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कुछ बातें हमारी तुम्हारी

हस्तमैथुन करने का अर्थ है, अपने शरीर के अंगों को इस तरह से छूना-सहलाना जिससे आप चरम आनंद महसूस कर सकें। हस्तमैथुन सबसे सुरक्षित सेक्स की तकनीकों में से एक है। यह स्वयं आनंद प्राप्त करने का एक तरीका है जिसमें एचआईवी या यौन संचारित संक्रमण या गर्भधारण का कोई ख़तरा नहीं होता है। यौन चिकित्सकों का मानना है कि यदि आप स्वयं के साथ एक स्वस्थ यौन संबंध बनाने में सक्षम होते हैं तो संभावना है की आप दूसरों के साथ ज़्यादा आनंद अनुभव कर सकेंगें।

हस्तमैथुन आनंददायक एवं पूरी तरह हानिरहित क्रिया है। महिलाएँ एवं पुरुष दोनों ही हस्तमैथुन करते हैं। कोई कितनी बार हस्तमैथुन करते हैं इस बात का तब तक कोई फ़र्क नहीं पड़ता जब तक यह उनके दैनिक कामों में बाधा न उत्पन्न करे या इसमें किसी को भी उनकी मर्ज़ी के खिलाफ़ शामिल न किया गया हो। हस्तमैथुन का सेक्स जीवन पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता है। यह व्यक्ति के अधिकारों के निहित एक जायज़ क्रिया है और हस्तमैथुन करने से कमज़ोरी नहीं होती, विकास नहीं रुकता, मुहांसे नहीं निकलते और कोई भी मनोवैज्ञानिक ‘विकार’ नहीं होते।

वीर्य में शुक्राणु, द्रव्य एवं प्रास्टाग्लैंडिन नामक पदार्थ होते हैं। अंडकोष में लगातार वीर्य का उत्पादन होता रहता है। जबकि पुरुष के शरीर में किशोरावस्था के बाद लगातार वीर्य का उत्पादन होता रहता है, इसे शरीर में संग्रहीत करने के लिए पर्याप्त स्थान नहीं होता, इसलिए हस्तमैथुन करने से शुक्राणु के उत्पादन पर कोई असर नहीं होता। हस्तमैथुन आनंददायक एवं पूरी तरह हानिरहित क्रिया है और इससे वीर्य की कमी नहीं होती। अतः प्रजनन क्रिया पर भी इसका कोई असर नहीं होता।

  • हस्तमैथुन करने की आदत कोई चिंता की बात नहीं है। हस्तमैथुन करना केवल उस स्थिति में समस्या समझा जा सकता है जब यह आपके रोज़मर्रा के जीवन पर प्रभाव डालने लगे या तनाव को दूर करने का यही एकमात्र तरीका बन जाए। हस्तमैथुन करना खुद यौनिक आनंद प्राप्त करने का सबसे सुरक्षित तरीका होता है। हस्तमैथुन करते समय निम्न बातों का ध्यान रखें –
    • हस्तमैथुन करते समय किसी नुकीली या मैली वस्तु (आपके नाखूनों सहित) का इस्तेमाल न करें।
    • किसी भी ऐसी वस्तु के इस्तेमाल से बचें जिसके उपयोग से दर्द या असहजता का अनुभव हो।
    • कभी-कभी हस्तमैथुन के दौरान घर्षण (रगड़) के कारण यौन अंगों की त्वचा में जलन महसूस हो सकती है। चिकनाई युक्त पदार्थ का प्रयोग करने से त्वचा के ऊपर एक सुरक्षा परत बन जाती है और इससे घर्षण से सुरक्षा मिलती है।
    • कुछ लोग हस्तमैथुन के दौरान सेक्स टॉय का इस्तेमाल करना भी करते हैं। ऐसे में इनकी साफ़ सफ़ाई का विशेष ध्यान रखें क्योंकि इनसे संक्रमण का संचारण आसानी से हो सकता है।
    • किसी अन्य व्यक्ति के सामने उनकी सहमति के बिना हस्तमैथुन करना उनके अधिकारों का उलंघन है। 18 वर्ष से कम आयु के किसी व्यक्ति के सामने उनकी मर्ज़ी होने पर भी हस्तमैथुन करना यौन शोषण कहलाता है और अपराध है।

कभी-कभी रात को सोते हुए लिंग में तनाव आ सकता है और इसके बाद या इसके बिना वीर्य भी निकल सकता है। इस प्रक्रिया को स्वप्नदोष या ‘नाइट फॉल’ कहते हैं। यह बिल्कुल स्वाभाविक और आम प्रक्रिया है, कोई दोष, बीमारी या कमज़ोरी नहीं है। आपने ठीक कहा, इसकी शुरुआत किशोरावस्था में होती है और परेशान न हों, आपकी उम्र के युवा लोगों में स्वप्नदोष होना आम बात है। यह प्रक्रिया पुरुष के शरीर के विकास का हिस्सा है। किशोरावस्था से लड़कों के शरीर में वीर्य का उत्पादन शुरु हो जाता है और इसके बाद लगातार वीर्य का उत्पादन होता रहता है। स्वप्नदोष इसलिए होता है क्योंकि शरीर में वीर्य बहुत मात्रा में बनता है पर उसको इकट्ठा करने के लिए शरीर में जगह नहीं होती है। इसे अंततः बाहर तो आना ही होता है, अतः अगर दिन में वीर्य शरीर से बाहर नहीं निकलता तो रात में सोते-सोते निकल जाता है।

यौन उत्तेजक सपने अश्लील या बुरे नहीं होते हैं और न ही इनका मतलब यह है कि आप अति कामुक हैं। स्वप्नदोष के साथ हमेशा ही कोई यौन भावना या यौन उत्तेजक स्वप्न नहीं जुड़ा होता। अक्सर युवा पुरुष स्वप्न दोष के कारण बहुत शर्मिंदगी महसूस करते हैं और यौन उत्तेजक स्वप्न एवं भावनाओं के लिए स्वयं को दोषी मानते हैं। ये जीवन का एक हिस्सा हैं न कि परेशान होने वाली कोई बात।

जब लड़के या पुरुष यौन उत्तेजना महसूस करते हैं तब उनका लिंग सख्त हो जाता है। इसे लिंग में तनाव आना कहते हैं और यह लिंग में रक्त प्रवाह बढ़ने के कारण होता है। किशोरावस्था में इन तनावों की आवृत्ति अधिक होती है और कभी-कभी तो ये शर्मिंदगी का कारण भी बन जाते हैं। लिंग में तनाव का आवश्यक रूप से यही मतलब नहीं होता है कि आप यौनिक रूप से उत्तेजित हों। असल में किशोरावस्था में लड़कों के शरीर में उत्पादित हो रहे हॉर्मोन्स के स्तर के तेजी से बढ़ने के कारण ऐसा होता है। इसी समय शरीर के अन्य हिस्सों एवं दिमाग के बीच कुछ नए संपर्क विकसित हो रहे होते हैं। इनके कारण कोई भी उत्तेजना लिंग में तनाव पैदा कर सकती है जैसे कोई यौनिक विचार, हल्का सा स्पर्श, जीन्स के कारण पड़ रहा दबाव, यहाँ तक कि परिक्षा से जुड़े तनाव भी (यह तो बिल्कुल भी सेक्सी नहीं है)! समय के साथ आप इस उत्तेजना को बेहतर संभालने में सक्षम हो जाएंगे।

यदि पुरुष के उत्तेजित लिंग की लम्बाई दो इन्च के करीब है तो वे पूरी तरह अपनी साथी को उत्तेजित एवं संतुष्ट करने में सक्षम हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि महिला की योनि के शुरु के डेढ़ इन्च के हिस्से में सबसे ज्य़ादा तंत्रिकाएँ होती हैं  जिसके कारण इस हिस्से में सबसे अधिक संवेदनाओं का एहसास होता है। और योनि से ज्य़ादा क्लिटरिस या टिठनी (योनि द्वार के ऊपर स्थित, जहाँ भीतरी होंठ मिलते हैं) संवेदनशील होती है। अतः यदि आप और आपकी साथी इस बात पर ध्यान देने की बजाय कि लिंग की लम्बाई कितनी है, इस पर ज्य़ादा ध्यान दें कि आप जो कर रहे हैं,  कैसे कर रहे हैं, चाहे वह लिंग की मदद से हो या उंगलियों से या मुँह से, तो संभावना है कि दोनों साथी सेक्स का ज्य़ादा आनंद ले सकेंगें। वैसे भी आपके लिंग की लम्बाई का आपके सेक्स का आनंद लेने से कोई संबंध नहीं है। तकनीक महत्वपूर्ण है न कि आकार।

