तनाव, बर्नआउट और खुशहाली, ये कुछ ऐसे महत्वपूर्ण विषय हैं जो अक्सर सामाजिक कार्यकर्ताओं, ऐक्टिविस्टस, केस वर्कर्स और हाशिये पर रह रहे समुदायों के लोगों के लिए अनदेखे रह जाते हैं।
तारशी नें पिछले दो दशकों से निरंतर अपने कार्यों और दूसरे संगठनों/एनजीओं आदि के लिए चलाए जा रहे कार्यक्रमों में तनाव प्रबंधन और बर्नआउट की रोकथाम के विषयों को शामिल किया है। हमारी संस्था द्वारा शुरुआती वर्षों में चलाई गयी हेल्पलाइन भी इसी कार्य की ओर लक्षित थी।
इन विषय पर लगातार अपना ध्यान केंद्रित रखने का परिणाम यह हुआ है कि तारशी के अंतर्गत, और बाहर भी, जानकारी पाने की इस महत्वपूर्ण यात्रा में हम ज्ञान और सूचनाओं के एक विशाल भंडार का संग्रह संकलित करने में सफल रहे हैं। अपने इन अनुभवों के आधार पर तारशी नें आरंभिक दिनों से ही दूसरों को परामर्श देने वाले सभी काउंसिलरों/कर्मचारियों के लिए आत्म-देखभाल को बहुत अधिक महत्व दिया है। हमारे काम के शुरुआती वर्षों से ही हमनें हेल्पलाइन कर्मचारियों के प्रशिक्षण में बर्नआउट की रोकथाम के विषय को शामिल किया। हमने सामाजिक सेवा और अधिकारों से जुड़े मुद्दों पर काम कर रहे दूसरे संगठनों को भी अपने काम को बिना हतोत्साहित हुए लंबे समय तक कर पाने में सहायक इस विषय के बारे में जानकारी भी दी।
तनाव प्रबंधन और बर्नआउट रोकने की हमारी यात्रा
1996 में यौनिकता से जुड़े मुद्दों पर लोगों को जानकारी और परामर्श देने के लिए एक टेलीफ़ोन हेल्पलाइन के संचालन से हमनें अपना काम शुरू किया था। हमारे कार्यकर्ताओं की टीम नें इस हेल्पलाइन की 13 वर्ष की अवधि में 60,000 से अधिक टेलीफ़ोन कॉल लिए। हमें यह तो पता था कि किसी भी विषय पर काउन्सलिंग देने वाले कार्यकर्ताओं का अभाव होता ही है, और खासतौर पर लोगों के यौन आनंद के अधिकार की पुष्टि करने वालें काउन्सलरों की बहुत कमी रहती थी।जितने भी लोग इस क्षेत्र में योग्यता रखते थे या तारशी द्वारा प्रशिक्षित किए गए थे, उन पर काम का बहुत ज़्यादा दबाव रहता था।सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि ऐसी सेवाओं में लोगों की सलाह और जानकारी की ज़रूरत को किस तरह से पूरा किया जाए और वह भी तब जब न सिर्फ़ समाज यौनिकता को एक निषिद्ध और गैर-ज़रूरी विषय समझता था (और आज भी समझता है) परंतु यह भी माना जाता था कि लोगों के सामने इससे कहीं बड़ी ‘समस्याएँ’ हैं। अधिकारों की पुष्टि करने के दृष्टिकोण से इस विषय पर प्रश्नों के उत्तर देने का भी दबाव रहता था क्योंकि कभी-कभी अनेक कारणों से, बिलकुल इन्हीं प्रश्नों के उत्तर कार्यकर्ताओं को खुद अपने जीवन में नहीं मिल पाते थे। हमें शुरू में ही यह आभास हो गया था कि इन कारणों के चलते हमारी टीम के सदस्यों में बर्नआउट होने की बहुत अधिक संभावनाएँ थीं, इसीलिए हमनें तनाव को कम करने और बर्नआउट की रोकथाम करने के अनेक उपाय खोजें और अपने कर्मियों की खुशहाली सुनिश्चित करने के लिए ज़रूरी नीतियाँ लागू की।
आज हमें यह देख कर बहुत प्रसन्नता होती है कि तनाव के प्रबंधन और बर्नआउट की रोकथाम को महत्वपूर्ण समझा जाने लगा है, खासकर हम जैसे लोगों के लिए जो लोगों के बीच प्रत्यक्ष रूप में काम करते हैं। लेकिन अब भी ऐसा कहा जा सकता है कि इस बारे में बहुत कम चर्चा या विचार-विमर्श होता है और वो भी अक्सर केवल इतना ही कि “हाँ, तनाव का प्रबंधन किए जाने की ज़रूरत है ताकि व्यक्ति अधिक उत्पादक हो सके”। हमारा मानना है कि आत्म-देखभाल और खुशहाली हर व्यक्ति का अधिकार है। और चूंकि महिलाओं और अन्य जेंडर, यौनिक पहचान, व्यवसाय, वर्ग, जाति या विकलांगता के कारण हाशिये पर रहने वाले लोगों में तनाव के प्रबंधन के विषय पर उतना अधिक ध्यान नहीं दिया जाता, हमें यह एक नारिवाद से जुड़ा मुद्दा भी लगता है।
