभाव का एक बड़ा कारण रहा है। वैश्विक दक्षिण में समर्थता और पितृसत्ता के प्रभाव के कारण, विकलांगता के साथ जी रहीं महिलाओं को, ज़्यादातर शिशुवत समझा जाता है, उन्हें या तो अलैंगिक या अतिकामुक समझा जाता है, तथा उन्हें सुरक्षित और सकारात्मक स्थान नहीं दिया जाता है, जहां वे अपनी यौनिकता को ज़ाहिर कर सकें। पूर्वधारणा में यूजेनिक-प्रभावित सोच (आबादी की आनुवंशिक संरचना में “सुधार” का अभ्यास या वकालत) और यह विश्वास भी शामिल है कि एक से ज़्यादा साथियों के साथ यौन रूप से सक्रिय WWDs से STIs (यौन संचारित संक्रमण) फैलने की ज़्यादा संभावना होती है।
ऐसे समय में जब यौनिकता के इर्द-गिर्द बातचीत करना अभी भी एक चुनौती है, WWDs की यौनिकता और उनके यौन और प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकारों की ज़रूरतों को पूरा करने के बारे में चर्चा और भी ज़्यादा असहज है। जब इन पूर्वधारणाओं को गैर-विशमलैंगिक रिवायतों के ज़रिये चुनौती दी जाती है, तो यह WWDs को हाशिये की ओर और भी ज़्यादा धकेल देता है। भारत जैसे देशों में जहाँ LGBTQI+ लोगों को पहले से ही अपनी यौन और जेंडर पहचान के कारण हाशिए पर धकेले जाने का सामना करना पड़ता है, विकलांगता के साथ जीना भी उनके हाशिये पर धकेले जाने को और भी बढ़ा देता है। आंध्र प्रदेश के विकलांगता के साथ जी रहे एक ट्रांस अधिकार कार्यकर्ता, किरण को अपनी ट्रांस पहचान के कारण हिंसा, कलंक और भेदभाव का सामना करना पड़ा है। किरण को पहले से ही अपनी विकलांगता और जातिगत पहचान के कारण भेदभाव का सामना करना पड़ रहा था और अपने समाज की विशमलैंगिक उम्मीदों के अनुसार न होने से उन्हें और भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। इस हाशिए पर होने के कारण, पहचान (विकलांगता और यौनिकता दोनों) के चौराहे पर खड़े लोगों को कई जगहों पर शामिल होना मुश्किल लगता है। इसके अलावा, संचार में चुनौतियों और देखभाल प्रदाताओं और दुभाषियों पर निर्भरता के कारण उनकी कई कहानियों तक पहुंचना और उन्हें ज़ाहिर करना और बनाना कठिन हो जाता है।
भारत में, यौन सुख और माता-पिता बनने का अधिकार अक्सर विशमलैंगिक विवाह की संस्था के अंतर्गत ही आता है। WWDs को शादी करना एक मुश्किल संभावना लगती है, क्योंकि उन्हें अक्सर “टूटा हुआ” या नुकसानदेह माना जाता है और उन्हें “महिला” या उस मामले में “पर्याप्त” नहीं माना जाता है। [3] उनके शरीर को ‘आकर्षक’ नहीं माना जाता । इससे न केवल उनके खुशी का अनुभव करने की संभावना सीमित हो जाती है, बल्कि अपनी पसंद से मां बनने की संभावना भी सीमित हो जाती है। रूपसा मलिक ने अपने लेख, “विकलांगता के साथ जी रहीं महिलाएं – पालन-पोषण और प्रजनन” [4] में बताया है कि किस तरह विकलांगता से संबंधित कानून और नीतियां कानूनी क्षमता, स्वायत्तता और प्रजनन के विकल्प को सीमित करती हैं, खासतौर से बौद्धिक और मनोवैज्ञानिक तौर पर विकलांगता के साथ जीने वाले लोगों की। उनकी पसंद और मर्ज़ी को अक्सर उनकी विकलांगता को ‘बहाना’ बताकर खारिज कर दिया जाता है। पश्चिम बंगाल में मानसिक स्वास्थ्य के अधिकार पर काम करने