लिंग की मोटाई या उसकी परिधि यौनिक आनन्द एवं प्रजनन के लिए चिन्ता का विषय नहीं है। ऐसा इसलिए है क्योंकि योनि की दीवारें मांसपेशी युक्त तथा लचीली होती हैं और यह छोटी उंगली से लेकर शिशु के सिर के बराबर तक की किसी भी चीज़ के अनुरुप फै़ल या सिकुड़ सकती हैं। वास्तव में बहुत मोटा लिंग आपके साथी को डरा सकता है और सेक्स के प्रति उनकी उत्तेजना को ख़त्म कर सकता है। लिंग में कुछ अंश का झुकाव भी सामान्य है।

सभी लोगों में यौन इच्छा हो सकती है चाहे वे किसी भी जेंडर के हों और उन्हें अपनी यौनिकता को ज़ाहिर करने का अधिकार है। कुछ समाजों में यह माना जाता है कि पुरुष की इच्छा को महिला से पहले महत्व दिया जाना चाहिए और केवल पुरुष ही यौनिक आनन्द के अधिकारी हैं। परन्तु यह सही नहीं है।

व्यायाम या मालिश करने से स्तनों के माप में कोई परिवर्तन नहीं होता, ये सिर्फ स्तन के आस-पास की मांसपेशियों को मज़बूत करते हैं। पूर्णतः अर्धगोलाकार स्तन केवल आपरेशन या दूसरी तकनीकों द्वारा ही प्राप्त किए जा सकते हैं। महिला के स्तन के आकार का उनकी सेक्स के प्रति रुचि और उनके यौनिक आनंद लेने या देने की क्षमता से कोई संबंध नहीं होता है। अतः चिन्ता की कोई आवश्यकता नहीं है। आपकी यौनिकता केवल आपके शरीर के कुछ हिस्सों तक ही सीमित नहीं है। आपका पूरा शरीर, आपके आकार, रंग, आकृति और वज़न पर ध्यान दिए बिना भी यौनिक है। अपने पूरे शरीर का आनंद लें।

मासिक धर्म के दौरान या उससे पहले स्तनों, पेट के निचले हिस्से, पीठ के निचले हिस्से और/या जांघों में दर्द या भारीपन काफ़ी आम है। गर्म पानी की थैली के उपयोग और/या पेट के निचले हिस्से की धीरे-धीरे मालिश करने से मदद हो सकती है। इसके अलावा, सैर करने जैसे हल्के व्यायाम और नियमित दैनिक गतिविधियाँ मांसपेशियों को ऐठन से रोकने में मददगार होती हैं। अत्यधिक दर्द, अधिक मासिक प्रवाह या अनियमित मासिक चक्र के मामले में, एक स्त्री रोग विशेषज्ञ से जल्द से जल्द से परामर्श करें। कभी-कभी खेल कूद, धार्मिक समारोह, शादी ब्याह या भ्रमण के लिए कुछ महिलाएँ स्वयं दवा लेकर अपने मासिक धर्म को संभावित तिथि से पहले या बाद में करने की कोशिश करती हैं। ऐसा करने से शरीर को हानि हो सकती है और शरीर की प्राकृतिक लय भी बिगड़ सकती है।

हाइमन एक पतली और अत्यधिक लचीली झिल्ली होती है जो योनि में मौजूद होती है। टैम्पान के उपयोग से हाइमन फट नहीं सकती है, क्योंकि यह झिल्ली लचकदार होती है। हालांकि हाइमन जीवन में किसी भी बिंदु पर, साइकिल चलाते समय या व्यायाम के दौरान, या किसी भी अन्य काम के दौरान टूट या खिंच सकती है। तो, एक हाइमन की उपस्थिति या अनुपस्थिति से इस बात का कोई संकेत नहीं मिलता कि महिला  ने सेक्स किया है या नहीं। किसी भी पुरुष या महिला के कौमार्य का कोई सबूत नहीं होता है।

कुछ महिलाएँ पैड की तुलना में टैम्पान पसंद करती हैं। आपको वही उपयोग करना चाहिए जो आपके लिए अधिक आरामदायक हो। हालांकि एक टैम्पान के उपयोग की विधि जानने में कुछ समय और प्रयास लग सकता है, अगर ठीक से इस्तेमाल किया जाए तो यह सुरक्षित और सुविधाजनक होता है। यदि टैम्पान को सही तरीके से अन्दर न डाला गया हो या स्थित न किया गया हो तो इसके कारण असुविधा हो सकती है। यदि टैम्पान का उपयोग करते समय आप तनाव में हों तो इसके प्रयोग में आपको दर्द हो सकता है। टैम्पान के प्रयोग की निर्देश पुस्तिका को ध्यान से पढ़ें। संक्रमण को रोकने के लिए हर चार से छह घंटे के पश्चात टैम्पान बदल दिया जाना चाहिए। हो सकता है कि आपने टैम्पान को देर तक बदला न हो इसी कारण आपको चकत्ते हो गए हों। कुछ लोग टैन्पान में उपयोग किए जाने वाले पदार्थ के प्रति भी संवेदनशील होते हैं। भविष्य में, किसी योग्य डाक्टर की सलाह के बिना योनि या उसके आस-पास कोई भी क्रीम लगाने से बचें।

किसी व्यक्ति द्वारा मुँह या जीभ का प्रयोग करके साथी के यौनिक अंगों को उत्तेजित करने की क्रिया को मुख मैथुन कहते हैं। जब यह किसी महिला पर किया जाता है तो इसे कनिलिंगस कहते हैं और जब यह किसी पुरुष पर किया जाता है तो इसे  फलेशियो कहते हैं।

योनि सेक्स के दौरान लिंग एवं योनि के बीच घर्षण को बढ़ाने के लिए योनि को कपड़े या औषधि से सुखाने की प्रक्रिया को ड्राई सेक्स कहते हैं।  कहा जाता है घर्षण पुरुषों में आनंद को बढ़ाता है। यह योनि के कटने एवं छिलने की संभावना को भी बढ़ाता है अतः एचआईवी सहित अन्य यौन संचारित संक्रमणों की संभावना को भी बढ़ाता है।

सेक्स महिलाओं एवं पुरुषों के बीच, जन्म से उपस्थित जैविक, संरचनात्मक, शारीरिक एवं गुणसूत्री अन्तर को दर्शाता है जैसे योनि या लिंग की उपस्थिति, मासिक धर्म या शुक्राणु उत्पादन, आनुवांशिक बनावट में अन्तर आदि। सेक्स शब्द का उपयोग यौन क्रिया को परिभाषित करने के लिए भी किया जाता है जिनमें प्रवेशित योनि मैथुन, मुख मैथुन, गुदा मैथुन, हस्तमैथुन एवं चुम्बन जैसी क्रियाएँ शामिल हैं पर सेक्स केवल इन्हीं क्रियाओं तक ही सीमित नहीं है।

डब्लुएचओ की 2002 की ड्राफ्ट परिभाषा के अनुसार यौनिकता मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन का महत्वपूर्ण पहलु है जिसमें लिंग, जेन्डर पहचान व भूमिकाएँ, यौनिक पहचान, कामुकता, आनन्द, घनिष्टता एवं प्रजनन सम्मिलित हैं। यौनिकता विचार, परिकल्पना, इच्छा, विश्वास, अभिवृत्ति, मूल्यों, व्यवहार, अनुभव एवं संबंधों में महसूस एवं अभिव्यक्त की जाती है। यद्यपि यौनिकता के अंतर्गत उपरोक्त सभी पहलू आते हैं परन्तु सभी एक साथ महसूस एवं अभिव्यक्त नहीं किए जा सकते हैं। यौनिकता पर जैविक, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक, नैतिक, कानूनी, ऐतिहासिक, धार्मिक एवं आध्यात्मिक कारकों का प्रभाव पड़ता है।