तारशी में हम सुरक्षित माहौल तैयार कर, अनेक तरह के सरल तरीकों की जानकारी देकर, पूरी प्रक्रिया के बारे में बताते हुए लगातार व्यक्तियों, संस्थाओं ओर समुदायों को तनाव के प्रबंधन, बर्नआउट की रोकथाम और आत्म-देखभाल की जानकारी देते रहे हैं ताकि कुशल रहने के ‘विषय’ को दीर्घकालिक बनाया जा सके।
आत्म-देखभाल, कुशलता, तनाव प्रबंधन और बर्नआउट की रोकथाम के बारे में हमारे काम के कुछ प्रमुख पहलू इस प्रकार से रहे हैं:
2018-19: 2018 और 2019 में तनाव प्रबंधन और बर्नआउट की रोकथाम के विषय पर तारशी और नज़रिया नें मिलकर दिल्ली, गुवाहाटी और हैदराबाद में तीन आवश्यकता आंकलन वर्कशॉप्स आयोजित कीं। इन वर्कशॉप्स में प्रतिभागियों से मिले फीडबैक और जानकारी इस विषय पर आवश्यकताओं को गुणकारी रूप से समझने में बहुत सहायक हैं और इन्हें विस्तार से हमारी रिपोर्ट में शामिल किया गया है। आप इस रिपोर्ट को यहाँ पढ़ सकते हैं।
2015-16: 2015 में नेपाल में आए विध्वंसकारी भूकंप के बाद तारशी नें WOREC प्रतिभागियों के लिए एक वर्कशॉप का आयोजन किया। 2016 में हमनें ACCESS-UNHCR के शरणार्थियों के आजीविका कार्यक्रम के लिए बर्नआउट की पहचान, इसकी रोकथाम और इसके समाधान खोजने के विषय पर एक वर्कशॉप आयोजित की। इन दोनों वर्कशाप्स में प्रतिभागियों को तनाव के प्रबंधन और आत्म-देखभाल के दूसरे तरीकों के बारे में बताते हुए इमोश्नल फ्रीडम टेक्निकस (EFT) से अवगत कराया गया।
2012: तारशी और इंटरनैशनल प्लांड पेरेंटहुड फ़ैडरेशन के दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय कार्यालय (IPPF-SARO) ने यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य (SRH) के विषय पर काम कर रहे कार्यकर्ताओं और सेवाप्रदाताओं की क्षमता वृद्धि के लिए संयुक्त रूप से एक क्षेत्रीय पहल की। हमनें इस पहल के तहत एकीकृत परामर्श सेवाओं पर प्रशिक्षण मैनुअल तैयार की जिसमें तनाव, बर्नआउट और आत्म-देखभाल के विषयों पर विशेष रूप से प्रशिक्षण सामग्री शामिल की गई क्योंकि इनका सीधा संबंध परामर्श देने के कौशल और इसकी सेवाओं से है।
2003-05: तारशी नें फ़रवरी 2003 में हेल्पलाइंस की पहली राष्ट्रीय बैठक का आयोजन किया। इसके बाद चाइल्डलाइन इंडिया फ़ाउंडेशन (CIF) ने अगस्त 2003 में दूसरी बैठक आयोजित की। इसी वर्ष CIF और तारशी के बीच सहयोगात्म्क प्रयास के तौर पर राष्ट्रीय हेल्पलाइन नेटवर्क की स्थापना की गई। इसी काम को आगे बढ़ाते हुए 2005 में तारशी नें बर्नआउट की रोकथाम के विषय पर हेल्पलाइन चला रहे संगठनों की राष्ट्रीय बैठक आयोजित की। इस बैठक में आत्महत्या की रोकथाम, परिवार परामर्श, यौनिकता, संकट में जी रहे बच्चों, मादक पदार्थों का सेवन कर रहे लोगों के पुनर्वास, कैंसर रोगियों की देखभाल और एचआईवी व एड्स के क्षेत्र में काम कर रही हेल्पलाइंस की भागीदारी रही। इस बैठक से इन सभी हेल्पलाइंस को अपने संगठनों में बर्नआउट की रोकथाम व इसके समाधान के लिए व्यावहारिक व कम ख़र्चीले प्रयत्न करने पर चर्चा करने का साझा मंच मिल पाया।
1996-2009: तारशी ने दो भाषाओं – हिंदी और अंग्रेज़ी – में एक टेलीफ़ोन हेल्पलाइन का संचालन किया जिसके माध्यम से यौनिकता, यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य पर जानकारी, परामर्श और रेफ़रल दिए जाते थे। इस दौरान हमें यौनिकता पर सामान्य जानकारी लेने व गर्भनिरोध, गर्भसमापन, यौनिक पहचान, जबरन सेक्स के अनुभव, सेक्स में आनंद की कमी, आपसी सम्बन्ध आदि विषयों पर जानकारी और/या परामर्श पाने के लिए लगभग 60,000 टेलीफ़ोन कॉल आए। इन विषयों पर जानकारी व परामर्श देने वाले कार्यकर्ताओं को तारशी द्वारा 12 सप्ताह के गहन प्रशिक्षण कार्यक्रम में प्रशिक्षित किया गया था। इस प्रशिक्षण में जानकारी देने, दृष्टिकोण को समझने और सलाह देने के कौशल को शामिल किया गया था। प्रशिक्षण में सलाह देने के कौशल के अंतर्गत खुद को समझ पाने और बर्नआउट से बचने के उपायों को भी शामिल किया गया था। यह उस समय की बात है जब इन विषयों को आज की तरह इतना अधिक महत्वपूर्ण नहीं समझा जाता था!