वाली संस्था अंजलि की संस्थापक रत्नाबोली रे ने एक साक्षात्कार में सही ही बताया कि कैसे मनोसामाजिक विकलांगता के साथ जी रही महिलाओं को यौन और प्रजनन स्वास्थ्य के बारे में जानकारी तक पहुँच ही नहीं है। इसके अलावा, वह हमें इस बात के बारे में भी साफ-साफ बताती हैं कि मानसिक स्वास्थ्य संस्थान किस तरह अत्यधिक पितृसत्तात्मक और दमनकारी प्रकृति के हैं, जहां मरीज़ों के लिए कोई यौन नीतियां नहीं हैं और मनोसामाजिक विकलांगता के साथ जी रहे लोगों के लिए यौन शिक्षा के लिए कोई जगह नहीं है, जिसका मुख्य कारण उनके साथ जुड़ा कलंक है। वे सुरक्षित स्थान नहीं हैं जहां विकलांगता के साथ जी रहीं महिलाएं यौन और प्रजनन स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच पा सकती हैं; बल्कि वह एक घटना के बारे में बात करती हैं जहां एक मानसिक स्वास्थ्य संस्थान में, एक WWD के नवजात शिशु को ले जाया गया और उसे गोद देने के लिए रखा गया, और उसे नर्सों ने पीटा, क्योंकि उन्हें लगा कि उसका एक ‘अवैध संबंध’ है क्योंकि वह अपने घर से बाहर भटकती हुई पाई गई थी।[5] विकलांगता के साथ जी रही महिलाओं के लिए अपने यौन और प्रजनन स्वास्थ्य से संबंधित विकल्प चुनने के लिए स्थानों की कमी एक कारण है, लेकिन इन महिलाओं का जबरन गर्भसमापन भी दक्षिण एशियाई देशों में एक आम बात है।[6] इस भरोसे के साथ कि WWD मर्ज़ी नहीं दे सकते, उन्हें जबरन गर्भाशय-उच्छेदन और नसबंदी के अधीन किया जाता है, और उन्हें घर और संस्थानों तक ही सीमित रखा जाता है, जिससे लोगों और बाहरी दुनिया के साथ उनका संपर्क सीमित हो जाता है।
दुनिया भर में लगभग हर जगह WWD के प्रति हिफ़ाज़ती रवैया देखा गया है। उन्हें ज़्यादातर पुनर्वास केंद्रों में या परिवारों द्वारा संरक्षित किया जाता है जो उन्हें कोई गोपनीयता नहीं देते हैं। श्रीलंका के डिसेबिलिटी अधिकार कार्यकर्ता निलुका गुनावर्धने ने अपने एक लेख[7] में बताया है कि किस तरह दुर्गमता इन सभी मुद्दों के बीच में है – आज़ाद ज़िन्दगी के लिए सेवाओं की कमी, सार्वजनिक क्षेत्र तक पहुंच की कमी, और स्वास्थ्य देखभाल, प्रशासन, बैंकिंग और वित्तीय संस्थानों, न्यायपालिका जैसी राज्य सेवाओं तक पहुंच की कमी। मोटे तौर पर, संस्थाओं और परिवारों द्वारा दी जाने वाली संरक्षकता भी इस डर से निर्धारित होती है कि विकलांगता के साथ जी रही महिलाओं को हिंसा और हमले का सामना करना पड़ेगा, जैसा कि शुरुआत में बताए गए तीनों मामलों में हुआ है। CREA द्वारा किए गए काउंट मी इन [8] अध्ययन में भी इस बात के प्रमाण दिए गए हैं कि WWDs को अक्सर अपने परिवार के भीतर और बाहर हिंसा का सामना करना पड़ता है, जिनमें से अधिकांश हिंसा यौन प्रकार की भी होती है।