दूसरी ओर, किसी व्यक्ति की यौनिक पहचान  इस बात से निर्धारित होती है कि वे किस जेन्डर के व्यक्ति की ओर यौन आकर्षण महसूस करते हैं। उदाहरण के लिए, उनका आकर्षण उन्हीं के जेन्डर के व्यक्ति के प्रति हो सकता है (समलैंगिक), अपने से अलग जेन्डर के व्यक्ति के प्रति हो सकता है (विषमलैंगिक) या एक से अधिक जेन्डर के व्यक्तियों के प्रति हो सकता है (द्वीलैंगिक)।

जैसा हमने पहले भी कहा है, सेक्स महिलाओं एवं पुरुषों के बीच, जन्म से उपस्थित जैविक, संरचनात्मक, शारीरिक एवं गुणसूत्री अन्तर को दर्शाता है जैसे योनि या लिंग की उपस्थिति, मासिक धर्म या शुक्राणु उत्पादन, आनुवांशिक बनावट में अन्तर आदि। दूसरी ओर, समाज महिला एवं पुरुष को जैसे देखता है, जैसे उनमें अंतर करता है तथा उन्हें जो भूमिकाएँ प्रदान करता है, उन्हें जेन्डर कहते हैं। सामान्यतः लोगों से यह उम्मीद की जाती है कि वे उन्हें दिए गए जेन्डर को स्वीकार करें और उसी के अनुसार उचित व्यवहार करें। जहाँ जेन्डर से जुड़ी भूमिकाएँ सांस्कृतिक एवं सामाजिक अपेक्षाओं के आधार पर होती हैं, वहीं जेन्डर पहचान व्यक्ति द्वारा स्वयं तय की जाती है कि वे स्वयं को पुरुष की श्रेणी में रखना चाहते हैं, महिला की श्रेणी में रखना चाहते हैं या किसी भी श्रेणी में नहीं रखना चाहते हैं। संकेतों के एक जटिल समूह के आधार पर किसी व्यक्ति का जेन्डर तय किया जाता है जो हर संस्कृति में अलग हो सकता है। यह संकेत अनेक प्रकार के हो सकते हैं, जैसे व्यक्ति कैसे कपड़े पहनते हैं, कैसे व्यवहार करते हैं, उनके रिश्ते किसके साथ हैं और वे सत्ता का प्रयोग कैसे करते हैं।

ट्रांसजेन्डर व्यक्ति – अपने शारीरिक जेन्डर को स्वीकार न करते हुए स्वयं को दूसरे जेन्डर का मानने वाले व्यक्ति को ट्रांसजेन्डर व्यक्ति कहते हैं। ट्रांसजेन्डर व्यक्ति स्वयं को ‘तीसरे सेक्स’ का मान भी सकते हैं और नहीं भी। ट्रांसजेन्डर व्यक्ति शारीरिक रूप से पुरुष हो सकते हैं जो स्वयं को महिला मानते हैं और महिलाओं की तरह कपड़े पहनते हैं और बर्ताव या व्यवहार करते हैं। उसी प्रकार, वे शारीरिक रूप से महिलाएँ हो सकती हैं जो स्वयं को पुरुष मानते हैं और पुरुषों की तरह कपड़े पहनते हैं और बर्ताव या व्यवहार करते हैं। यह जरूरी नहीं है कि हर ट्रांसजेन्डर व्यक्ति स्वयं को समलैंगिक मानें।

ट्रांससेक्शुअल  व्यक्ति – जो अपने जेन्डर को बदलने के लिए चिकित्सीय उपाय अपनाते हैं और अपने शरीर में बदलाव लाते हैं, उन्हें ट्रांससेक्शुअल व्यक्ति कहा जाता है। शारीरिक जेन्डर को बदलने के लिए ऑपरेशन, हॉर्मोनयुक्त दवाइयों एवं दूसरी प्रक्रियाओं का सहारा लिया जाता है। वे स्वयं की पहचान समलैंगिक, द्वीलैंगिक या विषमलेंगिक व्यक्ति के रूप में कर भी सकते हैं और नहीं भी। हो सकता है वे ‘पुरुष से महिला ट्रांससेक्शुअल’ या ‘महिला से पुरुष ट्रांससेक्शुअल’ कहलाना पसंद करें या हो सकता है वे इनमें से किसी भी पहचान का चयन न करें।

इंटरसेक्स व्यक्ति – ज़्यादातर बच्चे जब पैदा होते हैं तो उनके बाहरी यौनांगों को देखकर बताया जा सकता है कि वे लड़के हैं या लड़कियाँ। पर कुछ बच्चों के यौनांगों को देखकर यह बता पाना मुश्किल होता है कि वे लड़के हैं या लड़कियाँ। हो सकता है कि उनके कुछ बाहरी यौनांग लड़के और कुछ लड़की की तरह हों या हो सकता है उनके बाहरी यौनांग लड़के की तरह हों पर भीतरी यौनांग लड़की की तरह या इसके विपरीत। ऐसे व्यक्ति जिनमें जन्म से अस्पष्ट यौनांग होते हैं, उन्हें इंटरसेक्स कहा जाता है।

ट्रांसवेस्टाइट  व्यक्ति – जो यौन संतुष्टी के लिए ऐसे कपड़े पहनते हैं जो विशिष्ट रूप से दूसरे जेन्डर के लोगों द्वारा पहने जाते हैं उन्हें ट्रांसवेस्टाइट कहते हैं। ट्रांसवेस्टाइट व्यक्ति ज़्यादातर पुरुष होते हैं जो महिलाओं द्वारा पहने जाने वाले कपड़े पहनना पसंद करते हैं। ट्रांसवेस्टाइट लोगों को ‘क्रॉस ड्रेसर’ भी कहते हैं।

हेट्रोसेक्शुअल वे व्यक्ति होते हैं जो अपने से किसी दूसरे जेन्डर के व्यक्ति की ओर आकर्षण महसूस करते हैं। होमोसेक्शुअल व्यक्ति अपने ही जेन्डर के व्यक्ति की ओर आकर्षण महसूस करते हैं (महिलाएँ जो दूसरी महिलाओं की ओर आकर्षित होती हैं उन्हें लेस्बियन और पुरुष जो दूसरे पुरुषों की ओर आकर्षित होते हैं उन्हें गे कहते हैं)। बाईसेक्शुअल व्यक्ति वे होते हैं जो अपने जेन्डर के व्यक्ति के प्रति आकर्षण महसूस करते हैं और अपने से अलग जेन्डर (एक से ज़्यादा जेन्डर) के प्रति भी आकर्षण महसूस करते हैं।

एसेक्शुअल व्यक्ति किसी भी व्यक्ति की ओर यौनिक आकर्षण नहीं महसूस करते हैं पर किसी भी अन्य व्यक्ति की तरह वे रोमांटिक आकर्षण महसूस कर सकते हैं और गहरे भावनात्मक रिश्ते बना सकते हैं। निसंदेह, उनकी भी भावनात्मक ज़रूरतें होती हैं और अन्य दूसरे लोगों की तरह वे इनको कैसे पूरा करते हैं यह उनका व्यक्तिगत मामला है। वे डेट पर जा सकते हैं, लम्बे अरसे तक भावनात्मक रिश्ते में रह सकते हैं या अकेले रहने का निश्चय भी कर सकते हैं।

इस प्रश्न का उत्तर देना उतना ही कठिन है जितना यह बताना कि विषमलैंगिकता का क्या कारण है। किसी को भी इसका सही उत्तर नहीं पता। कुछ लोग अविवेकपूर्ण ढ़ग से सुझाव देते हैं कि हो सकता है कोई महिला लेस्बियन इसलिए बन जाती हैं क्योंकि उनके किसी पुरुष के साथ बुरे अनुभव रहे होंगे, या एक पुरुष गे इसलिए बन जाते हैं क्योंकि किसी महिला ने उनके साथ बुरा बरताव किया होगा। अगर यह सच होता तो दुनिया में गे एवं लेस्बियन लोगों की संख्या कहीं अधिक होती, है न?

