अपने क्वीयर मित्रों की सहयोगी होने के कारण जब लोग मुझसे यह पूछते हैं कि क्या मैं भी क्विअर हूँ, तो मेरा मन खिन्न हो जाता है, विशेषकर तब जब मैं स्वयं को अपने क्विअर मित्रों की पक्षधर मानती हूँ। मैं क्विअर नहीं हूँ। क्विअर लोगों की पक्षधर होने का यह अर्थ तो नहीं है कि मुझे भी क्विअर ही होना चाहिए। मैंने अपनी यौनिकता के साथ अनेक प्रयोग किए हैं। लेकिन, अगर सही मायने में मुझे अपनी पहचान को कोई नाम देना हो तो मैं कहूँगी कि मैं एक विषमलैंगिक स्ट्रेट महिला हूँ जिसके मन में समलैंगिक लोगों के प्रति कोई द्वेष नहीं है, बल्कि जो खुद उनकी सक्रिय सहयोगी है।
मुझे तब और भी खराब लगता है जब लोग मुझसे पूछते हैं कि क्या बीडीएसएम (BDSM) का पालन करने का अर्थ यह होता है कि मैं भी एलजीबीटी (LGBT) समुदाय से हूँ। यह सवाल तो बिलकुल वैसा ही है जैसे पहले से आहत किसी व्यक्ति को और शर्मिंदा भी किया जाए। ऐसी बातों को सुनकर मेरा मन करता है कि मैं सवाल पूछने वाले व्यक्ति पर चिल्ला पड़ूँ। फिर मैं सोचती हूँ कि यह मेरा दायित्व थोड़े ही है कि उन्हें समझाया जाए कि LGBT होना और BDSM में शामिल होना मनुष्य की यौनिकता के दो बिलकुल अलग पहलू हैं और ज़रूरी नहीं है कि LGBT समुदाय के हर व्यक्ति BDSM करते ही हों या BDSM करने वाले हर व्यक्ति LGBT समुदाय से ही हों।
लेकिन फिर भी मैं, हर एक बार, यह सवाल पूछे जाने पर लोगों को बड़े ही धैर्य के साथ इस अंतर के बारे में समझाती हूँ। मैं ऐसा इसलिए करती हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि यह मेरा दायित्व है कि लोगों को यौनिकता की बारीकियों से अवगत कराया जाए और उन्हें यह बताया जाए कि यौनिकता की ये सूक्षमताएँ किस तरह से मुझ जैसे लोगों को प्रभावित करती हैं।
लेकिन हर बार, लोगों को समझाते हुए क्या मुझे ऐसा लगता है कि काश, मेरे इस तरह समझाने का कुछ सरल होता। जी हाँ, हर बार मुझे यह ख्याल आता है।
मेरी बड़ी इच्छा होती है कि अगर क्विअर समुदाय भी इन मिथकों और भ्रमों को दूर करने में कुछ और अधिक सक्रिय होकर सहयोग देता को कितना अच्छा था। पहले पहल भारत में कुछ क्विअर लोगों से आरंभिक बातचीत के दौरान तो मैं उनकी इस बात से लगभग नाराज़ ही हो गयी थी कि वे विविध यौनिकता के लोगों के लिए प्रयुक्त होने वाले संक्षेपाक्षर (acronym) LGBTQIAP (पी पैनसेक्शुअल के लिए) को अक्सर विस्तृत करते हुए इसमें K+ अर्थात किंक ( गैर-पारंपरिक यौन व्यवहार, अवधारणा या कल्पना) को भी जोड़ देते थे। मुझे उनका ऐसा करना बिलकुल इस तरह लगता था जैसे हिन्दुत्व की परिभाषा में दूसरे सभी अल्पसंख्यकों, पंथों और धर्म पद्धतियों को मिला दिया गया हो। अब आप शायद से मेरे भावों को समझ गए होंगे!