यौन हिंसा पर चर्चाओं के अलावा, हालांकि यौन सुख को WWD के लिए काफी हद तक अप्रासंगिक माना जाता है, WWD को यौन प्राणी के रूप में मान्यता देने के लिए बहस और अभियान उभर रहे हैं, जिनके पास आनंद, अंतरंगता, प्रेम, संबंध और यौन प्राथमिकताओं का अधिकार है।[9] निलुका गुनावर्धने इस बारे में बात करती हैं कि WWDs के इर्द-गिर्द बातचीत को जेंडर-आधारित हिंसा तक सीमित नहीं रखा जाना चाहिए और हिंसा के ढांचे से आगे बढ़कर “जेंडर-सकारात्मक अधिकार ढांचा विकसित करना चाहिए”, जिससे “प्रजनन और यौनिकता को सार्वभौमिक अधिकार के रूप में” स्थापित किया जा सके। भारत की एक युवा विकलांगता अधिकार कार्यकर्ता अनुषा मिश्रा का कहना है कि ‘संपूर्ण प्रेम’ के बारे में मीडिया में दिखाई जाने वाली रूढ़िवादी छवि से अलग होना ज़रूरी है, जो कि ज़्यादातर गैर-विकलांग और विशेषाधिकार प्राप्त लोगों की धारणाओं से निर्धारित होती है। इन प्रस्तुतियों में कभी भी WWD के अनुभवों को शामिल नहीं किया जाता है और इससे रोमांटिक और यौन संबंधों में बहुत ज़्यादा ‘अन्यता’ (otherness), नियंत्रण और अंधराष्ट्रवाद पैदा होती है। WWD के लिए आनंद, इच्छा, यौनिकता, अंतरंगता, उनके द्वारा अनुभव किए गए रिश्तों के बारे में चर्चा करने के लिए अवसरों का विस्तार करने की ज़रुरत है, जो उनकी यौनिकता को शामिल करते हैं और मानवाधिकारों का एक प्रमुख हिस्सा बनते हैं, लेकिन अनदेखा रह जाते हैं। CREA और पॉइंट ऑफ व्यू के ऑनलाइन प्लेटफॉर्म डिसेबिलिटी एंड सेक्सुएलिटी के संयुक्त प्रयास, विकलांगता और यौनिकता के इर्द-गिर्द सूक्ष्म बातचीत करने की दिशा में किए जा रहे काम के उदाहरण हैं, जहां सुलभ सूचना-आधारित संसाधन, WWD की व्यक्तिगत कथाएं और सेक्स-पुष्टि कलाकृतियां उपलब्ध हैं। नाइजीरिया की विकलांगता अधिकार कार्यकर्ता एकाटे जूडिथ उमोह इस बारे में बात करते हैं कि किस तरह से सूचना, शैक्षणिक और संचार सामग्री को मनोवैज्ञानिक विकलांगता के साथ जी रही महिलाओं की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए तैयार किया जाना चाहिए।[10] WWDs की यौनिकता के बारे में विशमलैंगिकता संबंधी आख्यान का मुकाबला करने के लिए अंतर-आंदोलन एकीकरण और संवाद की भी ज़रुरत है। भारत के विकलांगता अधिकार कार्यकर्ता शम्पा सेनगुप्ता भी इस बात पर ज़ोर देते हैं कि ऐसे लोगों पर भी ध्यान देना बेहद ज़रूरी है जो अपनी पहचान समलैंगिक और विकलांगता के साथ जी रहे लोगों, दोनों के रूप में करते हैं और जिनकी रुचि विकलांगता और LGBTQI+ आंदोलनों दोनों में है। उदाहरणों को साझा करते हुए, उन्होंने बताया कि कैसे ट्रांस लोगों को, जो खुद को डिसेबल्ड मानते हैं, कई तरह के हाशिएकरणों का सामना करने के डर से सामने आने में कठिनाई होती है।
क्रॉस-मूवमेंट संवाद के बारे में बात करते हुए, CREA ने बाकी नारीवादी संगठनों और WWD के अधिकारों के लिए काम करने वालों के साथ मिलकर 2018 में विकलांगता के साथ जी रहे लोगों के अधिकारों और महिलाओं के खिलाफ सभी तरह के भेदभाव के उन्मूलन पर संयुक्त राष्ट्र समितियों (CRPD और CEDAW समितियों) द्वारा “सभी महिलाओं, विशेष रूप से जो विकलांगता के साथ जी रहीं हैं, उनके लिए यौन और प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकारों की गारंटी” पर संयुक्त वक्तव्य का स्वागत किया, खासतौर से WWD के गर्भ समापन अधिकारों की दिशा में बयान में की गई प्रगति के कारण।