चूंकि गे, लेस्बियन एवं बाईसेक्शुअल लोग बीमार या असामान्य नहीं होते अतः उन्हें किसी ‘इलाज’ की कोई आवश्यकता नहीं होती है। यह कोई असामान्यता या यौन विकृति नहीं है – यह रुझान या अभिव्यक्ति है ठीक उसी प्रकार जैसे कोई व्यक्ति अपने दाएं हाथ का इस्तेमाल करते हैं तो कोई अपने बाएं हाथ का। सभी लोगों को, चाहे वे होमोसेक्सुअल, हेट्रोसेक्सुअल या बाईसेक्सुअल हों, अपनी इच्छाओं के अनुरुप सम्मानपूर्ण जीवन जीने का पूरा अधिकार है। ‘इलाज’ करवाने से उनके यौनिक व्यवहार में अस्थाई परिवर्तन आ सकते हैं परन्तु इसके कारण उनको भावनात्मक एवं अन्य समस्याएँ भी हो सकती हैं।

माहवारी चक्र शुरू होने से पहले ही किशोरियों कि योनि में से थोड़ा-थोड़ा सफे़द पानी आने लगता है जो सफे़द या पानी जैसा बेरंग होता है। सफे़द पानी हर महिला को आता है और यह एक बिल्कुल स्वाभाविक प्रक्रिया है। जिस तरह लार मुँह को गीला रखती है, उसी प्रकार सफ़ेद पानी योनि को गीला एवं स्वस्थ रखता है। इस स्राव की मात्रा और गाढ़ापन मासिक धर्म के विभिन्न दिनों में अलग-अलग हो सकती है। जब कोई महिला उत्तेजित होती हैं तब भी उनकी योनि में से पानी आने लगता है। यह सफ़ेद पानी से अलग होता है, पर यह भी पूरी तरह स्वाभाविक है। लेकिन अगर योनि-स्राव की मात्रा, गंध, गाढ़ापन या रंग बदले हुए लगें (जैसे हरा, पीला वगैरह) या योनि में जलन, खुजली या दर्द महसूस हो, तो ये बीमारी या संक्रमण का संकेत हो सकता है, ऐसे में फ़ौरन डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।

यौन संचारित संक्रमण आम तौर पर यौन क्रिया के दौरान एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में संचारित होते हैं। यहाँ यह बताना ज़रूरी है कि यदि आपके साथी को कोई यौन संचारित संक्रमण हो तो आप एक बार असुरक्षित सेक्स करने से भी संक्रमित हो सकते हैं।

हम आपकी व्यग्रता एवं डर को समझ सकते हैं पर आप यह तब तक नहीं बता सकते कि आपको असुरक्षित सेक्स करने से यौन संचारित संक्रमण हुआ है या नहीं जब तक आप अपनी जाँच नहीं करवाते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि कई यौन संचारित संक्रमणों के कोई प्रत्यक्ष लक्षण नहीं होते हैं। हो सकता है कि आपके साथी को भी ना पता हो कि वे संक्रमित हैं या नहीं। कुछ संक्रमणों के ऐसे लक्षण होते हैं जो हमें सावधान कर सकते हैं कि हो सकता है हम संक्रमित हो गए हों पर कुछ संक्रमणों के होने का हमें तभी पता चलता है जब हम अपनी जाँच करवाते हैं।

एक से अधिक लोगों के साथ सेक्स करने या किसी ऐसे व्यक्ति के साथ सेक्स करने से, जो दूसरे कई साथियों के साथ सेक्स करते हों, एचआईवी या अन्य यौन रोगों के होने का जोखिम बढ़ जाता है। कई लोगों का मानना है कि सेक्स के तुरन्त बाद पेशाब करने, यौनांगों को धोने या किसी एंटीसेप्टिक क्रीम से पोछने पर संक्रमण का जोखिम टल जाता है। ऐसा भी माना जाता है कि ‘अच्छे घर’ के व्यक्तियों को संक्रमण नहीं होगा अत: उनके साथ असुरक्षित यौन संबंध बनाने में कोई ख़तरा नहीं है। यह सब भ्रांतियाँ हैं जो खुद को सुरक्षित रखने में आड़े आती हैं।

संक्रमण के कुछ आम संकेत एवं लक्षण हैं – मुत्र त्याग करते समय जलन होना; यौनांगों में या यदि व्यक्ति मुख मैथुन करते हैं तो मुख में खुजली, लालिमा, ददोरे या चकत्ते होना; यौनांगों पर घाव या छाले होना; यौनांगों से असमान्य स्राव होना; यौनांगों से दुर्गंध आना, आदि। यदि किसी व्यक्ति को इनमें से कोई भी लक्षण हों तो उन्हें तुरन्त किसी योग्यता प्राप्त डाक्टर के पास जाना चाहिए।

रिप्रोडक्टिव ट्रैक्ट इंफे़क्शन (प्रजनन पथ में होने वाले संक्रमण) को संक्षेप में आरटीआई कहते हैं। यह उन संक्रमणों की ओर संकेत करता है जो प्रजनन पथ को प्रभावित करते हैं। आरटीआई उन जीवों की असाधारण वृद्धि के कारण होते हैं जो योनि में साधारणतयः विद्यमान होते हैं या जब यौन संबंध या किसी चिकित्सीय प्रक्रिया के कारण जीवाणु या सूक्ष्म जीव प्रजनन पथ में प्रवेश कर जाते हैं।

सेक्शुअली ट्रांसमिटेड इंफे़क्शन को संक्षेप में एसटीआई कहते हैं जो उन संक्रमणों की ओर संकेत करता है जिनका संचार यौन संपर्क के द्वारा होता है।

जैसा कि नाम से पता चलता है, यौन संचारित संक्रमण या एसटीआई एक संक्रमित व्यक्ति के साथ असुरक्षित यौन संबंध के माध्यम से फैलता है। एसटीआई के लक्षण भिन्न हो सकते  हैं तथा संक्रमण के 1 से 3 सप्ताह के भीतर प्रकट हो सकते हैं। पुरुषों में यौन संचारित संक्रमण के लक्षणों की पहचान काफी आसान है, जो आमतौर पर यौनांगों पर या उनके चारों ओर दिखाई देते हैं। महिलाओं में कई एसटीआई के लक्षण शुरू में प्रकट नहीं होते। पुरुषों में दिखने वाले लक्षणों में लिंग से पीला / सफ़ेद स्राव और अण्डकोष या प्रोस्ट्रेट ग्रंथि में सूजन प्रमुख है। महिलाओं में सबसे सामान्य लक्षण योनि स्राव में बदलाव आना है – जो ज्य़ादा हो सकता है, पीला या हरा हो सकता है या बदबूदार हो सकता है। दूसरे लक्षण जो दोनों में ही पाए जा सकते हैं उनमें छाले, फफोले, फुंसी, पेशाब में जलन, मल द्वार में जलन या स्राव आदि शामिल हैं। यौन संचारित संक्रमण की जाँच के लिए आप किसी भी सरकारी अस्पताल या शहर के किसी भी विश्वसनीय पैथालजी प्रयोगशाला में रक्त का परिक्षण करवा सकते हैं। यदि यौन संचारित संक्रमण का इलाज न करवाया जाए तो गर्भाशय ग्रीवा का कैंसर या अन्य कैंसर, हिपटाइटिस या अन्य जटिलताएँ हो सकती हैं  पर जल्द पता लगने पर और इलाज करवा लेने पर ज्य़ादातर सभी यौन संचारित संक्रमण पूरी तरह ठीक हो सकते हैं।

एचआईवी चार तरीकों से संचारित होता है –

  • संक्रमित व्यक्ति के साथ असुरक्षित यौन संपर्क करने पर
  • संक्रमित माता-पिता द्वारा बच्चे को – गर्भ के समय, प्रसव के समय या शिशु को स्तनपान कराते समय
  • संक्रमित रक्त द्वारा (जिसमें अंगों एवं ऊतकों का प्रतिरोपण शामिल है)
  • इस्तेमाल की हुई संक्रमित सुई, सीरिंज और दंत चिकित्सकों के उपकरणों जैसे चिकित्सा उपकरणों की साझेदारी करने से

एचआईवी परीक्षण में शरीर में एचआईवी की उपस्थिति के लिए जाँच नहीं की जाती है; वे प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा उत्पादित उन एंटीबॉडी की उपस्थिति के लिए जाँच करते हैं जो प्रतिरक्षा प्रणाली एचआईवी का सामना होने पर उत्पन्न करती है। एक ‘पाज़िटिव’ जांच परिणाम के लिए पर्याप्त एचआईवी एंटीबॉडी का उत्पादन करने में शरीर को 3 महीने तक लग सकते हैं। संक्रमण और सही परीक्षण परिणामों के बीच के इस तीन महीने की अवधि को विंडो पीरियड कहा जाता है। इस दौरान व्यक्ति पहले से ही संक्रमित हो सकते हैं और ऐसे में वे एचआईवी का प्रसार भी कर सकते हैं।

 