मुझे लगता है कि बहुत से लोगों ने मेरे बारे में कई तरह के अंदाजे इसलिए लगाए होंगे क्योंकि शायद वे किंक को भी LGBT का ही भाग समझते हैं। मुझे व्यक्तिगत तौर पर उनकी इस जानकारी और इस तरह के निष्कर्ष निकाल लेने से फ़र्क नहीं पड़ता, लेकिन मुझे लगता है कि उन्हें यह चाहिए कि वे किंक को LGBT से अलग करके देखना शुरू कर दें। मैंने जब भी लोगों को यौनिकता की इन बारीकियों से अवगत करवाया है, तो देखा है कि अचानक उनका रवैया मेरी ओर बिलकुल बदल जाता है और वे मुझे एक बिलकुल अलग व्यक्ति के रूप में देखने लगते हैं। इसके साथ ही साथ BDSM का पालन करने वाले एक व्यक्ति रूप में मेरी स्वीकार्यता भी उनकी निगाह में बदल जाती है। शायद उन्हें लगता है कि किंक व्यवहार करने वाली मैं, जो कि ‘वैसे ही बहुत खराब’ है शायद और भी अधिक या ‘दोगुनी खराब’ होती अगर मैं एक लेस्बियन या बाइसेक्शुअल किंक होती! अज्ञानी लोग, मैं तो कहती हूँ! मज़ाक अपनी जगह है, पर मुझे लगता है कि मेरे किंक की वजह से LGBT समुदाय के लोगों, जो कि मेरे दिल के बहुत करीब हैं, के हित प्रभावित होते हैं।
आइए अब किंक व्यवहार को क्विअर समझने की भूल करने से आगे बात करते हैं। किंक व्यवहारों को क्विअर रुझानों में सम्मिलित कर देने से दूसरी कौन सी चुनौती खड़ी हो जाती है? मैं मानती हूँ कि केवल L G B या T हो ही क्विअर व्यवहार मान लेना इसे बहुत ही सरल करके प्रस्तुत करना है, लेकिन मुझे यह भी लगता है कि किंक जैसे यौन अभिव्यक्ति के व्यवहारों को या फिर केवल सेक्स डॉल के साथ सेक्स करने वाले पुरुषों के व्यवहारों को LGBTQ की संरचना में शामिल नहीं किया जाना चाहिए। किंक व्यवहार करना या सेक्स डॉल से साथ सेक्स करना आदि वास्तव में यौनिक अभिव्यक्ति के तरीके ही तो हैं पर वे किसी भी तरह से यौनिक रुझान नहीं कहे जा सकते। इन्हें LGBTQ आदि के साथ मिलाकर देखने से दोनों ही मुद्दों को कमजोर कर दिया जाता है। एक तरह की नकारात्मक तुलना करने के तरीके से देखें तो यह बिलकुल ऐसा ही है जैसे काम की समस्याओं को व्यक्तिगत समस्याओं के साथ मिलाकर देखना और फिर इसमें परिवार के किसी दूसरे सदस्य की समस्याओं को भी जोड़ देना! इस तरह कर देने से यह चुनौती या समस्या बहुत बड़ी प्रतीत होने लगती है और ऐसा लगता है कि इसका कोई समाधान खोजा ही नहीं जा सकता।
मैं समवेशिता की ताकत को नकार नहीं रही हूँ और न ही मैं यह कह रही हूँ कि मिलकर काम करने से लाभ नहीं होते, या फिर यह कि मानव यौनिकता के प्रत्येक आयाम का अनुसरण करने वाले समुदायों को आपस में इस तरह मिल जाने से कोई बहुत ज़्यादा लाभ मिलने वाला है। लेकिन मेरा व्यक्तिगत विचार यह है कि, चाहे कोई भी व्यवहार हो, खासकर किंक व्यवहार, जो कि अभी अपने शुरुआती दौर में है और जिसके बारे में अभी बहुत ज़्यादा जानकारी नहीं है, उसके बारे में अधिक जानने के लिए अलग से मंच होना चाहिए। और जब तक बड़ी संख्या में लोग किंक से प्रभावित नहीं होते, तब तक इसे क्विअर व्यवहारों के बड़े दायरे में या यौनिकता की श्रेणी में, यहाँ तक कि मानव व्यवहारों की श्रेणी में भी शामिल नहीं किया जाना चाहिए।
सोमेन्द्र कुमार द्वारा अनुवादित
To read this article in English, please click here.