CREA ने अक्टूबर, 2018 में केन्या नैरोबी में गर्भ समापन, प्रसव पूर्व परीक्षण और विकलांगता के विषय से संबंधित एक विश्वस्तरीय संवाद का आयोजन किया, जिसमें नारीवादी संगठनों और कार्यकर्ताओं, SRHR और WWD के अधिकारों पर काम करने वाले संगठनों और कार्यकर्ताओं को एक साथ लाया गया, जिसका मकसद SRHR को ध्यान में रखते समय महिलाओं और WWD के मानवाधिकारों के उल्लंघन पर बातचीत को आगे बढ़ाना था। यह सम्मेलन इसलिए भी महत्वपूर्ण था क्योंकि इसमें सामाजिक-आर्थिक-स्वास्थ्य और विकलांगता के साथ जी रहे लोगों के बीच संबंध पर और ज़्यादा संवाद होने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया। विश्वस्तरीय वार्ता का परिणाम नैरोबी सिद्धांत, एक बेहद ज़रूरी दस्तावेज़ है जो कि विकलांगता, SRHR और महिला अधिकारों के अंतर-आंदोलन वार्ता को फिर से जीवित करता है। जो अधिकार-आधारित संगठन WWD के यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य को आगे बढ़ाने के लिए काम कर रहे हैं, यह दस्तावेज़ उनके लिए भी मार्गदर्शक सिद्धांतों[11] की पेशकश करता है। न केवल विकलांगता क्षेत्र के भीतर के संवादों में, WWDs के अधिकारों से संबंधित अन्य महत्वपूर्ण पुष्टि सिद्धांतों के अलावा, नैरोबी सिद्धांत SRH-विशिष्ट विचार-विमर्श में WWDs को शामिल करने पर ज़ोर देता है। इसके अलावा, प्रजनन अदालती निर्णय के संबंध में WWD के फैसले लेने में स्वायत्तता की भी पुष्टि की गई है, जिसमें गर्भ समापन का विकल्प, प्रजनन का विकल्प, तथा ज़बरदस्ती व जबरन गर्भ समापन, गर्भनिरोधक और नसबंदी द्वारा यौन और प्रजनन अधिकारों के उल्लंघन के ख़िलाफ़ बोलना शामिल है।
दक्षिण एशिया में नागरिक समाज और अधिकार-आधारित नेटवर्क ने राष्ट्रीय और वैश्विक मंचों पर विकलांगता के साथ जी रहीं महिलाओं के अधिकारों को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई है। इसके कई उदाहरणों में से एक पाकिस्तान भी है जहां उनके लिए राष्ट्रीय मंच (NFWWD) है, जो महिलाओं को यौन और प्रजनन स्वास्थ्य अधिकारों (SRHR) और आनंद के बारे में जानकारी प्रदान करता है।[12] इसके अलावा, वे यौन हिंसा के मामलों में जानकारी और सहायता प्रदान करने के लिए WWD’s को सहकर्मी शिक्षक बनने के लिए प्रशिक्षित करते हैं। वियतनाम के हनोई में विकलांगता की ज़िन्दगी जी रहे लोगों की बाक तु लियेम एसोसिएशन[13] ने SRHR पर दो प्रशिक्षण कार्यक्रम और एक अनुभव विनिमय कार्यक्रम आयोजित किया, जिसका मकसद सांस्कृतिक मान्यताओं के कारण इन युवाओं के सामने अपने यौन और प्रजनन स्वास्थ्य अधिकारों तक पहुंचने और इसके बारे में बात करने में आने वाली कमी को दूर करना था। इस कार्यक्रम के ज़रिये वियतनाम के कुछ युवाओं को एक साथ लाया गया और उन्हें एक मंच प्रदान किया गया, जहां वे अपने SRHR अनुभवों को साझा कर सके, और यौनिकता के बारे में गलत धारणाओं के कारण उनके सामने आने वाली बाधाओं, स्टिग्मा और भेदभाव के बारे में बता सकें। जब नेपाल में युवाओं के नेतृत्व वाली संस्था जिसका नाम युवा है, ने विकलांगता के साथ जी रहे युवाओं के साथ जुड़ना शुरू किया, तो यह देखा गया कि शारीरिक बदलाव, युवा-अनुकूल सेवाएं और रिश्तों जैसे पहलुओं के बारे में SRHR और यौनिकता के बारे में जानकारी की कमी थी। उन्होंने विकलांगता अधिकार संगठनों के साथ संपर्क करना शुरू किया और उपरोक्त सभी विषयों पर जानकारी प्रदान करने की प्रक्रिया शुरू की।