एचआईवी या ह्यूमन इम्यूनो डिफिशन्सी वायरस एक वायरस है जो यदि एक व्यक्ति के शरीर में मौजूद रहे तो  धीरे धीरे, एक अवधि में, उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली को नष्ट कर देता है। एक कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली के कारण, व्यक्ति में संक्रमण और रोगों का विकास हो सकता है और इस स्थिति को एड्स कहा जाता है। वर्तमान समय में इसका कोई इलाज नहीं है। हालांकि, संक्रमित होने से अपने आप को बचाने के लिए व्यक्ति कुछ साधारण सावधानियों का पालन कर सकते हैं जैसे – सेक्स करते समय हमेशा कण्डोम का प्रयोग करना, रक्त आधान से पहले सदैव रक्त का परीक्षण करवाना, केवल डिस्पोजेबल सीरिंज का उपयोग करना और सुई की साझेदारी न करना।

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इरेक्टाइल डिस्फंक्शन लिंग में उत्तेजना लाने या उसे बनाए रखने की अक्षमता को कहते हैं। यह किसी भी शारीरिक दशा के कारण हो सकती है जैसे लम्बी बीमारी, रोग या उम्र का बढ़ना। यह मानसिक कारणों से भी हो सकता है जो सेक्स या साथी के प्रति अरुचि से लेकर यौन शोषण के प्रभाव तक कुछ भी हो सकता है। इरेक्टाइल डिस्फंक्शन किसी भी उम्र में  हो सकता है और इसके विभिन्न स्वरुप होते हैं।

सबसे पहले तो कोई भी दवा (आयुर्वेद या अन्य कोई भी) लेने के पहले किसी योग्यता प्राप्त डाक्टर से अवश्य सलाह लें। जब कोई पुरुष वीर्यपात को उस समय तक न टाल पाएँ जब तक दोनों साथी इसके लिए तैयार न हों तो इसे शीघ्रपतन कहते हैं। शीघ्रपतन एक व्यक्तिपरक विषय है। स्खलन का समय प्रत्येक व्यक्ति के लिए अलग एवं एक ही व्यक्ति में अलग अलग समय पर भिन्न हो सकता है। कई पुरुष अपनी यौनिक क्षमता की तुलना ब्लू फ़िल्मों की भ्रामक या काल्पनिक मानकों से करके आशंकित महसूस करते हैं। शीघ्रपतन के कई कारण हो सकते हैं जैसे अधिक उत्तेजित होना, यौन क्रिया के प्रति आशंकित रहना, तनाव या साथी के साथ संबंध में समस्या होना आदि। यहाँ कुछ बाते हैं जिन्हें ध्यान में रखकर आप देर तक सेक्स का आनंद ले सकते हैं। सेक्स करने के एक या दो घण्टे पहले हस्तमैथुन करें। कई पुरुषों को इससे अपने साथी के साथ देर तक रहने में मदद मिलती है। यह आपको अपने शरीर के बारे में जानने में मदद करता है और देर तक स्वयं को रोक पाना सिखाता है। कई पुरुषों के अनुसार एक निश्चित समय पर उन्हें पता चल जाता है की उनका स्खलन होने वाला है। हस्तमैथुन के दौरान ठीक इसी समय पर रुकने से मदद मिलती है। इस तकनीक को  ‘स्टाप – स्टार्ट’ कहते हैं। सही नतीज़ों के लिए आपको इसका अभ्यास करना होगा। इसके अलावा अगर आप अपने साथी को देर तक के लिए आनंद देना चाहते हैं तो आप दूसरे तरीकों को भी आज़मा सकते हैं – जैसे उंगलियों का इस्तेमाल  या आप मुखमैथुन भी कर सकते हैं।

जब एक महिला और पुरुष संभोग करते हैं तब पुरुष के लिंग में से निकलने वाला वीर्य महिला की योनि में जाता है। इस वीर्य में कई शुक्राणु होते हैं और आँख से दिखाई नहीं देते हैं। महिला के शरीर में हर महीने अण्डाशय से एक डिम्ब का उत्सर्जन होता है। अगर इस डिम्ब से एक शुक्राणु मिल जाय तो डिम्ब का निशेचन हो जाता है यानि महिला गर्भवति हो जाती हैं। यह निशेचित डिम्ब या भ्रूण नौ महीने तक महिला के शरीर में पलता है और उसके बाद योनि के रास्ते इस दुनिया में बच्चे के रूप में जन्म लेता है।

कभी-कभी डिम्ब और शुक्राणु के निशेचन के बाद भ्रूण दो में बँट जाता है, तब दो बिल्कुल समान जुड़वा बच्चे बनते हैं जो हमशक्ल दिखते हैं।  कभी ऐसा भी हो सकता है कि महिला के शरीर में एक साथ दो डिम्ब का उत्सर्जन हो जाए। ऐसे में यदि दोनों डिम्ब से एक-एक शुक्राणु मिल जाएँ तो जुड़वा बच्चे बन जाते हैं जो दिखने में सामान्य बहन-भाई जैसे लग सकते हैं।

 शुक्राणुओं का गिनती में कम होना – यदि वीर्य में फैलोपियन या डिम्बवाही नलिका को पार करके डिम्ब को निशेचित कर पाने के लिए पर्याप्त शुक्राणु नहीं हैं तो इसे शुक्राणुओं का गिनती में कम होना या ‘लो स्पर्म काउन्ट’ कहते हैं। सामान्यतः वीर्य के प्रति मिलीलीटर में 2 से 15 करोड़ तक शुक्राणु हो सकते हैं। वीर्यपात की सामान्य मात्रा 1.5-5 मिलीलीटर के बीच होती है। शुक्राणुओं का गिनती में कम होना शारीरिक या मानसिक तनाव से, तंग कपड़े पहनने से, वाष्प स्नान लेने से  या गरम टब में नहाने के कारण जननांगों के चारों ओर बहुत अधिक गर्मी हो जाने से, तम्बाकू, शराब या ड्रग्स का सेवन करने से, अधिक दवाओं का सेवन करने से या अण्डकोष में चोट लग जाने आदि से प्रभावित हो सकता है।

शुक्राणु गति का कम होना – इसका अर्थ है कि वीर्य में उपस्थित 50 प्रतिशत से अधिक शुक्राणु योनि तथा गर्भाशय ग्रीवा से तैर कर डिम्बवाही नली तक पहुँचकर डिम्ब को निशेचित कर पाने में असमर्थ हैं। शुक्राणुओं में गतिशीलता कि कमी तंग कपड़े पहनने से, वाष्प स्नान लेने से या गरम टब में नहाने के कारण जननांगों के चारों ओर बहुत अधिक गर्मी हो जाने से या अण्डकोष में स्थित ‘वैरिकोस’ शिरा में सूजन आ जाने के कारण होती है।

जी हाँ, सिर्फ़ एक बार सेक्स करने से ही गर्भधारण या एचआईवी (जो आगे चलकर एड्स का रूप ले सकते हैं) और यौन संचारित संक्रमण हो सकते हैं, तब भी जब एक या दोनों साथी पहली बार ही सेक्स कर रहे हों। एक महिला पहली बार संभोग करने से ही गर्भवति हो सकती हैं क्योंकि गर्भधारण इस बात पर निर्भर करता है कि उनके शरीर में डिम्ब का उत्सर्जन हुआ है या नहीं। चूंकि यह निश्चित तौर पर नहीं बताया जा सकता है कि डिम्ब का उत्सर्जन किस दिन व किस समय होगा अतः कोई भी यह पक्के तौर पर नहीं कह सकता है कि वे गर्भवति होंगी या नहीं। इसी प्रकार संक्रमण के बारे में भी कुछ निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता, क्योंकि कुछ संक्रमण (जैसे एचआईवी) के तो कोई प्रत्यक्ष लक्षण भी नहीं होते हैं। अतः साथी को देखने मात्र से ही कोई यह नहीं बता सकता कि उन्हें संक्रमण है या नहीं। कभी-कभी कोई व्यक्ति एक असुरक्षित यौन संबंध का जोखिम यह सोचते हुए उठा लेते हैं कि उनके साथी एक ‘अच्छे घर’ से हैं इसलिए जोखिम भरे व्यवहार नहीं अपनाते होंगे। संक्रमण किसी को भी हो सकता है – लोगों की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति उनके लिए संक्रमण के खिलाफ़ ढाल नहीं बन सकती है। इन्हीं कारणों से यह आवश्यक हो जाता है कि हर बार यौन संबंध बनाते समय कण्डोम का इस्तेमाल किया जाए या ऐसी गतिविधियाँ अपनाई जाएँ जिससे स्वयं को और साथी को कोई जोखिम न हो या कम से कम जोखिम हो।

जी हाँ, किसी भी प्रकार से यदि शुक्राणु योनिद्वार तक या योनि में प्रवेश कर जाए तो महिला गर्भवति हो सकती हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि प्री-कम से (स्पष्ट तरल की कुछ बूँदें जो स्खलन से काफ़ी पहले लिंग के सिरे पर बनती हैं) और योनि के पास वीर्यपात करने से भी गर्भधारण हो सकता है। यह इसलिए संभव है क्योंकि योनिद्रव्य (योनि का गीलापन) शुक्राणु को महिला के शरीर में तैर कर जाने के लिए माध्यम प्रदान करता है। वीर्य के योनिद्वार या योनि के संपर्क में आने के बाद यह बता पाना कठिन है कि गर्भधारण होगा कि नहीं। गर्भावस्था का निर्धारण आसानी से घर में जाँच करके या और अधिक सटीक परिणामों के लिए डाक्टर से जाँच करवा कर किया जा सकता है।

हालांकि कभी-कभी गर्भावस्था के पहले तीन और अंतिम दो महीनों में प्रवेशित सेक्स करने की सलाह नहीं दी जाती है, लेकिन प्रवेशित सेक्स के अलावा अन्य क्रियाओं द्वारा भी सेक्स का आनंद लिया या दिया जा सकता है। किसी भी यौन गतिविधि के लिए आपसी सहमति और एक दूसरे का ध्यान रखा जाना महत्वपूर्ण है। जब तक कठिन गर्भावस्था में डाक्टर द्वारा सेक्स न करने के स्पष्ट निर्देश न दिए गए हों, तब तक गर्भावस्था के किसी भी चरण में यौन रूप से सक्रीय न रहने का कोई भी कारण नहीं है। गर्भावस्था के आखिरी चरण तक आपसी हस्तमैथुन और मुख मैथुन जैसी क्रियाएँ की जा सकती हैं।

‘कृत्रिम गर्भाधान’ (एआई) प्रजनन में सहायक तकनीकियों (एआरटी) के लिए प्रयोग किया जाने वाला एक सामान्य शब्द है। एआई एक प्रक्रिया है जिसमें एक योग्य प्रजनन स्वास्थ्य विशेषज्ञ, एक महिला के प्रजनन पथ में इंजेक्शन के द्वारा शुक्राणु प्रवेशित करवाते हैं। एआई के विभिन्न प्रकार हैं

इंट्रा सरवाइकल – सर्विक्स अथवा गर्भाशय ग्रीवा में गर्भाधान, इंट्रा  युट्रीन – गर्भाशय में गर्भाधान,  इंट्रा फालिक्यूलर – अण्डाशय में गर्भाधान और इंट्रा ट्यूबल – फैलोपियन या डिम्बवाही नलिकाओं में गर्भाधान।

नियमित रूप से कण्डोम का प्रयोग अनचाहे गर्भधारण और संक्रमण दोनों से सुरक्षा प्रदान करता है। ध्यान रखें, सेक्स के तुरंत बाद पेशाब करने या यौनांगों को धोने से, विशेष मुद्राओं या दवाइयों एवं क्रीम आदि के प्रयोग से गर्भावस्था या संक्रमण से बचाव नहीं होता है। प्री-कम  में शुक्राणु एवं एचआईवी (यदि साथी संक्रमित हों तो) हो सकते हैं। अतः पुरुष को लिंग में उत्तेजना आने के तुरन्त बाद ही कण्डोम पहन लेना चाहिए। आपके साथी हस्तमैथुन के दौरान कण्डोम पहनने का अभ्यास कर सकते हैं।

कण्डोम ही एक ऐसा तरीका है जो  अनचाहे गर्भधारण और यौन संचारित संक्रमण  दोनों से सुरक्षा प्रदान करता है। इसे भारत में सामान्यत: निरोध के नाम से जाना जाता है पर इसके और भी कई ब्रान्ड केमिस्ट के पास आसानी से मिल जाते हैं। कण्डोम ख़ास तरह के रबड़ (लेटेक्स) से बना होता है और लिंग पर पहना जाता है।

कण्डोम के प्रयोग करने का सही तरीका इस प्रकार है  –  कण्डोम के पैकेट को कोने से खोलें, इसे बीच से कभी न फाड़ें। अब इस खुले पैकेट को एक ओर से दबाएँ और कण्डोम को धीरे से बाहर निकालें। अब कण्डोम को लिंग पर चढ़ाने के लिए उसके बंद सिरे को अपनी उंगली और अंगूठे से दबाते हुए उत्तेजित लिंग पर रखें और धीरे-धीरे खोलते हुए पूरे लिंग पर चढ़ा दें  ताकि कण्डोम में कोई हवा न रह जाए। वीर्य स्खलित होने के बाद कण्डोम को धीरे से उतारें और इसके खुले सिरे पर गाँठ लगा दें ताकि वीर्य बाहर न निकल पाए। अब इस इस्तेमाल किए हुए कण्डोम को कूड़े में फेंकने से पहले कागज़ में लपेट दें।

आपके दूसरे सवाल का सीधा सा उत्तर है कि जी हाँ, अनचाहे गर्भधारण और यौन संचारित संक्रमणों से सुरक्षा के लिए यह आवश्यक है कि कण्डोम का सही एवं नियमित प्रयोग किया जाए, यानि हर बार सेक्स करते समय एक नए कण्डोम का सही तरीके से प्रयोग करना!

सामान्य धारणा में कण्डोम को पतला एवं कमज़ोर समझा जाता है और माना जाता है कि ये आसानी से फट जाते हैं। यह सच नहीं है,  यदि ऊपर बताए गए तरीके से कण्डोम का सही प्रयोग किया जाए तो इसके फटने की संभावना बहुत कम होती है। अत: यदि किसी व्यक्ति का कण्डोम बार-बार फट जाता है तो हो सकता है कि वे कण्डोम का सही इस्तेमाल न कर रहे हों। निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखने से कण्डोम के फटने की संभावना न के बराबर रह जाती है –

  • हर कण्डोम एक अलग पैकेट में बंद होता है। इसके पैकेट को ध्यानपूर्वक कोने से खोलें ताकि पैकेट को खोलते समय कण्डोम फट न जाए या उसमें छेद न हो जाए।
  • कण्डोम को लिंग पर चढ़ाने से पहले उसे कभी न खोलें,  उसे उत्तेजित लिंग पर रखकर धीरे-धीरे खोलते हुए लिंग पर चढ़ाएँ।
  • कण्डोम के बंद सिरे से हवा को निकाल देना बहुत ज़रूरी होता है क्योंकि इसी जगह पर लिंग से निकलने वाला वीर्य इकट्ठा होता है। यदि वीर्य इकट्ठा होने के लिए पर्याप्त जगह नहीं होगी तो कण्डोम फट सकता है।
  • यदि आप दो कण्डोम एक साथ प्रयोग करने के बारे में सोच रहे हैं तो इस विचार को तुरन्त छोड़ दें क्योंकि इससे कण्डोम के बीच का घर्षण (रगड़) बढ़ेगा और साथ ही कण्डोम के फटने की संभावना भी।
  • प्रयोग से पहले कण्डोम के पैकेट पर लिखी ‘एक्स्पाइरी डेट’ ज़रूर देख लें और यह भी सुनिश्चित कर लें कि कण्डोम को ‘इलेक्ट्रानिक’ तरीके से जाँचा गया हो।
  • कण्डोम के साथ चिकनाई के लिए तेल, वैसलीन या क्रीम का प्रयोग करने से कण्डोम का लेटेक्स खराब हो सकता है और कण्डोम फट सकता है। चिकनाई के लिए केवल जल-आधारित चिकनाई युक्त पदार्थ का ही प्रयोग करें जैसे ‘के-वाई जेली’ या ‘ड्यूरा जेल’ ।
  • कण्डोम को गर्म स्थानों पर रखने से भी उसका लेटेक्स खराब हो सकता है। अत: विदेश से निर्यात किए हुए कण्डोम खरीदने से बचें क्योंकि निर्यात के समय या उसके बाद भी इनके भण्डारण की स्थिति के बारे में निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता है। यदि आप या आपके साथी भी कण्डोम को किसी गर्म जगह पर रखकर भूल गए हों (जैसे कार में, किसी गर्म मशीन के ऊपर या धूप में) तो उस कण्डोम का प्रयोग न करें।
  • कण्डोम को देर तक जेब में रखने से भी बचें। शरीर की गर्मी या सिक्कों की रगड़ से भी कण्डोम खराब हो सकता है और फट सकता है।