[14] भारत में श्रुति विकलांगता अधिकार केंद्र के शम्पा सेनगुप्ता ने भी एक साक्षात्कार में विकलांगता की ज़िन्दगी जी रहे लोगों के लिए कुछ स्कूलों के पाठ्यक्रम में यौनिकता और SRH शिक्षा को शामिल करने के बारे में बात की। रइज़िंग फ्लेम की संस्थापक निधि गोयल मीडिया को एक उपकरण के रूप में उपयोग करके युवाओं के लिए आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रमों में विकलांगता और यौनिकता के नज़रिये को इकट्ठा करती हैं।
WWDs के यौन और प्रजनन अधिकारों की पूर्ति सुनिश्चित करने के लिए वकालत या एडवोकेसी पर काम करने की बहुत ज़रुरत है। इसका एक बेहतरीन उदाहरण भारत में विकलांग लोगों के अधिकारों के लिए राष्ट्रीय मंच (एनआरपीडी) द्वारा किए गए प्रयास हैं। महिला यौन हिंसा से निपटने के लिए एक मज़बूत निगरानी तंत्र के साथ न्यायमूर्ति वर्मा समिति के समक्ष WWD’s के सामने आने वाली समस्याओं को पहचाना। समिति ने इस समुदाय के परिप्रेक्ष्य में आपराधिक कानून में संशोधन किया, और इसके साथ ही विकलांगता के साथ जी रहे युवाओं के बीच यौन शिक्षा की ज़रुरत पर भी ज़ोर दिया।[15] CREA द्वारा किए गए काउंट मी इन अध्ययन में नेपाल के उदाहरण पर प्रकाश डाला गया है, जहां नारीवादी और विकलांगता अधिकार आंदोलनों के बीच अंतर-आंदोलन वकालत की कमी है, जैसा कि बाकी कई दक्षिण एशियाई देशों में है। इसी तरह, तारशी द्वारा विकलांगता और यौनिकता पर एक वर्किंग पेपर में भी इस बात पर रौशनी डाली गयी है कि विकलांगता और यौनिकता के बीच उचित संबंध स्थापित करने के लिए अभी भी एक लंबा सफर तय करना है, जिससे कि गहन शोध में आगे बढ़ते समय रणनीतिक डिजाइनिंग, आलोचनात्मक सोच, नीति निर्माण और वकालत की योजना बनाने में मदद मिलेगी।[16] WWD को शामिल करके इस प्रक्रिया को सहभागी बनाने से विकलांगता सम्बन्धी न्याय की दिशा में बेहतर परिणाम प्राप्त होंगे।
प्रांजलि शर्मा द्वारा अनुवादित। प्रांजलि एक अंतःविषय नारीवादी शोधकर्ता हैं, जिन्हें सामुदायिक वकालत, आउटरीच, जेंडर दृष्टिकोण, शिक्षा और विकास में अनुभव है। उनके शोध और अमल के क्षेत्रों में बच्चों और किशोरों के जेंडर और यौन व प्रजनन स्वास्थ्य अधिकार शामिल हैं और वह एक सामुदायिक पुस्तकालय स्थापित करना चाहती हैं जो समान विषयों पर बच्चों की किताबें उपलब्ध कराएगा।
[1] Pooja Badrinath (2017), ‘Reluctance or Ignorance: Ensuring SRHR of Women With Disabilities in Legislation, Women with Disabilities: Disabled, Sexual and Reproductive, 23:3,33-35. Retrieved from https://arrow.org.my/wp-content/uploads/2017/10/AFC_23_3_2017.pdf
[2] Maxwell, Jane, Julia Watts Belser, and Darlena David. 2007. Sexuality. In A Health Handbook for Women with Disabilities, 141-156. Berkeley: Hesperian. http://www.hesperian.info/assets/wwd/07_Sexuality.pdf.