महिला कण्डोम पालीयूरेथेन से बने होते हैं और इनके दोनों सिरों पर एक लचीली रिंग या घेरा होता है। यह लगभग 3 इंच चौड़े और 7 इंच लंबे होते हैं। यह 79 – 95 प्रतिशत तक प्रभावी होता है। यह एसटीआई और एचआईवी संचरण के जोखिम को कम करता है। यह उन लोगों द्वारा भी इस्तेमाल किया जा सकता है जिन्हें पुरुष कण्डोम के लेटेक्स से एलर्जी हो और इसे संभोग करने से 8 घंटे पहले डाला जा सकता है। यह दोनों साथियों के आनंद में वृद्धि कर सकता है क्योंकि सेक्स के दौरान इसका बाहरी घेरा महिला के क्लिटरिस या टिठनी एवं पुरुष के अण्डकोष, दोनों को उत्तेजित कर सकता है। यह प्रजनन क्षमता को प्रभावित नहीं करता है। यह महंगा हो सकता है और कभी कभी संभोग के दौरान शोर या तीखी आवाज पैदा कर सकता है। इसके अलावा, कुछ महिलाओं को इसे इस्तेमाल करना मुश्किल लग सकता है।

उपयोग – चिकनाई युक्त पदार्थ लगाएँ। कण्डोम की भीतरी रिंग (बन्द सिरे के ओर वाली) को योनि में अन्दर तक डालें ताकी गर्भाशय ग्रीवा (सर्विक्स) ढक जाए। कण्डोम का खुला सिरा योनि के बाहर होता है जो आंशिक रूप से लेबिया या बाहरी होठों को ढक देता है। सेक्स के बाद कण्डोम की बाहरी रिंग को घुमाते हुए धीरे से बाहर निकालें ताकी कण्डोम में एकत्रित वीर्य गिर न जाए।

नीचे दिए गए विडियो में महिला कण्डोम के उपयोग का सही तरीका दर्शाया गया है। पहला विडियो अंग्रेज़ी में है और दूसरा बंगला में (अंग्रेज़ी सब्टाइटल के साथ) है पर दृश्य व्याख्यात्मक हैं।

सावधानियाँ – पुरुष एवं महिला कण्डोम का एक साथ प्रयोग न करें। प्रत्येक महिला कण्डोम के एक बार उपयोग करने की सिफारिश की जाती है। हालांकि, महिला कण्डोम को साफ़ एवं रोगाणुमुक्त करके दोबारा उपयोग करने की संभावनाओं पर खोज चल रही है।

असुरक्षित सेक्स के बाद गर्भधारण को रोकने के लिए ली जाने वाली गोलियों को तकनीकी रूप से आपातकालिक गर्भनिरोधक गोलियाँ कहते हैं। इन गोलियों में आम गर्भनिरोधक गोलियों से ज़्यादा मात्रा में हॉर्मोन होते हैं और इसे असुरक्षित सेक्स के 72 घण्टों के अन्दर ले लेना होता है। जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है, इस गोली का प्रयोग तभी किया जाना चाहिए जब गर्भनिरोधन का दूसरा कोई तरीका या तो प्रयोग न किया गया हो या विफल हो गया हो। ऐसी परिस्थितियाँ तब हो सकती हैं जब महिला अपनी रोज़ की गर्भनिरोधक गोली की ख़ुराक लेना भूल जाएँ, कण्डोम फट जाए या फिसल जाए या फिर यौन शोषण या उत्पीड़न की स्थिति हो।

आपके सवाल से एक तरफ़ यह आभास होता है कि आप स्वयं को अनचाहे गर्भधारण से बचाने के लिए जागरुक हैं वहीं यह जानकर चिंता भी होती है कि सामान्य धारणा में आपातकालिक गर्भनिरोधक गोलियों को अनचाहे गर्भधारण से बचने के लिए अचूक उपाय की तरह समझा जाता है। आपातकालिक गर्भनिरोधक गोली के बार-बार और गैर ज़िम्मेदाराना इस्तेमाल से महिला के शरीर पर अनेक दुष्प्रभाव हो सकते हैं क्योंकि इन गोलियों में बड़ी मात्रा में रसायन (हॉर्मोन) होते हैं। अत: इनका इस्तेमाल केवल आपातकाल में ही करना चाहिए।

गर्भनिरोधक गोलियों के बारे में यह अक्सर सुना जाता है,  पर अध्ययन दर्शाते हैं कि गर्भनिरोधक गोलियाँ लेने से महिलाओं के वज़न में केवल थोड़ा-बहुत अंतर पड़ता है और वह भी अस्थाई होता है। गर्भनिरोधक गोलियाँ लेना शुरु करने के तुरन्त बाद महिलाओं के वज़न में हल्की सी वृद्धी होती है जो शरीर में पानी की मात्रा बढ़ने के कारण होती है। यह इसलिए होता है क्योंकि गर्भनिरोधक गोलियाँ पानी के उपापचय क्रिया (वाटर मेटाबोलिज़्म) पर असर डालती है।

दूसरी ओर, वज़न बढ़ने के और भी कारण हो सकते हैं जैसे भोजन के बीच में अल्पाहार (स्नैक्स) की मात्रा का बढ़ना या कसरत के तरीके में अंतर। सीधी भाषा में कहा जाए तो आप इन गोलियों की वजह से स्थाई रूप से मोटी नहीं होंगी! गर्भनिरोधक गोलियों के अपने प्रभाव होते हैं, कुछ महिलाओं में इनके साइड इफेक्ट्स कुछ हफ्तों या महीनों में स्वयं ही खत्म हो जाते हैं और कुछ महिलाओं को अपने डाक्टर से मदद लेनी पड़ती है। पर सिर्फ इस मिथक के कारण गर्भनिरोधक गोलियाँ लेना न बंद करें कि उनके कारण आपका वज़न बढ़ रहा है, एक बार अपने डाक्टर से ज़रूर सलाह लें।

यदि सुरक्षित दिनों से आपका मतलब गर्भावस्था से सुरक्षा है तो यह जानना महत्वपूर्ण है कि मासिक चक्र के दौरान कोई भी दिन पूरी तरह सुरक्षित नहीं होता है। यह बात उन लोगों पर ज़्यादा लागू होती है जिनका मासिक धर्म अनियमित होता है – आपके मासिक धर्म की तरह। आम तौर पर अगले मासिक धर्म से 14 दिनों पहले गर्भाधान की अधिकतम संभावना होती है। यही वह समय है जब महिला के शरीर में डिम्ब का उत्सर्जन होता है। यदि महिला इस दौरान किसी पुरुष के साथ असुरक्षित सेक्स करती हैं तो वे गर्भवति हो सकती हैं। यदि आपको यह नहीं पता कि आपका अगला मासिक धर्म कब होगा, तब यह पता लगा पाना मुश्किल होगा डिम्ब का उत्सर्जन कब होगा। अतः यदि आप गर्भधारण से बचना चाहती हैं खाने वाली गर्भनिरोधक गोलियाँ लें या आपके साथी सेक्स के दौरान हर बार कण्डोम का इस्तेमाल करें। एक महीने में दो बार रक्त स्राव स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से  एक अच्छा संकेत नहीं है। आप किसी स्त्री रोग विशेषज्ञ से मिलकर अपने अनियमित मासिक धर्म के बारे में चर्चा कर सकती हैं और गर्भनिरोधक गोलियों के लिए परामर्श भी ले सकती हैं।

गुदा मैथुन में संक्रमण के संचार का खतरा अधिक होता है और यह गर्भावस्था से भी नहीं बचाता। यह इसलिए है क्योंकि गुदा एवं योनि के बीच की दूरी बहुत कम होती है और गुदा मैथुन के समय वीर्य की कुछ बूंदें योनि में गिर सकती हैं  जिससे गर्भधारण की संभावनाएँ बनी रहती हैं। इसके अलावा गुदा क्षेत्र में कई प्रकार के जीवाणु एवं विषाणु होते हैं। गुदा द्वार योनि की तुलना में कम लचीला और ज्य़ादा सूखा होता है अतः चोट लगने की ज्य़ादा संभावना होती है। इन सब कारकों की वजह से साथियों के बीच संक्रमण का संचार आसान हो जाता है। यदि आप गुदा मैथुन करते हैं तो हमेशा कण्डोम एवं जल-आधारित चिकनाई युक्त पदार्थ  जैसे के वाई जेली” का प्रयोग करें। तेल या क्रीम के उपयोग से संक्रमण हो सकता है और कन्डोम का लेटेक्स खराब हो जाता है।

गर्भावस्था के प्रेरित या सहज समाप्ति को गर्भपात कहते हैं। एक सहज गर्भपात तब होता है जब एक गर्भावस्था किसी भी चिकित्सा या शल्य चिकित्सा हस्तक्षेप के बिना  समाप्त हो जाती है, जैसा ‘मिसकैरेज’ के मामले में होता है। प्रेरित गर्भपात में गर्भावस्था की समाप्ति के लिए शल्य चिकित्सा या चिकित्सा प्रक्रियाओं की मदद ली जाती है।

इस बात का यौन उत्पीड़न होना या नहीं होना इस पर निर्भर करता है कि कार्यालय के कर्मचारियों को उनका व्यवहार कैसा लगता है। किसी एक व्यक्ति को यह स्थिति असहज एवं बुरी लग सकती है वहीं किसी दूसरे व्यक्ति को नहीं। यह भी अलग-अलग संदर्भ के लिए अलग हो सकता है। उदाहरण के लिए – एक चुटकुला यदि किसी पार्टी में सुनाया जाए तो स्वीकार्य किया जा सकता है पर वही चुटकुला यदि किसी कार्यालय की मीटिंग में सुनाया जाए तो सहकर्मियों को आपत्ती हो सकती है। इस स्थिति को तभी यौन उत्पीड़न नहीं माना जा सकता है जब आपके सहयोगी के सभी सह कार्यकर्ता या वे सह कार्यकर्ता, जिन्हें वे ऐसे चुटकुले सुनाते हैं,  उनके इस व्यवहार के साथ सहज हों।

कभी कभी जब हम ‘नहीं’ कहते हैं तो हमारे साथी उसे हमारी ‘ना में हाँ’ समझते हैं। या अगर हम किसी एक यौन क्रिया के लिए अपनी सहमती देते हैं तो उसे हर यौन क्रिया के लिए सहमति के रूप में माना जाता है। अक्सर लोग वही सुनते हैं जो वे सुनना चाहते हैं और वैसे ही चीज़ों को देखते हैं जैसे वे चाहते हैं कि वे हों। ऐसी स्थिति किसी डेट पर, साथ रहते हुए, विवाहित संबंधों में या किसी भी यौन संबंध में पैदा हो सकती है। इस तरह का व्यवहार स्वीकार नहीं किया जा सकता। आपको यह अधिकार है कि आप किसी भी क्रिया के लिए अपनी सहमति या असहमति को ज़ाहिर करें और कोई भी आपको आपकी इच्छा के विरुद्ध कोई क्रिया करने के लिए मजबूर नहीं कर सकते हैं। इसके लिए यह महत्वपूर्ण है कि आप और आपके साथी स्पष्ट और खुले रूप में इस बारे में चर्चा कर लें कि आप कितने आगे तक जाना चाहते हैं और कब रुकना चाहते हैं। यदि आपके साथी आपकी भावनाओं और सीमा का आदर नहीं करते हैं तो शायद आपको अपने रिश्ते को परखने की ज़रूरत है और शायद आप इस रिश्ते में कुछ बदलाव लाना चाहें।

कभी कभी जब लोग बहुत व्यथित या उलझन में हों तो एक प्रशिक्षित परामर्शदाता, काउन्सलर या चिकित्सक जैसे किसी व्यक्ति से बात करने से मदद मिल सकती है। आप चाहें तो कुछ हेल्पलाइन के बारे में हमारी वेबसाइट पर http://tarshi.net/ost/resources/other_helplines.asp जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

अगर कोई उम्र में बड़ा या ज़्यादा ताकतवर व्यक्ति आपके यौनांगों, स्तनों या शरीर के किसी और हिस्से को आपकी मर्जी के बिना छुए या आपको अपने यौनांग दिखाए, आपके शरीर के साथ अपना शरीर रगड़े (कपड़े पहने हुए या बिना पहने हुए), फोन पर या आमने सामने आपसे सेक्स संबंधी बातें करें, आपको कपड़े बदलते हुए या नहाते हुए देखें, आपसे अपने यौनांग छुआए या आपके यौनांग छुए तो यह बाल यौन शोषण है – चाहे छूने वाला व्यक्ति अपने परिवार का हो या बाहर का।

किसी व्यक्ति (चाहे वे किसी भी उम्र के हों) की पूरी मर्ज़ी के बिना अगर उनके साथ संभोग किया जाए तो इसे बलात्कार (रेप) कहते हैं। अगर सोलह साल से कम के किसी व्यक्ति की मर्ज़ी हो,  तो भी उनके साथ किए संभोग को बलात्कार ही माना जाता है क्योंकि उन्हें यौन संबंध एवं उससे जुड़े नतीजों के बारे में ज्ञान नहीं होता है।

याद रखें, अगर आपको किसी का छूना गलत लगता है तो इसमें आपकी कोई गलती नहीं है और अगर आप उनके खिलाफ़ बोलें तो यह बात का बतंगड़ बनाना नहीं है। आपका शरीर सिर्फ़ आपका है और किसी भी गलत या अनचाहे स्पर्श के लिए ‘न’ कहने का आपको पूरा हक़ है।

यदि कोई पुरुष अपनी पत्नी को उनकी इच्छा के विरुद्ध सेक्स करने पर मजबूर करते हैं तो इसे ‘मैरिटल रेप’ या बलात्कार कहते हैं। शादीशुदा होने का यह अर्थ नहीं होता है कि दोनों में से कोई भी अपने साथी पर दबाव डाल सकते हैं। पति पत्नी के बीच भी यौन सम्पर्क आपसी सहमति से ही होना चाहिए। शादीशुदा होने या किसी व्यक्ति के साथ संबंध में होने का मतलब यह नहीं होता है कि  वे हमेशा सेक्स करना चाहते हैं। कुछ ऐसे भी समय हो सकते हैं जब वे सेक्स न करना चाहते हों और उनकी इच्छा का सम्मान किया जाना चाहिए।

पेरी-मेनोपाज़ –  महिला में रजोनिवृत्ति (45-55 की उम्र के बीच महिलाओं में माहवारी का बन्द होना, इसे मेनोपाज़ भी कहते हैं) से पहले की अवस्था को पेरी-मेनोपाज़ कहते हैं। इस समय में अण्डाशयों में ईस्ट्रोजन नामक हार्मोन का बनना कम हो जाता है जो मासिक धर्म को नियंत्रित करता है। पेरी-मेनोपाज़ रजोनिवृत्ति से कुछ वर्ष पूर्व शुरु हो सकता है। पेरी-मेनोपाज़ के आखिरी 2 वर्षों में ईस्ट्रोजन का उत्पादन तेजी से कम हो जाता है जिसके कारण रजोनिवृत्ति के लक्षण दिखने लगते हैं जैसे शरीर से अचानक गर्मी का निकलना (हॉट फ्लशज़), यौन इच्छा में बदलाव आना और योनि में सूखापन होना।

अक्सर यह समझा जाता है कि पेरी-मेनोपाज़ एवं रजोनिवृत्ति वह समय है जब महिला यौन इच्छा में कमी महसूस करती हैं। यद्यपि उस समय यौन इच्छा में कमी महसूस हो सकती है, फिर भी यह समाज के उस नज़रिए से ज्यादा संबंधित है जिसमें महिला के प्रजनन संबंधि उत्तरदायित्व पूरे होने के बाद उनकी यौनिकता को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है।

क्लाइमेक्ट्रिक – वह अवस्था है जब पुरुष में टेस्टस्टरान का उत्पादन कम होने लगता है, आमतौर पर 45 से 65 वर्ष की उम्र में। इसे महिलाओं में होने वाली रजोनिवृत्ति के समान ही माना जाता है। इस दौरान पुरुषों की यौन इच्छा में कोई बदलाव नहीं महसूस होता है।