[3] Nidhi Goyal (2017) Denial of sexual rights: insights from lives of women with visual impairment in India, Reproductive Health Matters, 25:50, 138-146, DOI: 10.1080/09688080.2017.1338492
[4] Rupsa Mallik (2017), Women With Disabilities: Parenting and Reproduction, arrow for change, Women with Disabilities: Disabled, Sexual and Reproductive, 23:3, 5-7. Retrieved from https://arrow.org.my/wpcontent/uploads/2017/10/AFC_23_3_2017.pdf
[5] An interview with Ratnaboli Ray (2017), ‘We Are Sexual Beings’- Bringing Sexuality to the forefront of Mental Health programs, Women with Disabilities: Disabled, Sexual and Reproductive, 23:3,21-23. Retrieved from https://arrow.org.my/wpcontent/uploads/2017/10/AFC_23_3_2017.pdf
[6] Niluka Gunawardena (2017), ‘Setting the Agenda on the SRHR of disabled women in Sri Lanka, Women with Disabilities: Disabled, Sexual and Reproductive, 23:3,10-12. Retrieved from https://arrow.org.my/wp-content/uploads/2017/10/AFC_23_3_2017.pdf
[8] (2012) Count Me IN!: Research report on violence against disabled, lesbian, and sex-working women in Bangladesh, India, and Nepal, Reproductive Health Matters, 20:40, 198-206, DOI: 10.1016/S0968-8080(12)40651-6
[9] Renu Addlakha, Janet Price & Shirin Heidari (2017) Disability and sexuality: Claiming sexual and reproductive rights, Reproductive Health Matters, 25:50, 4-9. Retrieved from https://www.tandfonline.com/doi/full/10.1080/09688080.2017.1336375
[10] In a live lecture on “My Reproductive Rights, My Life” in CREA’s 6th Disability Sexuality and Rights Online Institute, 2020, https://creaworld.org/our-work/dsroi/
[11] on Abortion, Prenatal Testing and Disability
[12] Rashid Mehmood Khan (2017) Addressing SRHR concerns faced by Persons with Disabilities in Pakistan, Women with Disabilities: Disabled, Sexual and Reproductive, 23:3,26-27. Retrieved from https://arrow.org.my/wp-content/uploads/2017/10/AFC_23_3_2017.pdf
[13] Hyen Do (2017), Raising Awareness on SRHR for People with Disabilities: Towards Inclusion of People with Disabilities in Hanoi, Vietnam, Women with Disabilities: Disabled, Sexual and Reproductive, 23:3,25-26. Retrieved from https://arrow.org.my/wp-content/uploads/2017/10/AFC_23_3_2017.pdf
[14]Amit Timilsina (2017), Addressing Sexual and Reproductive Health Needs of Young People with Disabilities in Nepal, Women with Disabilities: Disabled, Sexual and Reproductive, 23:3,24-25. Retrieved from https://arrow.org.my/wp-content/uploads/2017/10/AFC_23_3_2017.pdf
[15] Shampa Sengupta, Muralidharan (2017), Success in Advocacy: Positive changes in Laws in India, Women with Disabilities: Disabled, Sexual and Reproductive, 23:3,12-14. Retrieved from https://arrow.org.my/wp-content/uploads/2017/10/AFC_23_3_2017.pdf
[16] Sexuality and Disability in the Indian Context, Working paper TARSHI (2018), Retrieved from https://tarshi.net/inplainspeak/tarshis-corner-working-paper-sexuality-and-disability-in-the-indian-context-2018/
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